बिहार
के आपदा मंत्री प्रो० चंद्रशेखर मानते हैं कि बिहार में ब्यूरोक्रेसी उतनी
संवेदनशील नहीं है जितनी होनी चाहिए और इस वजह से पीड़ितों तक न्याय पहुंचने में
सरकार के पसीने छूट जाते हैं.
मधेपुरा टाइम्स के स्टूडियो में एक
साक्षात्कार के दौरान जब हमने उनके ही चेहरे के अलग-अलग भावों की तस्वीरें उनके
सामने प्रदर्शित की और पूछा कि एक प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर, एक विधायक चंद्रशेखर और एक
मंत्री चंद्रशेखर के अलावे एक इंसान के रूप में चंद्रशेखर क्या सोचते है और उनके
चेहरे पर कभी-कभी दर्द के भाव क्यों उभर आते हैं?
जवाब में पहले उन्होंने तस्वीरें भेंट करने
के लिए मधेपुरा टाइम्स का शुक्रिया करते हुए कहा कि ये उनके लिए दुर्लभ संकलन है
और फिर उन्होंने कहा कि इसके लिए मैं व्यवस्था पर ही हमला करूंगा. हम संघर्ष के
लोग रहे हैं. इस बात की चिंता है कि अनावश्यक से जो संवैधानिक व्यवस्था की गई है और
पॉलिटिकल इंस्टिट्यूशन और ब्यूरोक्रेट इंस्टिट्यूशन के बीच जो संतुलन होना चाहिए वह
नहीं है. जिसके कारण अनावश्यक रुप से ब्यूरोक्रेसी को इतनी ताकत दे दी गई है कि एक मंत्री हो या एक सांसद
एक विधायक हो या जनप्रतिनिधि एक पीड़ित इंसान
को इंसाफ दिलाने में, जानता हूँ नाइंसाफी हो रही है और इंसाफ दिलाने में पसीने छूट
जाते हैं. इसके लिए बहुत काम करने की आवश्यकता है.
आपदा मंत्री प्रो० चंद्रशेखर ने कहा कि आज के
दिन जब कैबिनेट में बैठता हूं तो देखता हूं कि तनाव में माननीय मुख्यमंत्री जी कुछ
चीज को करना चाहते और ब्यूरोक्रेसी के कारण काम में कितना विलंब होता है. यह सच है
और इस बात को बोलने में मुझे कोई गुरेज नहीं कि ब्यूरोक्रैसी को भी उतनी ही संवेदनशील
होनी चाहिए जिस बात का अभाव है. हम क़ानून के प्रोटेक्टर हैं पर युक्तिसंगत है कि ताकत
आपके कलम में हैं, कार्यपालिका चलाने वाले आप लोग हैं, क़ानून के अन्दर का सारा काम
आपको करना होता है. उसमे यदि वैधानिक अडचन आप डालते हैं और संवेदनशीलता का अभाव
होता है तो न्याय दिलाने में कठिनाई होती है. शासन किसी के हाथ में हो जाए, चाहे
नीतीश जी, लालू जी या ममता-मुलायम किसी के हाथ में हो जाए, पर वास्तविक शासन
उन्हीं लोगों के हाथ में और इस शासन को 88% लोगों के बीच पहुंचाना शासन की पारदर्शिता
को लागू करवाना आसान काम नहीं है. उनमे यदि संवेदनशीलता की कमी होती है तो आवाज दबती
है.
आगे उन्होंने कहा कि हमारे यहां जाति से बात
शुरू होती है जाति पर खत्म हो जाती है. और
मैं पक्का विश्वास आपको दिलाता हूं कि मैं 36 वर्ष पहले यदि जाति भाव को निकाला ना
होता तो एमएलए बनना तो दूर उम्मीद करते हैं कि गांव का वार्ड सदस्य भी नहीं बन पाता.
परमात्मा ने,खुदा ने, किसी जाति को पैदा नहीं किया. उसने इंसान पैदा किया और इंसान
के अंदर कुछ लोगों ने जातियां बना दी. उसको एक तरफ से आरोपित भी कर सकता हूं कि हिंदू
सोसाइटी को चलाने वाले जो लोग रहे हैं आखिर उन लोगों ने इतनी जातियों के प्रादुर्भाव
का जिम्मा कैसे ले लिया? आज 6634 जातियां हैं,
पर 50 जातियों के नाम भी गिनाना काफी मुश्किल है. इतनी जातियों की दीवार खड़ा करके
चीन की चौधराहट और अमेरिका की दादागिरी को हम चुनौती नहीं दे सकते.
नववर्ष
की शुभकामनाएं: नववर्ष के लिए आपदा मंत्री ने लोगों को मधेपुरा टाइम्स की तरफ से शुभकामनाएं
देते हुए कहा कि मैं ईश्वर से खुदा से परमात्मा से यह कामना करता हूं कि लोग देश और
समाज के प्रति संवेदनशीलता की जागरूकता पैदा करें और सभी लोग स्वस्थ, प्रसन्नचित्त
होकर समृद्धि की तरफ बढ़े. मगर समाज में जो सबसे ज्यादा अंतिम सीढ़ी के लोग हैं, उनके
लिए कुछ विचार करके कुछ न कुछ करें जो भी संभव हो. आपके पड़ोस में यदि कोई रो रहा
हो तो, हो सकता है उसको खाना ना मिला हो तो उसे कोई एक समय का खाना पहुंचा देता
है. या कोई बीमार आदमी तड़प रहा है और सड़क पर अगर एक आदमी कंधा देकर उसे अस्पताल तक
पहुंचा देता है तो यह बड़ी मदद है. हो सकता है आधा घंटे के अंदर उस व्यक्ति की जान
चली जाए.
नशा मुक्ति के लिए सरकार स्वयं संकल्पित है. किसी
भी धर्म में नशाखोरी को प्रोमोट नहीं की गई है. मेरी अपील है कि नशा छोड़ें और मुख्यधारा
में आएं. कमजोर लोगों को मुख्यधारा में लायें तब ही विश्वबंधुत्व का नारा हम दे सकते
हैं.
(ब्यूरोक्रैट्स की कम संवेदनशीलता और ब्राह्मणवाद के खिलाफ सिस्टम कर हमला करते आपदा मंत्री ने और क्या कहा, आप पूरी बात इस वीडियो में जरूर सुनें. यहाँ क्लिक करें)
(ब्यूरोक्रैट्स की कम संवेदनशीलता और ब्राह्मणवाद के खिलाफ सिस्टम कर हमला करते आपदा मंत्री ने और क्या कहा, आप पूरी बात इस वीडियो में जरूर सुनें. यहाँ क्लिक करें)
(रिपोर्ट: कुमार शंकर सुमन, सभी फोटो व वीडियो: मुरारी सिंह)
‘कहने में गुरेज नहीं कि ब्यूरोक्रैट्स को और अधिक संवेदनशील होना चाहिए’: आपदा मंत्री
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
January 01, 2017
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