"महिला सशक्तीकरण, मानवीय गरिमा और समानता की बातें करने वाले नीतीश कुमार जी
आखिर क्यों समान नागरिक संहिता पर अपनी राय भी नहीं दे सके?"
एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर भाजपा नेता किशोर कुमार मुन्ना ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पूछा कि शराब बंदी कर बड़ी वाहवाही लूटी, तो
क्यों नहीं मुस्लिम महिलाओं को प्रताड़ित करने वाली तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुपत्नी प्रथा जैसे आजाब से मुक्ति के लिए भी
कोशिश की?
इससे तो साफ पता चलता है कि मुख्यमंत्री
जी कट्टरपंथी उलेमाओं के सामने नतमस्तिक हैं। उन्हें मुस्लिम महिलाओं के हको - हुकूक
की कोई चिंता नहीं है। तीन तलाक प्रथा को समाप्त कर समान नागरिक संहिता लागू करने
के पक्ष में राय नहीं देकर नीतीश सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को धोखा दिया है।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री कम से कम ये तो बता दें कि देश संविधान
से चलेगा या उलेमाओं के फतवे से? क्योंकि आपको फतवे जारी करने वालों की
फिक्र है,
मगर उन लाचार, बेबस महिलाओं की नहीं जिन पर कुप्रथाओं के नाम पर जुल्म किया
जाता है। हम जानना चाहते हैं कि क्या सती प्रथा, विधवा
विवाह और छुआछूत के खिलाफ कानून पंडितों से पूछ कर बने थे? आप यह बताइये की शराबीयों से पूछ कर कानून बनाये थे । नीतीश कुमार शराबबंदी के लिए संविधान के जिस
नीति-निर्देशक सिद्धांत का हवाला देते हैं, उसमें
समान नागरिक संहिता और गोवंश की हत्या पर प्रतिबंध की भी बातें कही गई हैं, लेकिन उन्होंने दो मुद्दों पर चुप्पी साध कर कट्टरपंथियों के
आगे घुटने टेक दिये । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी देश के संपूर्ण विकास के लिए दिन रात लगे हुए
हैं और ये तभी संभव है, जब
हर आदमी का विकास समान रूप से हो। फिर चाहे वो महिला हो या पुरूष। नीतीश जी, विकास की बात आप भी करते हैं। लेकिन क्या आधी आबादी खास कर
मुस्लिम महिलाओं के विकास के बिना किसी देश या राज्य का विकास संभव है। वोट बैंक
की ओछी राजनीति में महिला सशक्तीकरण को दो चश्में से देखना आपके नीयत को बेपर्दा
करती है। साफ पता चलता है कि आप महिला सशक्तीकरण की आड़ में अपना हित साधने में
लगे हैं,
तभी तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर जब
विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर सलाह मांगी, तब उनकी सरकार कठमुल्लों के डर से तीन तलाक प्रथा लागू रखने
वाले मुस्लिम पर्सनल ला के विरुद्ध राय तक नहीं दे पायी।
भाजपा नेता ने पूछा कि जब अपराध के लिए देश में समान दंड
संहिता (IPC)लागू है, तब विवाह, तलाक
और उत्तराधिकार के लिए अलग-अलग कानून क्यों होना चाहिए? विवाह,तलाक और अंतिम संस्कार से संबंधित रीति-रिवाज किसी धर्म के मूल
भाग नहीं होते,
इसलिए इनके नाम पर मानवीय गरिमा और
समानता के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता। तीन तलाक की प्रथा जब पाकिस्तान-बांग्लादेश
सहित 197 देशों में प्रतिबंधित है, तब
भारत में इस पर रोक लगाना गैरइस्लामिक कैसे है? ध्यान
रहे कि मोतीलाल नेहरू और बाद में डा. अम्बेडकर
ने समान नागरिक संहिता लागू करने की वकालत की, लेकिन
वोट बैंक की राजनीति करने वालों ने इसकी राह में हमेशा रोड़े अटकाये।
(किशोर कुमार मुन्ना पूर्व विधायक तथा भाजपा नेता हैं और ये उनके निजी विचार हैं.)
‘मुख्यमंत्री जी कट्टरपंथी उलेमाओं के सामने नतमस्तिक हैं’: किशोर कुमार मुन्ना
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
January 13, 2017
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