हर माँ-बाप के ढेर सारे सपनों में से एक सपना जरूर होता है कि उसके बच्चे उसके बुढापे का सहारा बनें.दूसरी तरफ हर बच्चे का भी ये दायित्व होता है कि वे बीमार और बूढ़े बाप की सामर्थ्य भर देखरेख करें.पर कभी-कभी मानवता इस कदर गिर जाती है कि लोग सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि इससे तो बिना औलाद के रहना ही अच्छा.पिछली रात को भी
मधेपुरा सदर अस्पताल में जो हुआ वो मानवता को झकझोर देने वाला था. सदर अस्पताल मधेपुरा के बरामदे पर किसी बेटे ने अपने बाप को यूं ही मरने के लिए छोड़ दिया.गंभीर रूप से बीमार पड़े इस व्यक्ति की हालत इतनी खराब है कि ये अपना नाम तक नही बता पा रहा है.इस व्यक्ति के सारे सपने बिखर चुके हैं और
इसे देखने वाला कोई नही है आज इसके पास.लोगों का कहना है कि भगवान भरोसे पड़े इस व्यक्ति को किसी ने (शायद इसके बेटे ने ही)अस्पताल में शायद इसलिए छोड़ दिया कि शायद इसका कोई इलाज यहाँ हो जाय,पर यहाँ भी इसे ठीक से देखने वाला कोई नही है.कुत्ते आते हैं और सूंघ कर चले जाते है कि ये ज़िंदा है या मुर्दा?अगर मुर्दा हो तो शायद भोजन बन जाये.अस्पताल प्रशासन ने मीडिया को देखते ही औपचारिकता पूरा करने का ड्रामा किया,कहा हम इसका इलाज भी कर रहे हैं और पुलिस को भी इसके बारे में सूचना दे दी गयी है.परन्तु इस व्यक्ति की स्थिति देखकर हकीकत कुछ और बयां कर रही है.इसके इलाज की बात अस्पताल प्रशासन का रटा -रटाया डायलॉग लग रहा है.यदि इसका इलाज शुरू हुआ रहता तो ये किसी कमरे में बिस्तर पर रहता न कि इस तरह ये कुत्तों के हवाले छोड़ दिया जाता.एक तो गिरी मानवता का परिचय इसके कलयुगी बेटों ने दिया और दूसरा मधेपुरा सदर अस्पताल ने.शायद अब भी अस्पताल प्रशासन इसकी सुधि ले या फिर इश्वर इसके कलयुगी बेटों को ही सदबुद्धि दे कि एक व्यक्ति की जान बच सके.
मधेपुरा सदर अस्पताल में जो हुआ वो मानवता को झकझोर देने वाला था. सदर अस्पताल मधेपुरा के बरामदे पर किसी बेटे ने अपने बाप को यूं ही मरने के लिए छोड़ दिया.गंभीर रूप से बीमार पड़े इस व्यक्ति की हालत इतनी खराब है कि ये अपना नाम तक नही बता पा रहा है.इस व्यक्ति के सारे सपने बिखर चुके हैं और
इसे देखने वाला कोई नही है आज इसके पास.लोगों का कहना है कि भगवान भरोसे पड़े इस व्यक्ति को किसी ने (शायद इसके बेटे ने ही)अस्पताल में शायद इसलिए छोड़ दिया कि शायद इसका कोई इलाज यहाँ हो जाय,पर यहाँ भी इसे ठीक से देखने वाला कोई नही है.कुत्ते आते हैं और सूंघ कर चले जाते है कि ये ज़िंदा है या मुर्दा?अगर मुर्दा हो तो शायद भोजन बन जाये.अस्पताल प्रशासन ने मीडिया को देखते ही औपचारिकता पूरा करने का ड्रामा किया,कहा हम इसका इलाज भी कर रहे हैं और पुलिस को भी इसके बारे में सूचना दे दी गयी है.परन्तु इस व्यक्ति की स्थिति देखकर हकीकत कुछ और बयां कर रही है.इसके इलाज की बात अस्पताल प्रशासन का रटा -रटाया डायलॉग लग रहा है.यदि इसका इलाज शुरू हुआ रहता तो ये किसी कमरे में बिस्तर पर रहता न कि इस तरह ये कुत्तों के हवाले छोड़ दिया जाता.एक तो गिरी मानवता का परिचय इसके कलयुगी बेटों ने दिया और दूसरा मधेपुरा सदर अस्पताल ने.शायद अब भी अस्पताल प्रशासन इसकी सुधि ले या फिर इश्वर इसके कलयुगी बेटों को ही सदबुद्धि दे कि एक व्यक्ति की जान बच सके.
कलयुगी पुत्र की करतूत:बीमार बाप को अस्पताल में छोड़ भागा.
Reviewed by Rakesh Singh
on
November 29, 2010
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