राकेश सिंह/२६ जुलाई २०११
बचपन बचाओ अभियान में हाल में सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर उत्प्रेरक का काम किया है कि सरकार बच्चों को मजदूरी करने पर रोक लगाने के लिए आवश्यक कदम उठाये.सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में सरकार कागजों पर बालश्रम रोकने के प्रयास में लग चुकी है.पर हकीकत ये है कि केन्द्र सरकार इसे अपने ही रेलवे के अंदर रोक पाने का कोई प्रयास करती नजर नहीं आ रही है.देश भर के ट्रेनों में आज भी बचपन सिसकता हुआ नजर आता है.ट्रेनों में झाड़ू लगाते बच्चे काम के एवज में खुशनामा मांगते ये बताने का प्रयास करते हैं कि हम शौक से ये काम नहीं कर रहे हैं,बल्कि हमारी भी कुछ पारिवारिक मजबूरियां हैं. इन बच्चों का ये काम कई तरह से केन्द्र व राज्य सरकार की योजनाओं की पोल खोल रहा है. पहली बात तो ये भीख नहीं
मांग रहे बल्कि दिखा रहे हैं कि हम गंदगी साफ़ कर आपको स्वच्छ जगह बैठा देखना चाहते हैं.बात साफ़ है रेल मंत्रालय ट्रेनों को हमेशा स्वच्छ रखने में सक्षम नहीं है. दूसरी कि अभी भी केन्द्र व राज्य की सरकारी योजनाएं इनके परिवार का पेट नहीं चला पा रही हैं.बचपन बचाने में पूरी तरह नाकामयाब सरकार के पास कोई ऐसा उपाय नहीं दीख पड़ता है जिसके द्वारा पढ़ने और खेलने की उम्र में इन बच्चों को ऐसे काम करने से रोका जा सके.एक तरफ जहाँ देश का अरबों डॉलर काला धन विदेशों में जमा है वहीं एक-दो रूपये के लिए मुंहताज ये बच्चे सरकार के मुंह पर एक जोरदार तमाचा है.
मांग रहे बल्कि दिखा रहे हैं कि हम गंदगी साफ़ कर आपको स्वच्छ जगह बैठा देखना चाहते हैं.बात साफ़ है रेल मंत्रालय ट्रेनों को हमेशा स्वच्छ रखने में सक्षम नहीं है. दूसरी कि अभी भी केन्द्र व राज्य की सरकारी योजनाएं इनके परिवार का पेट नहीं चला पा रही हैं.बचपन बचाने में पूरी तरह नाकामयाब सरकार के पास कोई ऐसा उपाय नहीं दीख पड़ता है जिसके द्वारा पढ़ने और खेलने की उम्र में इन बच्चों को ऐसे काम करने से रोका जा सके.एक तरफ जहाँ देश का अरबों डॉलर काला धन विदेशों में जमा है वहीं एक-दो रूपये के लिए मुंहताज ये बच्चे सरकार के मुंह पर एक जोरदार तमाचा है.
ट्रेनों में सिसकता बचपन: सरकार लापरवाह
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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July 26, 2011
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