मधेपुरा प्रखंड में शंकरपुर बेतौना पंचायत का गौढेला गाँव.मधेपुरा जिला का ये गाँव एक समृद्ध गाँव के रूप में माना जाता है.कहते हैं कि इस गांव में कोई प्राकृतिक आपदा नही आती.२००८ के बाढ़ ने भी अगल-बगल के गाँव को अपनी चपेट में लिया पर कोशी का तांडव इस गाँव को नहीं छू पाया.गाँव में कोई मुकदमा नहीं है,यदि कोई विवाद भी होता है तो उसे गाँव में ही पंचायत से सुलझा लिया जाता है.यहाँ के लोगों का मानना है कि दैवीय शक्ति इस गाँव के लोगों कि रक्षा करते हैं और इसके पीछे है इस गाँव में रह रहे हजारों चमगादड़.
गाँव के लोग यहाँ चमगादड़ों की पूजा करते हैं.गौढेला में सैकड़ों वृक्षों पर हमेशा लटकते ये हजारों चमगादड़ सैकड़ों वर्ष से गाँव में रहते हैं.गाँव के लोग इसे सुख,शान्ति,समृद्धि और सद्भाव का प्रतीक मानते हैं.इसे आस्था कहें या अंधविश्वास पर आलम ये है कि गाँव की महिलायेंरोज ही इनकी पूजा करती ही हैं,यहाँ के पुरुष जब पढ़ाई,कमाई,नौकरी और व्यवसाय के लिए बाहर जाने लगते हैं तो पहले इन चमगादड़ों की पूजा करते हैं.
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गौढेला के ही प्रो० जसवंत कुमार बताते हैं कि इनकी वजह से यदि गाँव में कभी आग भी लगती है तो एकाध घर तक ही सिमट कर रह जाती है.कहते हैं कभी-कभी यदि कुछ चमगादड़ अगल-बगल के गाँव चले जाते हैं तो ग्रामीण मानते हैं कि किसी बात से चमगादड़ देवता नाराज हो गए हैं.ऐसी स्थिति में ये वाहन जाकर ताली बजाते है एयर माफी मांग लेते हैं.ऐसा करने पर चमगादड़ इन्हें माफ कर देते हैं और वापस गाँव आ जाते हैं.गाँव वाले इन चमगादड़ों की रक्षा भी जी-जान से करते हैं.गाँव के त्रिवेणी यादव,अनीता कुमारी और धर्मेन्द्र कुमार भी इनसे जुड़ी कई मान्यताओं और कहानियों के बारे में कहते हैं.बताते हैं कि एक बार सहरसा से चमगादड़ के शिकारी इनका शिकार करने गाँव पहुँच गए थे.ग्रामीणों ने इसका विरोध किया और शिकारियों को पकड़ कर पुलिस के हवाले किया था.
बहुत से लोग इस आस्था को भले ही अंधविश्वास माने पर एक बात तो तय है कि पूजा के नाम पर इन चमगादड़ों की सुरक्षा हो जाती है जिससे वन्य जीव संरक्षण अधिनियम का यहाँ शत-प्रतिशत पालन हो जाता है.पर्यावरण संतुलन के लिए आवश्यक बहुत से जीव जहाँ विलुप्ति के कगार पर हैं वहीं इस गाँव के लोगों द्वारा चमगादड़ को बचाए रखना निश्चित तौर पर एक स्वागतयोग्य कदम है.
जहाँ शान्ति और समृद्धि का प्रतीक है चमगादड़
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 08, 2011
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