|मुरारी कुमार सिंह|24 जनवरी 2014|
सरकारी योजनाओं को पीड़ित तक पहुँचने में सबसे बड़ी
बाधा बनी ‘दलाल
संस्कृति’ मधेपुरा में कमजोर होती
दिखाई दे रही है. मधेपुरा के जिलाधिकारी की सक्रियता की वजह से समाहरणालय के आसपास
मंडराते दलालों की संख्यां जहाँ हाल के दिनों में घटी है वहीँ कई दलाल जेल की हवा
भी खा रहे हैं.
वर्ष
2008 के कुसहा त्रासदी में पति नसीम साह को खोने के बाद कुमारखंड थाना के
लक्ष्मीपुर गांव की नसीमा खातून को सरकार ने मुआवजा देने की सूची में तो रखा नसीमा
में जिंदगी जीने की उम्मीदें जगी. पर पहले एक लाख रूपये दिलाने में वार्ड मेंबर ने
सात हजार रूपये झटक लिए. अब जब बाक़ी के पचास हजार लेने की बारी आई तो गाँव के ही
एक दलाल ने चार हजार रूपये लेने की शर्त पर नसीमा को पूरे रूपये दिलाने की बात
कहने लगा.
पर
जिलाधिकारी के पास मुआवजे की बाक़ी रकम लेने पहुंची नसीमा की किस्मत अच्छी थी कि
जिलाधिकारी गोपाल मीणा जानकारी लेने के क्रम में यह जान गए कि नसीमा के साथ दलाल
भी गाँव से आ पहुंचा है और बाहर ही मौजूद है. बस क्या था, दलाल को बुलवाया गया और
अशोक कुमार वर्मा नामके इस दलाल को कर दिया गया पुलिस के हवाले. वर्मा जी पर कहावत
लागू हो गई, ‘आये
थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास’.
डीएम ने करवाया दलाल को गिरफ्तार: महिला की पति की मौत के मुआवजा में खा रहा था दलाली
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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January 24, 2014
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