आख़िरी गरीब आदमी///व्यंग

आपकी यह कोचिंग संस्था कहाँ तक है? नवागन्तुक ने अचानक मेरे समीप आकर हठात प्रश्न दागा.
वर्ग 1 से 8 तक. मैंने संक्षिप्त उत्तर दिया.
और फीस का रेट क्या है? उसने उत्सुकता के साथ पूछा.
बस, 1 से 4 तक सौ रूपये और 5 से 8 तक डेढ़ सौ रूपये मात्र. नामांकन शुल्क सौ रूपये सबके लिए सामान. मैंने सहज भाव से उसे बताया.
वर्ग 4 के बाद सीधे डेढ़ गुना ! यह तो सरासर अन्याय है. उसका आश्चर्य मिश्रित स्वर खारिज हुआ.
वर्ग 4 के बाद विभिन्न स्कूली प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में हमें अधिक उर्जा खपत करनी पड़ती है श्रीमान ! अत: अधिक शुल्क की गुंजाइश बन जाती है. मैंने सपाट सा उत्तर दिया.
फिर भी बहुत अधिक है. उसने अपने चेहरे पर असीम परेशानी की लकीर उभार कर कहा.
आपका परिचय? शातिर पत्रकार की नाई उसकी दनादन प्रश्नों की बौछारों से उबकर मैंने अतिसंक्षिप्त प्रतिप्रश्न ठोका.
अपने एकलौते होनहार सपूत का मैं निहायत गरीब बाप हूँ, सर ! उसने दीनतापूर्वक शब्दों के साथ अपना परिचय परोसा.
      उसके नायब व्यक्तित्व से अभिभूत होकर मैंने नीचे से ऊपर तक उसका दुबारा मुआयना किया गोया, वह साधू के वेश में कोई चोर हो.
आप कहीं से मुझे गरीब नजर नहीं आते. गर हैं भी तो बताइये. दिनभर की आपकी मजदूरी के लिए जेब को कितनी तकलीफ उठानी पड़ेगी? मैंने भेदपूर्ण नज़रों से उसे घूरा.
डेढ़ सौ से कम नहीं. सकुचाते हुए मगर ईमानदारी के साथ उसने तपाक से उत्तर दिया.
आपकी दिनभर की दिहाड़ी हमारी महीने भर की मजदूरी पर भारी है.गरीबी का शिकार आखिर कौन है? उपदेश देना आसान है पर उसपर अमल करना उतना ही मुश्किल है, जनाब! मैंने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा.
सर, सो तो ठीक है, लेकिन मैं सचमुच भूमिहीन व्यक्ति हूँ. अपनी विवशता का आधार पेश कर मुझसे दया की उम्मीद जताई.
इस सुदूर देहात में मानक शिक्षा का अलख जगाने की हिम्मत पस्त होती जा रही है श्रीमान. यहाँ निपट मजदूरों की तुलना में जमींदारों की हालत कहीं अधिक नाजुक है.यहाँ जो भी पधारे हैं सबों ने आर्थिक रूप से पंगु घोषित करने में कतई संकोच नहीं किया.आप आख़िरी गरीब आदमी हैं जो समझदार भी है और चालाक भी. इन आधा दर्जन उच्च शिक्षित प्रतिभाशाली बेरोजगार शिक्षकों के भी परिवार हैं और सपने भी.
    काहिलों और अयोग्यों से सरकार ने स्कूलों को आबाद कर शिक्षा के स्तर को बर्बाद करने कला बीड़ा उठा रखा है.तभी तो आशंकित साधनहीन अभिभावकों ने हम शिक्षित बेरोजगारों का दामन थामने की गलती की है. मैंने अपनी उखड़ी साँसों पर काबू पाकर एक लंबी जम्हाई ली.
    सर, आपकी बातों में दम है. आपने सौ फीसदी सही कहा है. नवागंतुकों की परेशानी पर अब कोई सिलवटें नजर नहीं आ रही थी.
   अब उसकी आत्मा शायद यादों की खाई में खोकर सुख और संतोष की साँसें ले रही थी:-
  कई अमीरों की महरूमियत देखी कि अब पूछ न बस,
    अब मुझे गरीब होने का एहसास नहीं होता.

--पी० बिहारी बेधड़क
 कटाक्ष कुटीर, महाराजगंज
 मधेपुरा.
आख़िरी गरीब आदमी///व्यंग आख़िरी गरीब आदमी///व्यंग Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 21, 2012 Rating: 5

1 comment:

  1. madhepura times ka daily visitor hone ke nate main rakesh sir se kahunga ki wo rachnatamakta laye site designing mein

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