" जब वी मेट " में
जब नायिका कहती है
'फोटो फाड़ो और फ्लश करो'
तो दर्शक मुस्कुराते हैं ...
फिल्मों में जो होता है
वह रियल लाइफ में कहीं कहीं होता है
यहाँ तो लोग खुद से डरते हैं
सोचते हैं
इससे मेरे व्यक्तित्व पर प्रश्न उठ खड़ा होगा
ये...वो... जाने कितने मंथन !
मंथन तो इस बात का होना चाहिए न
कि किसी ने अगर मुझे
चाय में पड़ी मक्खी की तरह फ़ेंक दिया
तो क्या इसे सहज घटना रहने दूँ ...
सही फैसला लेने से
व्यक्तित्व कभी धूमिल नहीं होता
बल्कि वह उदाहरण बनता है !
हम खुद को
उदाहरण बनाने की बजाय
निरीह बना लेते हैं
और मानसिक अपाहिजता लिए
हर आगत को अपाहिज कर देते हैं !
विवशता तभी तक होती है
जब तक हम उसके नीचे दबे रहते हैं
सच तो यही है
कि कोई किसी के लिए
कहीं नहीं ठहरता
यहाँ तक कि वक़्त भी नहीं
....फिर क्या अगर मगर ???
जब नायिका कहती है
'फोटो फाड़ो और फ्लश करो'
तो दर्शक मुस्कुराते हैं ...
फिल्मों में जो होता है
वह रियल लाइफ में कहीं कहीं होता है
यहाँ तो लोग खुद से डरते हैं
सोचते हैं
इससे मेरे व्यक्तित्व पर प्रश्न उठ खड़ा होगा
ये...वो... जाने कितने मंथन !
मंथन तो इस बात का होना चाहिए न
कि किसी ने अगर मुझे
चाय में पड़ी मक्खी की तरह फ़ेंक दिया
तो क्या इसे सहज घटना रहने दूँ ...
सही फैसला लेने से
व्यक्तित्व कभी धूमिल नहीं होता
बल्कि वह उदाहरण बनता है !
हम खुद को
उदाहरण बनाने की बजाय
निरीह बना लेते हैं
और मानसिक अपाहिजता लिए
हर आगत को अपाहिज कर देते हैं !
विवशता तभी तक होती है
जब तक हम उसके नीचे दबे रहते हैं
सच तो यही है
कि कोई किसी के लिए
कहीं नहीं ठहरता
यहाँ तक कि वक़्त भी नहीं
....फिर क्या अगर मगर ???
--रश्मि प्रभा, पटना
अगर मगर.....रश्मि प्रभा
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
February 05, 2012
Rating:
" निरीह बना लेते हैं "
ReplyDeleteऔर
"मानसिक अपाहिजता लिए
हर आगत को अपाहिज कर देते हैं.... !!"
" सच तो यही है "
कि कोई किसी के लिए ,
कहीं नहीं ठहरता.... !!
" यहाँ तक कि वक़्त भी नहीं "
....फिर क्या अगर मगर ???
bahut kuchh sikhaa aapse.... !!सही फैसला लेने ki taakat paai hai.... !!