
एक बोझिल मन सा जीवन है।
कुछ ओझल है
कुछ दिखता है
शायद मेरा वो प्रीतम है।
मैं जान गया
पहचान गया
मीठा एक सपना तान गया।
कुछ वो समझे
कुछ मैं समझूं
ऐसा दिल को फरमान गया।
वो व्याकुल है
मैं आतुर हूँ
दिल कोमल चंचल चितवन है।
कोहरे के उस पार खड़ा
एक बोझिल मन सा जीवन है।
कुछ कर जाऊँ

मैं मर जाऊँ
तुझको पाकर मैं तर जाऊँ।
एक बीबी है
दो बच्चे हैं
सोचूँ अब वापस घर जाऊँ।
मजबुर हुआ
जब दूर हुआ
घर में ही तो अपनापन है।
कोहरे के उस पार खड़ा
एक बोझिल मन सा जीवन है।
--शम्भू साधारण (shambhuaundurscore786@gmail.com)
एक बोझिल मन सा जीवन है
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 21, 2011
Rating:

बेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteEk taraf ye sard hawaein jaan to le hi rhi hai,door baithe PRITAM ki yad v dila jati hai..ye v kam janlewa nhi hai.......-SANDEEP RAJ,BELOKALA
ReplyDeletesandeep ji ne lajabaab likhe hain............
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