खता हुई है जरूर मुझसे कोई,
माफ कर दो मुझे ए जाने जहाँ.
यूं नफरत से न आँखें फेर,
तेरी आँखों में है मेरे दोनों जहाँ.
तेरे सजदे में हूँ ए नूरे-हुस्न,
मुझे वापस कर दो मेरा जहां.
वाकिफ नहीं था मैं दुनिया के रंगों
से,
पर अब जान गया हूँ सारा जहाँ.
तू है मेरी,बस मेरी, मैं नहीं कहता
तू यूं गुस्से में न हँसो
है कातिल ये सारा जहाँ.
खता भूलकर करीब आ जाओ,
वादा है भूल जाओगी सारा जहाँ.
खता हुई है जरूर मुझसे कोई,
माफ कर दो मुझे ए जाने जहाँ.
यूं नफरत से न आँखे फेर
तेरी आँखों में हैं मेरे दोनों जहां.
--असित रंजन, मधेपुरा.
खता..../// असित रंजन
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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July 01, 2012
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