|रणजीत राजपूत, मधेपुरा टाइम्स, सहरसा|25 सितम्बर 2013|
सच कहते हैं गरीब की मौत पर ठीक से मातम भी नहीं मनता और जिस गरीब का इस दुनियां में कोई नहीं हो तो लाश को कोई सलीके से ठिकाने तक नहीं लगाता. यह अभागा पहले भूख से तड़पता रहा फिर भूख ने कमजोर काया पर हमला किया और देखते ही देखते उसके प्राण ने उसका साथ छोड़ दिया. सहरसा जिले के बैजनाथपुर ओपी के वार्ड नंबर 6 के मोहल्ले में तकरीबन तीन महीने से सरकारी योजनाओं से महरूम 55 वर्षीय कारी उर्फ़ नाथो स्वर्णकार की भूख से हुयी मौत ने सुशासन के सारे दावे की पोल पट्टी खोलकर रख दी है. वहीँ सुशासन के हकीमों के कथनी और करनी दोनों में है बड़ा फर्क.
तीन दिनों से भूखे इस गरीब कारी उर्फ़ नाथो ने दम तोड़ ही दिया. जबतक जिन्दा था तो दो वक्त की रोटी के लिया तडपता था और मौत के बाद दो गज कफ़न के इंतज़ार में घंटों पड़ा रहा एक भूख से तड़पकर जान देने वाले की लाश. बाबुओं और हहाकीमों की माने तो इसे भूख से हुए गरीब की मौत को कोई और नाम देने की चल रही है तैयारी. क्योंकि किसी भी सरकार के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक बात कुछ हो ही नहीं सकती है और सरकार का दावा है कि हम भूख से किसी को मरने नहीं देंगे. बताते चले की मृतक कारी उर्फ़ नाथो स्वर्णकार इस गाँव में तकरीबन तीन महीनो से सरकार की हर योजनोंओ से महरूम था. सरकार के हकीमों के चक्कर लगाकर थक चुका था और गाँव में ही भीख मांगकर पापी पेट की आग को मिटाता रहता था.आज नहीं कल सरकारी योजनाओं का फायदा मिल जाएगा लेकिन इसे गरीब को क्या पता योजनाओं के लाभ मिलने से पहले ही भूख से तड़प-तड़पकर इसकी मौत हो जाएगी.
सच कहते हैं गरीब की मौत पर ठीक से मातम भी नहीं मनता और जिस गरीब का इस दुनियां में कोई नहीं हो तो लाश को कोई सलीके से ठिकाने तक नहीं लगाता. यह अभागा पहले भूख से तड़पता रहा फिर भूख ने कमजोर काया पर हमला किया और देखते ही देखते उसके प्राण ने उसका साथ छोड़ दिया. सहरसा जिले के बैजनाथपुर ओपी के वार्ड नंबर 6 के मोहल्ले में तकरीबन तीन महीने से सरकारी योजनाओं से महरूम 55 वर्षीय कारी उर्फ़ नाथो स्वर्णकार की भूख से हुयी मौत ने सुशासन के सारे दावे की पोल पट्टी खोलकर रख दी है. वहीँ सुशासन के हकीमों के कथनी और करनी दोनों में है बड़ा फर्क.
तीन दिनों से भूखे इस गरीब कारी उर्फ़ नाथो ने दम तोड़ ही दिया. जबतक जिन्दा था तो दो वक्त की रोटी के लिया तडपता था और मौत के बाद दो गज कफ़न के इंतज़ार में घंटों पड़ा रहा एक भूख से तड़पकर जान देने वाले की लाश. बाबुओं और हहाकीमों की माने तो इसे भूख से हुए गरीब की मौत को कोई और नाम देने की चल रही है तैयारी. क्योंकि किसी भी सरकार के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक बात कुछ हो ही नहीं सकती है और सरकार का दावा है कि हम भूख से किसी को मरने नहीं देंगे. बताते चले की मृतक कारी उर्फ़ नाथो स्वर्णकार इस गाँव में तकरीबन तीन महीनो से सरकार की हर योजनोंओ से महरूम था. सरकार के हकीमों के चक्कर लगाकर थक चुका था और गाँव में ही भीख मांगकर पापी पेट की आग को मिटाता रहता था.आज नहीं कल सरकारी योजनाओं का फायदा मिल जाएगा लेकिन इसे गरीब को क्या पता योजनाओं के लाभ मिलने से पहले ही भूख से तड़प-तड़पकर इसकी मौत हो जाएगी.
सरकार के हकीमों का कहना है की तीन महीनों से आबंटन नहीं आने की वजह से अनाज की उठाई नहीं हो पाई है लेकिन गरीबी और भूख की टीस और चुभन का
एहसास इन हाकीमों को क्या पता. कई दिनों से भूख से तड़पता
रहा किसी ने इसकी सुधि नहीं ली.और अब भूख से हुई मौत के सामने आंसू
बहाने वाला भी कोई नहीं. स्थानीय लोगों
का कहना है कि उन्होंने इसे अपनी आँखों के सामने
भूख से तड़प-तड़प कर जान देते देखा. हमलोगों से जो मदद
होती थी हम लोग करते थे लेकिन सरकारी योजनाओं का लाभ आज तक इसे नहीं मिला और भूख-तंगहाली ने इसे लील लिया. स्थानीय लोगों और
बैजनाथपुर के मुखिया का कहना है की इस गरीब की मौत भूख से हुई है.
इस मौत को आखिर गम और मातम का हम कौन सा नाम दें. आखिर में हम इतना जरुर कहेंगे की यह
मौत सरकारी इंतजामात और गरीबों को लेकर तरह-तरह के दावे करनेवाली सरकार और उसके
नुमाइंदों की ना केवल कलई खोल रही है बल्कि उन्हें कटघरे में भी खड़े कर
रही है.
भूख से हुई मौत पर कोई मातम नहीं: सुशासन की खुली कलई
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
September 25, 2013
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