मैडम का मायका-प्रेम

ससुराल की चर्चा छिड़ते ही विवाहितों का मन-मिजाज सरस हो जाता है.भगवान झूठ न बुलवाए तो सौ फीसदी सच यह सच है कि घोर बुढौती में भी ससुराली भोजन की याद आते ही मुंह का जायका बदल जाता है.लेकिन मायका की चर्चा मैडमों की आँखों में अतिशय चमक पैदा करती है, जैसे डमरू की आवाज सुनकर नन्हे-मुन्नों की बाँछे खिल जाती है.
     मुझ-सा शातिर साहित्यकार अपनी वाली मैडम की इस कमजोर नस को कसकर पकड़ ली है जिस प्रकार आज अमेरिका विकासशील देशों की पकड़ रखी है.अपनी मैडम जब कभी बन्दा के विरूद्ध बगावत की तैयारी शुरू करना चाहती है,प्रसंगवश उसके मायका को हथियार बना कर मैं भांजने से बाज नहीं आता.
     मायका का नाम सुनते ही मैडम के उखड़े मूड का सूचकांक धडाधड नीचे लुढकने लगता है फिर वह मेरी ओर तिरछी नजर फेंककर कुछ और बकने का आमंत्रण देती है.उसकी मिजाजपुर्सी हेतु ससुराली प्रसंगों को खोज-खाज कर दम तोड़ती पत्रिका के प्रकाशक की नाई प्रकाशित करना मेरी मजबूरी हो जाती है.
   कभी-कभी ससुराली प्रवचन में इतना तन्मय हो जाता हूँ जिस प्रकार वीरगाथा कालीन कुटिल कवि-चरण अपने काहिल और ऐयाशी आश्रय दाताओं की वीरता और उदारता की यशोगान झूम-झूम कर करते थे.वैसे भी बॉबी फिल्म की हीरोइन की वह धमकी-
    झूठ बोले कौवा काटे,काले कौवे से डरियो;
     मैं मायके चली जाउंगी,तुम देखते रहियो.
   सुनकर बड़े जिगरवालों की बोलती बंद हो जाती है.
अपनों के तानों से तंग आकर मैडम से परामर्श लिए बगैर मैंने एक अहम निर्णय ले लिया.मित्रों से कर्ज लेकर नामुराद मोबाइल खरीद लाया.वैसे कर्ज का नाम सुनकर वह काट खाने को दौड़ती है,लेकिन उसदिन उसकी खुशी का पारावार न था.यह देख मेरी वही दशा थी जो एक्शन और थ्रिल से भरपूर फिल्म देखकर एक निबट देहाती की होती है.
  अचानक अपनी मम्मी की खुशी का राज मेरे कनिष्ट पुत्र ने खोल दिया, अब मम्मी को मामी-मौसी से बतियाने में सुविधा होगी. मैडम ने एक शानदार ठहाका लगाया.मेरी गलतफहमी को उसने बड़ी बेरहमी से उसी दिन दूर कर डाली, जब उसने मायके की चौपाल कार्यक्रम का श्रीगणेश करने में कोई कोताही नहीं बरती.चाचा-चाची से लेकर अपनी सखी-सहेलियों और उनकी शादी से लेकर उनके शौहरों की खोज-खबर लेने में ऑफर के टॉक-टाइम का स्टॉक खत्म कर दम ली.
    अब पीहर से नैहर का लिंक जुड़ गया जिस प्रकार कभी संजय के माध्यम से हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र की रणभूमि कुरुक्षेत्र से जुड़ा था. वाउचर का नाम सुनते ही जेब चीखने लगती है, लेकिन मैडम का दिल-दुखाने की मेरी हिम्मत नहीं होती है.
       मायके से प्राप्त नाचीज वस्तुओं को वह बड़ी चतुराई से सहेज कर रखती है जैसे कवि-लेखक प्रकाशक से तिरस्कृत अपनी पांडुलिपियों को रखते हैं.मायका-प्रेम का नायाब प्रमाण मैडम कई बार पेश कर चुकी हैं.मायके वालों का आतिथ्य-सत्कार राम की शबरी से कम नहीं करती.व्यंजनों और पकवानों की वेरायटी देखकर कई बार मेरे दिल कीई धड़कन फुलस्पीड में बढ़ चुकी है जबकि मेरे वालों को वह निर्दलीय उम्मीदवार से अधिक भाव नहीं देती.
     जब कभी मैंने उसकी इस दोयम दर्जा की सोच-समझ पर चर्चा छेड़ने की जुर्रत की, उसका तेवर देखकर चुप रहना ही मुनासिब समझा जिस प्रकार गठबंधन की सरकार अपने सहयोगी दलों को झेलकर येन-केन-प्रकारेण अपना कार्यकाल पूरा करने में ही अपना कल्याण समझती है.

--पी० बिहारी बेधड़क,मधेपुरा 
(संपर्क:9006772952)
मैडम का मायका-प्रेम मैडम का मायका-प्रेम Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on February 05, 2012 Rating: 5

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