मंडल वि०वि०: बीते साल में 4 कुलपति, फिर भी टूट कर बिखरे छात्र-शिक्षक के सपने

|मंजू कुमारी|04 जनवरी 2014|
सामजिक न्याय के संघर्ष के इस जमीन से उच्च शिक्षा की संभावनाओं की यात्रा शुरू करने के लिए वर्ष 1992 में स्थापित भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के लिए वर्ष 2013 काफी असंतोषजनक रहा. आलम यह रहा कि एक साल में चार कुलपति भी मिलकर बदहाली की बारिश में छात्र एवं शिक्षकों के भींग रहे सपने को बचा नहीं सके.
      उच्च न्यायालय के फरमान से बेचैन कुलपति तथा पदाधिकारी एक दूसरे के ईमानदारी को ढोंग तथा संघर्ष को साजिश बताते रहे और देखते ही देखते वर्ष 2013 हाथों से फिसल गया. पठन-पाठन का माहौल समाप्त हो गया और शिक्षकों की प्रोन्नति और प्रोन्नत शिक्षकों को CAS ( कैरियर एडवांसमेंट स्कीम) के तहत प्रोन्नति की तिथि का निर्धारण प्रभारी कुलपति के आदेश की बाट जोहता रहा. समस्या कुलपति की सोच में है या सच में, इसका पता किसी को चल नहीं पाया. मसलन पूरे साल विश्वविद्यालय आंतरिक तथा बाह्य कलह से जूझता रहा.
      जानकारी के अनुसार वर्ष 2013 में धान की क्यारियों से कोशी की कछार तक फैले मंडल विश्वविद्यालय में अध्ययनरत छात्रों की पहाड़ सी उम्मीदों को पूरा करने के लिए डा० अरूण कुमार, डा० राम विनोद सिन्हा, डा० अनंत कुमार तथा कार्यवाहक कुलपति के रूप में डा० आर० एन० मिश्रा ने कुलपति की कुर्सी संभाली.
योगदान के बाद अपना लाव-लस्कर तैयार कर कुलपति डा० अरूण कुमार राज्यपाल कार्यालय समेत शिक्षकों तथा कर्मचारियों की नब्ज टटोलने में कामयाब रहे और मनोनुकूल विश्वविद्यालय को नचाते रहे. उनके कार्यकाल में वैसे शिक्षकों के सपने जीवित रहे जो उनके आसपास मंडराते रहे. देखते ही देखते पदाधिकारियों के घर घर रौशन होने लगे और ठेकेदारों तथा प्रेस मालिकों की तो मानो लॉटरी ही खुल गई. न्याय की कलम चली और डा० अरूण कुमार राजधानी में बैठकर भविष्य की जुगार में लग गए.
      कुलाधिपति कार्यालय के फरमान से कुलपति की कुर्सी ने अति बुजुर्ग तथा उम्रदराज थरथराते कुलपति डा० राम विनोद सिन्हा को आसरा दिया, पर न्यायालय ने एक सप्ताह के अंदर ही उन्हें पदच्युत कर दिया. किन्तु अल्प अवधि में ही उन्होंने मंडल विश्वविद्यालय के इतिहास में ऐसा कम कर दिया जिसे जानने के बाद कोई हैरान हो सकता है. हैरान नहीं भी हों तो यह जरूर जान जायेंगे कि किसी संस्था के लिए नेता तथा कुलपति का गठजोर कितना घातक होता है. उनके कार्यकाल में हुए खर्च को यदि खंगाला जाय तो अदभुत जानकारियाँ मिल सकती हैं.
      इसके बाद प्रभारी कुलपतियों का दौर चला. डा० अनंत कुमार कुलपति का प्रभार ग्रहण किए. छात्र तथा शिक्षकों के हित में काम करने लिए उम्दा पदाधिकारियों की टीम तैयार की गई. सबकुछ ठीक-ठाक ही चल रहा था कि न्यायालय ने वरीयता के आधार पर एम.एल.टी. कॉलेज सहरसा में कार्यरत डा० आर.एन.मिश्रा को कुलपति की कुर्सी सँभालने का फरमान जारी कर दिया. डा० मिश्रा के योगदान के बाद विश्वविद्यालय स्तरीय राजनीतिक सरोकार से जुड़कर विश्वविद्यालय को सुधारने का प्रयास प्रारंभ किया गया. अपने चहेतों को पदाधिकारी की कमान सौंपी गई. विश्वविद्यालय में छात्र संघ का चुनाव की घोषणा जहाँ फाइलों में दम तोड़ रही थी वहीं मार्च तक पूर्ण वेतन पाने वाले शिक्षकों को आंशिक वेतन ने रूला दिया. विश्वविद्यालय में कार्यरत कर्मचारियों पर कुलपति की नजर टेढ़ी हुई तो वे समस्याओं के भंवर में फंस गए.
धरना-प्रदर्शन तथा हड़ताल मंडल विश्वविद्यालय की नियति बन गई और यहीं से हुक्मरानों के भाग्य की लकीर टेढ़ी हो गई. विश्वविद्यालय में कार्यरत पूरी बिरादरी ने जब कुलपति के खिलाफ मोर्चा खोला तो उनकी काबिलियत, कला और क्रांति समाप्त हो गई और उन्हें न्यायालय के आदेश ने इतना पंगु कर दिया कि वे अब चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते. लिहाजा छात्रों और शिक्षकों के सपने टूट कर बिखर गए.
मंडल वि०वि०: बीते साल में 4 कुलपति, फिर भी टूट कर बिखरे छात्र-शिक्षक के सपने मंडल वि०वि०: बीते साल में 4 कुलपति, फिर भी टूट कर बिखरे छात्र-शिक्षक के सपने Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on January 04, 2014 Rating: 5

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