छूटने के बाद लोगों ने किया बीडीओ का स्वागत |
राकेश सिंह/१४ मई २०११
लोग बताते हैं कि पुरैनी के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी को पुरैनी बीडीओ के गार्डों ने बुरी तरह पीटा.बताया जाता है कि उनके दाहिने पैर की हड्डी भी टूट गयी और उनका इलाज पुरैनी के बाहर अस्पताल में हो रहा है.जाहिर सी बात है पुरैनी पीएचसी में इतने इलाज की व्यवस्था नही है.अधिकाँश लोग इस बात से सहमत हो सकते हैं कि सरकारी अस्पताल की स्थिति को सुधारने के लिए सरकार प्रयत्नशील है,पर स्थिति में उल्लेखनीय सुधार नहीं हो पा रहे हैं.सरकारी अस्पताल को बदहाल करने के पीछे चिकित्सकों और कर्मचारियों का भी बड़ा हाथ
है.प्राइवेट प्रैक्टिस से लाखों-लाख कमाने वाले चिकित्सकों में से अधिकांश अस्पताल की ड्यूटी के प्रति लापरवाह रहते है.जिनकी प्राइवेट प्रैक्टिस अधिक नहीं चलती है वे इसी फ्रस्ट्रेशन में ड्यूटी से गायब रहते है.ऐसे में आम लोग खास कर गरीबों को चिकित्सा की बेहतर सुविधा नही मिल पाती है.सरकारी दावों के विपरीत इन अस्पतालों में अधिकाँश दवाइयाँ भी नही मिलती हैं.पर अस्पताल के अधिकांश चिकित्सक चिकित्सा सुविधा तो दूर सहानुभूति भी देने में हिचकिचाते हैं.पुरैनी के लोग भी इस कांड के पीछे कुछ ऐसे ही कारण बताते हैं.कहते हैं पुरैनी
पीएचसी के भी चिकित्सकों का यही हाल है.बीडीओ प्रेमलाल मांझी का आवास पीएचसी से सटे है.इलाके के बीमार लोगों को अस्पताल का चक्कर देखकर अक्सर ये क्षुब्ध रहते थे.घटना के दिन भी एक बीमार को लेकर ये पुरैनी पीएचसी गए तो चिकित्सक नदारद थे.इस पर उन्होंने जब प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी के पास अपनी कड़ी आपत्ति प्रकट की तो उक्त चिकित्सा पदाधिकारी ने बीडीओ को ही भला-बुरा कहना शुरू कर दिया.बात बढ़ी फिर क्या था,पिट गए चिकित्सा पदाधिकारी. अपने को भगवान का रूप मामने वाले कुछ चिकित्सकों ने तो आंदोलन तक की धमकी दे डाली.जाहिर सी बात है ये इनका अपना तरीका है और इस तरीके से प्रशासन डर भी जाती है.क्योंकि चिकित्सक हड़ताल पर चले जाएँ तो क्या पता कितने बीमारों की जान भी चली जाय.प्रशासन के बड़े लोगों द्वारा सुलह कराने की कोशिश की गयी पर चिकित्सा पदाधिकारी जिद पर अड़े रहे.बीडीओ के समर्थन में उमड़ी उग्र भीड़ तो यहाँ तक कह रही थी कि अगर आज उक्त चिकित्सक मिल जाएँ तो हम ठीक से बता दें कि अस्पताल में रोगियों का ढंग से इलाज नही करने के क्या परिणाम हो सकते हैं.
अस्पताल प्रशासन के विरूद्ध उतरी महिलाएँ |
पीएचसी के भी चिकित्सकों का यही हाल है.बीडीओ प्रेमलाल मांझी का आवास पीएचसी से सटे है.इलाके के बीमार लोगों को अस्पताल का चक्कर देखकर अक्सर ये क्षुब्ध रहते थे.घटना के दिन भी एक बीमार को लेकर ये पुरैनी पीएचसी गए तो चिकित्सक नदारद थे.इस पर उन्होंने जब प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी के पास अपनी कड़ी आपत्ति प्रकट की तो उक्त चिकित्सा पदाधिकारी ने बीडीओ को ही भला-बुरा कहना शुरू कर दिया.बात बढ़ी फिर क्या था,पिट गए चिकित्सा पदाधिकारी. अपने को भगवान का रूप मामने वाले कुछ चिकित्सकों ने तो आंदोलन तक की धमकी दे डाली.जाहिर सी बात है ये इनका अपना तरीका है और इस तरीके से प्रशासन डर भी जाती है.क्योंकि चिकित्सक हड़ताल पर चले जाएँ तो क्या पता कितने बीमारों की जान भी चली जाय.प्रशासन के बड़े लोगों द्वारा सुलह कराने की कोशिश की गयी पर चिकित्सा पदाधिकारी जिद पर अड़े रहे.बीडीओ के समर्थन में उमड़ी उग्र भीड़ तो यहाँ तक कह रही थी कि अगर आज उक्त चिकित्सक मिल जाएँ तो हम ठीक से बता दें कि अस्पताल में रोगियों का ढंग से इलाज नही करने के क्या परिणाम हो सकते हैं.
जो भी हो, अपने कार्य और रहमदिल स्वभाव के कारण बीडीओ साहब थाने से ही छूट गए.अब बारी है चिकित्सा पदाधिकारी की, जिन पर बीडीओ ने जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल कर गाली देने का आरोप लगाया है, जिसमे जमानत आसान नही होगी.बेहतर होगा कि फिर से सुलह की प्रक्रिया शुरू हो और इस तरह की घटना की पुनरावृति नही हो.निश्चित रूप से इस तरह की घटना एक सभ्य समाज के लिए अच्छी बात नही है.
आखिर क्यूं महंगा पड़ रहा है प्रभारी चिकित्सक को?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 14, 2011
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BDO hai ya gunda.agar doctor kam nahi karte hain toh naukri se nikalo unhein...bheed juta ke galat kam ko justify nahi kiya ja sakta.
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