‘पेट में खर नै, सिंग में
तेल......’ ये
देहाती कहावत दिखावे की संस्कृति को बयां करती है. जिस संस्कृति को हम मानते जा
रहे हैं और उसे संरक्षण भी देते हैं. आपके टिप-टॉप लाइफ स्टाइल से ही लड़की भी
पटेगी और जनता भी.
ये बात कई पाठकों को बुरी
भी लग सकती है, लेकिन यह खुद का विचार है....
पहले ऐसा सिर्फ लड़कियों
के मामले में होता था, लेकिन अब हम इसे मोदी इफ़ेक्ट ही मान रहे थे पर बिहार के
मुखिया नीतीश कुमार जी भी ऐसे इफ़ेक्ट देने में कम माहिर नहीं हैं. आज कल सीएम साहब
को मेडिकल, इंजीनियरिंग, आईटीआई, पोलटेक्निक कालेज खोलने का भूत सा सवार हुआ है.
कालेज खुल भी रहे हैं लेकिन यहाँ सुविधा और व्यवस्था पर कोई ध्यान नहीं दिया जा
रहा हैं यह सिर्फ भवन ही हैं.
मुख्यमंत्री
नीतीश कुमार भले हर जिले में इंजीनियरिंग और हर अनुमंडल में पोलटेक्निक
कालेज खोलने की घोषणा करते फिरते हों लेकिन जो कॉलेज खुले हैं उसकी हालत ही ख़राब
है. सीधे कहें तो यहाँ छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है. कालेज को देखने
और छात्रों का सुनने वाला कोई नहीं है. मधेपुरा इंजीनियरिंग कालेज के छात्र परेशान
हैं.
यदि
बिना परीक्षा दिए छात्र डिग्री हासिल कर ले तो उसे जेल की हवा तक खानी पड़ती है. यह
उदाहरण हम टॉपर्स घोटाले के रूप में देख सकते हैं. बिना शिक्षक और बिना क्लास रूम,
प्रयोगशाला और पुस्तकालय के निजी कालेज भी हम देखते ही हैं. लेकिन जब ऐसी हकीकत
सरकारी कालेज की हो तो, जब यहाँ बिना पढ़ाये छात्रों को डिग्री दे दी जाय तो उसे आप
क्या कहेंगे ? मधेपुरा इंजीनियरिंग कालेज के छात्रों के साथ ऐसी ही परिस्थिति पैदा
हो रही है. बताया गया कि 180 से अधिक छात्र पहले सत्र के लिए नामांकित हुए और 65
फेकल्टी में मात्र 4 फेकल्टी कालेज चला रहे हैं. आप अंदाजा लगा सकते हैं कैसे चलता
है कालेज ?
पूरा
कालेज
कैम्पस मवेशियों का चारागाह बना है. जगह-जगह गंदगी का अम्बार है, प्रिंसिपल साहब
रहते नहीं, जेनरेटर सिर्फ दिखने के लिए है और सबसे बड़ी बात क्लास रूम में पढाई के
लिए मार्कर भी छात्र खरीद कर लाते हैं. लगभग पांच माह बीतने के बाद भी अभी तक
छात्रों को आई कार्ड नहीं मिला है. ऐसे में परेशान छात्र क्या करें. छात्र जाए तो
जाए कहाँ?
सरकार है कि सिर्फ घोषणा कर कालेज का बोर्ड लटका अपने कर्तव्य की
इतिश्री मान लेती है. छात्र भी आ जाते हैं. बिना पढ़े परीक्षा देना छात्र की मज़बूरी
है तो पास करवाना कालेज प्रबंधन की. ऐसे डिग्रीधारी इंजीनियरों से आप
गुणवत्तापूर्ण नव निर्माण की क्या अपेक्षा कर सकते हैं. जब सरकार इन्हें गुणवत्ता
पूर्ण शिक्षा ही नहीं दे पाती. आखिर कब तक सिर्फ दिखाने के लिए काम होगा. हमारे
लिए सौभाग्य की बात है कि मधेपुरा में विश्वविद्यालय है, पर इसके 25 वर्ष पूरे
होने के बाद भी इसके पद सृजित नहीं हुए हैं. इंजीनियरिंग कालेज हैं और मेडिकल
कालेज बनने वाला है लेकिन कब इसकी जरुरत पूरी होगी और कब यह शोभा की वस्तु से ऊपर
उठ पाएगा...... ?
‘जाएँ तो जाएँ कहाँ?’: दिखावे के विकास में कराहती शिक्षा व्यवस्था / तुरबसु
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
January 16, 2017
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