ऐसे होम ट्यूटर से कैसे बचाएं अपनी नाक?: कहीं आपके होम ट्यूटर भी ऐसे तो नहीं! (2)

जानकार मानते हैं कि बच्चों के संस्कार की पहली पाठशाला उसका घर होता है और इस पाठशाला के शिक्षक उसके माता-पिता व गुरु. इसलिए तेजी से बदल रहे सामाजिक परिवेश में बच्चों की दिनचर्या पर ध्यान देने की जरूरत है. आज के बदल चुके दौर में जहाँ बच्चे आधुनिक तकनीक का प्रयोग धड़ल्ले से कर रहे हों वहां अभिभावकों को भी तकनीक की जानकारी लेनी ही चाहिए. होम ट्यूटर के मामले में जानकार सलाह देते हैं कि होम ट्यूटर पर नजर रखने की ज्यादा आवश्यकता इसलिए है कि स्कूलों में शिक्षक तो सामूहिक रूप से पढ़ाते हैं जबकि घर में वे एकांत में छात्रा को पढ़ाते हैं. हम ये नहीं कहते हैं कि सारे होम ट्यूटर ऐसे ही होते हैं. अधिकाँश शिक्षक न सिर्फ छात्र-छात्राओं को विषयों की गहन जानकारी देते हैं, बल्कि उनके द्वारा दिए गए नैतिक शिक्षा के आधार पर छात्र-छात्रा जीवन की अद्भुत सफलता पाकर समाज और देश का नाम रौशन करते हैं.
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि बच्चे के जन्म के पांच साल तक बच्चों को प्यार देना चाहिए उस उम्र के बाद बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखना चाहिए. बहरहाल इतनी नैतिक शिक्षा के बाद कुछ नैतिक बातें जो उस समाज को घर के इज्जत बचाने के लिए मजबूर करती है. जिसका ताजा उदाहरण बीते 72 घंटे के अंदर घटित उपरोक्त घटना है. सामाजिक जिम्मेवारियों के साथ हमारा समाज भी इस बात को गुप्त रखने का भरसक प्रयास करता है, क्योंकि इस घटित ताजा घटना में माता-पिता की लाचारी सामने आयी. बड़ी बेटी की शादी एक अच्छे घरानें में महज कुछ ही दिनों में होने वाली है तो सच्चाई से अलग होकर परिजन ने केस न दर्ज करते हुए इज्जत बचाना श्रेष्ठकर समझा तो पुलिस के हाथ भी कानून के बेडियों में तो नहीं पर समाज के बेडियों में जरूर जकड गये, क्योंकि पुलिस भी हमारे समाज की तरह समाज का एक हिस्सा ही है. 
     दरअसल कई सर जी आपको देखने में भले जरूर लगे पर दिल तो उनका दागदार है. जिसके लिए जरूरत है कि सर जी के आने से लेकर जाने तक आप अपनी नजरें जमाये रखें क्योंकि समाज के बुजुर्ग ये भी कहते हैं कि टीनएजर्स में सोचने व समझने की क्षमता कम होती है. समाज में बढ़ते एंड्रॉयड मोबाइल के चलन ने तो और इस उम्र के बच्चों की समझ को और भी बदल दिया है. मोबाइल के प्ले स्टोर में कम खर्च में व्हाट्स अप मैसेजिंग वीडीयो कॉल भले ही शुरू में चुटकुले सुनने और अपनों से बातें करने के लिए बच्चे उपयोग में लाते हों, पर  ये एप सर जी जैसे लोगों को आसानी से इन बच्चों को बहलाने-फुसलाने में मददगार साबित हो सकते हैं. मोबाइल के बढते प्रचलन, टीवी चैनलों पर आपत्तिजनक विज्ञापन और सीरीयल्स में प्यार-मुहब्बत के अजीबोगरीब तरीके भी बालमन और टीनएजर्स को दिग्भ्रमित करते हैं. खुलेपन ने भारतीय संस्कृति पर दस्तक दी, तो अधिकाँश अभिभावक बच्चों के सामने भी टीवी पर इन चीजों को देखने में बुराई नहीं मानने लगे हैं, पर इसका सीधा प्रभाव बच्चों पर तो पड़ता ही है. हमें हर हाल में बच्चों को सही और गलत या नैतिकता और अनैतिकता की सीमा समझानी चाहिए ताकि कोई उस नादान को बहलाने-फुसलाने का प्रयास करे तो वह अपनी माँ को या पिता को इस बारे में बता सके.
      तो हम बरतें थोड़ी सी सावधानी, ताकि हमारी नाक कटने से बच जाए.
ऐसे होम ट्यूटर से कैसे बचाएं अपनी नाक?: कहीं आपके होम ट्यूटर भी ऐसे तो नहीं! (2) ऐसे होम ट्यूटर से कैसे बचाएं अपनी नाक?: कहीं आपके होम ट्यूटर भी ऐसे तो नहीं! (2) Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on May 21, 2015 Rating: 5

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