मधेपुरा नगर परिषद् क्षेत्र यानि कचरे का ढेर. कुछ भी ठीक नहीं है इन दिनों. 'कार्य प्रगति पर है, रूकावट के लिए खेद है.' जैसा बोर्ड भी नगर परिषद् क्षेत्र के उन इलाकों में नजर नहीं आ रहा है, जहाँ महीनों से 'मास्टर प्लान' के तहत नाला बनाये जाने की बात हो रही है. लगेगा केसे, यहाँ न तो कार्य प्रगति पर है और न ही लोगों को परेशान करने के लिए कोई खेद-वेद वाली बात है. सड़कों पर क्विंटल के भाव से खुदाई के मलबे पड़े हैं और आने-जाने वाले बेहाल-बदहाल हैं. कहते हैं कि कोई 'डूडा' (DUDA= District Urban Development Authority) यहाँ काम करवा रही है. पर हकीकत यही लगती है जैसा कि मधेपुरा के लोगों का कहना है कि काम सिर्फ अयोग्य मजदूरों के भरोसे चल रहा है. विकास के नाम पर 'लूट लो मधेपुरा' नामक ऑफर चला है, ऐसा लोग कहते हैं.
मुख्य मार्ग में एडीबी के सामने वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार झा और कुछ गणमान्य लोग मलबे को व्यवस्थित करवा कर घरों से निकलने लायक रास्ता बनवा रहे हैं. वे बताते हैं कि नाला बनाने वालों ने खोद कर छोड़ दिया तो अपना मजदूर लगवाकर काम करना पड़ रहा है. स्थानीय निवासी सौरभ सिंह ने बताया कि गड्ढे में नाला निर्माण कार्य में कुछ सही नहीं है. ढलाई खुला था तो अन्दर नवनिर्मित नाला टूट गया था. फिर लोगों ने 'चिप्पी-चाप्पी' लगाकर इसे खड़ा कर दिया है. जेनरल हाई स्कूल के सामने जैसे ही हम कैमरा खोलते हैं, कई दर्जन लोग चल रहे काम की शिकायत करने पहुँच जाते हैं. लोगों का कहना है कि 'सबकुछ बकवास है, ये मास्टर प्लान फिसड्डी साबित हो जाएगा और पानी निकासी पहले से भी बदतर हो जाएगा. पूरा कचरा कर दिया है ई सब. किसे कहें, कौन करेगा, हम नहीं जानते हैं. शहर की हालत देखकर रोने का मन कर रहा है'.
हम तो कहते हैं, 'रो लीजिये, मन हल्का हो जाएगा'. (क्रमश:)
मुख्य मार्ग में एडीबी के सामने वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार झा और कुछ गणमान्य लोग मलबे को व्यवस्थित करवा कर घरों से निकलने लायक रास्ता बनवा रहे हैं. वे बताते हैं कि नाला बनाने वालों ने खोद कर छोड़ दिया तो अपना मजदूर लगवाकर काम करना पड़ रहा है. स्थानीय निवासी सौरभ सिंह ने बताया कि गड्ढे में नाला निर्माण कार्य में कुछ सही नहीं है. ढलाई खुला था तो अन्दर नवनिर्मित नाला टूट गया था. फिर लोगों ने 'चिप्पी-चाप्पी' लगाकर इसे खड़ा कर दिया है. जेनरल हाई स्कूल के सामने जैसे ही हम कैमरा खोलते हैं, कई दर्जन लोग चल रहे काम की शिकायत करने पहुँच जाते हैं. लोगों का कहना है कि 'सबकुछ बकवास है, ये मास्टर प्लान फिसड्डी साबित हो जाएगा और पानी निकासी पहले से भी बदतर हो जाएगा. पूरा कचरा कर दिया है ई सब. किसे कहें, कौन करेगा, हम नहीं जानते हैं. शहर की हालत देखकर रोने का मन कर रहा है'.
हम तो कहते हैं, 'रो लीजिये, मन हल्का हो जाएगा'. (क्रमश:)
रो लीजिये, मन हल्का हो जाएगा...(भाग-1)
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
August 11, 2015
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