|राजीव रंजन|24 फरवरी 2014|
‘रसरी आवत-जातते सिल पर परत निशान’ भले ही दोहे
में अलग अर्थ के लिए प्रयुक्त होता हो, पर एक रस्सी जो पत्थर को भी घिस देती है, ने
एक सांढ़ को मौत के मुंह में पहुंचाने का पूरा-पूरा इंतजाम कर लिया था. पर अचानक इस
सांढ़ पर नजर मधेपुरा के एक समाजसेवी की पड़ी और महज दो साल के उम्र की इस मासूम सांढ़
की जान बचा ली गई.
घटना मधेपुरा नगर परिषद् क्षेत्र के वार्ड न.10 की है. महज दो साल
की उम्र के इस सांढ़ की गर्दन उसी रस्सी से चारों तरफ से इस कदर कट चुकी थी, जिस रस्सी
से सांढ़ मालिक ने सांढ़ को बाँध रखा था.
सांढ़ कहीं से भटक कर वार्ड नं.10 में आया था. अचानक इसके कटे गर्दन
पर समाजसेवी शौकत अली की नजर पड़ी. और फिर तो मानो सांढ़ को नई जिंदगी मिल गई. समाजसेवी
ने तुरंत ही पशु चिकित्सक को मौके पर बुलाया और लोगों से भी इस पशु के प्रति दया दिखाने
का आग्रह किया. इलाज शुरू हुआ और लगभग दो दिनों के लगातार इलाज के बाद सांढ़ के कटे
गर्दन का घाव कम हुआ और सांढ़ खतरे से बाहर आया. पशु-प्रेम का ये एक अद्भुत नमूना दिखा
कि समाजसेवी शौकत अली तब से अबतक लगातार दिन में कई बार जाकर उस सांढ़ को देखते हैं.
श्री अली ने समाज के तथाकथित
ढोंगी लोगों पर कटाक्ष करते हुए पूछा कि गाय की पूजा करने वाले लोगों को इस पशु पर
तनिक भी दया नहीं आई ?
समाजसेवी की दरियादिली ने बचाई एक सांढ़ की जान
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
February 24, 2014
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