ये चौकीदार है या रंगदार ?

चौकीदार बालदेव दास

रूद्र नारायण यादव/२८ फरवरी २०११
पुलिस की वर्दी में बात ही कुछ ऐसी है कि ये अगर बदन पर चढ़ जाए तो रौब ऑटोमेटिक आ ही जाता है..बहुत से लोग कहते हैं कि ये चाहे डीजीपी के शरीर पर हो या फिर किसी चौकीदार के शरीर पर,अपनी-अपनी जगह रौब तो दीखता ही है,और ये यदि पुलिस के छोटे  कर्मी के शरीर पर हो तो रौब कुछ हट के  बनता है.दरअसल मनोवैज्ञानिक इसके पीछे कुछ और ही कारण बताते हैं.उनका मानना है कि ये पुलिस के ये  छोटे कर्मचारी
अपने से बड़े पदाधिकारियों की गालियाँ और झाड़ अक्सर सुनते रहते हैं और इसी बात का गुस्सा वो अपनी बीवी और क्षेत्र के कमजोर लोगों पर उतारते रहते हैं.

पीड़ित महावीर और गुलाब दास
      अब कुमारखंड थाना के जदुआपट्टी गाँव के ही चौकीदार बालदेव दास को लीजिए.है तो बंदा मामूली चौकीदार,पर ताव इनके किसी डीजीपी से कम नही.गाँव के महावीर दास,गुलाब दास जैसे कई लोग  बताते हैं कि गाँव के गरीबों और मजदूरों को बात-बात पर पीट देना जैसे इनकी दिनचर्या में शामिल हो.रंगदार की तरह ये कहते हैं कि जो हमसे टकराएगा उसे गाँव से बाहर कर देंगे.गाँव के महावीर दास,गुलाब दास जैसे कई लोग इनके रौब का शिकार बनते रहते है.ये कहते हैं कि बालदेव इन्हें बेमतलब भी पीट देता है और थाने पर इनकी शिकायत करना निरर्थक है.
    उल्लेखनीय है कि सरकार ने चौकीदारों की नौकरी को स्थायी और सरकारी घोषित कर दिया है पर ढर्रा वही पुराना है.इन्हें गाँव में ही पदस्थापित कर दिया गया है.यहाँ ये बात स्वाभाविक हो जाती है कि ये अपनी स्थानीय राजनीति के तहत व्यक्तिगत दुश्मनी अपनी वर्दी का रौब दिखाकर निकालें.ऊपर से इन्हें जी-हजूरी कर स्थानीय थाना का कुछ समर्थन तो मिल ही जाता है.इस समस्या का समाधान तब तक नही होगा जब तक चौकीदारों को दूसरे क्षेत्रों में पदस्थापित न किया जाय.एसपी के जनता दरबार में गुहार लगाने पहुंचे महावीर दास और गुलाब दास को न्याय मिल पाता है या नही ये तो समय बताएगा पर फिलहाल दोनों को उक्त चौकीदार के डर से भागे-भागे फिरना पड़ रहा है,जो पुलिस के लिए अशोभनीय है.
ये चौकीदार है या रंगदार ? ये चौकीदार है या रंगदार  ? Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on February 28, 2011 Rating: 5

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