रविवार विशेष- व्यंग-क्योंकि अब हम ईमानदार नही रहे!

कुटिल बरसात से निजात पाकर मैं अपनी झुकी झोंपड़ी को बांस-बल्ले का सहारा दे रहा था.हठात स्वप्न गुरु अष्टावक्र जी से मेरा नेटवर्क बी०एस०एन०एल० की तरह जुड गया.मैंने सुसंस्कारी शिष्य की तरह उन्हें प्रणाम किया,मगर उनका बीमार आशीर्वाद खारिज हुआ.
    गुरुधर्म निभाते उन्होंने सहानुभूतिपूर्वक मुझसे पूछा,"बेधड़क क्या कर रहे हो?"मुझे हंसी आ गयी.हँसते हुए मैंने कहा,'आप देख तो रहे हैं,झोंपड़ी को सीधा कर रहा हूँ.' उन्होंने हमदर्दी जताते हुए कहा.'तुम जैसे गरीबों के दुःख-दर्द को दूर करने के वास्ते सरकार इंदिरा आवास बाँट रही है.तुम्हारी बारी नही आई क्या?' उन्होंने भींगे स्वर में कहा.
      मैंने दिलजले आशिक की भांति नाराज स्वर में कहा,"और शायद आयेगी भी नही.हम गरीब की गाँठ में ऑफिस को एडवांस देने के लिए कुछ रहे तब तो! मुखिया,पंचायत सेवक और ब्लाक कार्यालय के चक्कर लगाकर लगन मिलाने हेतु दलाल महाराज के हाथों भी माल थमाना पड़ता है गुरुजी! संपन्न लोग ही नसीब वाले होते हैं जो सरकारी अनुदान का भरपूर लाभ उठा रहे हैं.मकान पर मकान बना रहे हैं.अपनी औकात जता रहे हैं और हम गरीबों को आँखें भी दिखा रहे हैं.नीचे से ऊपर तक कमीशनखोरों की श्रृंखला बनी हुई है.डीएम,डीडीसी,थानेदार और बड़े बाबू की धड-पकड़ से तस्वीर स्पष्ट हो रही है."मैं लगभग हांफने सा लगा.
          गुरुजी ने करारा  कटाक्ष किया,"बेटे,आज हमाम में सभी नंगे हैं,जो शेष बच गए वे अधनंगे हैं.नौकरीशुदा मोटी तनख्वाहधारी गबन-घोटाले में महारथ हासिल ये सरकारी सेवक अतिरिक्त सेवा शुल्क लेने में कभी शरमाते नही हैं.बिहार का अतीत बेशक शानदार रहा है.बुद्ध-महावीर की यह धरती गौरव-गरिमा का नायाब नमूना रही है.आज भी भारत का शायद ही कोई ऐसा राज्य होगा जो यहाँ की मिट्टी-पानी और प्रतिमा से टक्कर ले पाए, मगर यहाँ ईमानदारों की संख्यां करीब-करीब वन्य पशुओं की तरह घटकर रह गयी है.शायद गिद्धों की तरह विलुप्ति के कगार पर है.अपनी किस्मत पर बिहार जार-बेजार रो रहा है.आठ-आठ आंसू बहा रहा है और बेईमानों का भरा-पूरा कुनबा मौज में मुस्कुरा रहा है."गुरुजी कुछ विचलित नजर आये.
      अपने गुरुजी के शुरुआती संबोधन से मैं अति-आह्लादित हुआ पर उनके अंतिम आशय को समझकर मेरे अमाशय में ऐंठन शुरू हो गयी.अपने गृह राज्य की छिछालेदारी से मर्माहत होकर मैंने विनम्र विरोध किया," गुरुवार,आपकी कटूक्ति मुझे हजम नही हुई.आर्थिक उदारता के इस युग में जहाँ सारा संसार मुद्रा मोचन की होड़ में शोर मचा रहा है,बिहार केवल साधू संतों और महात्माओं को पैदा करने की फैक्ट्री भर बना रहेगा क्या? आज बिहार क्या,सारा संसार इस विकट  बीमारी से ग्रसित है.जो जहाँ,जिस स्थिति में है;खुद का ख्याल कर औरों को हलाल करने में कतई कोताही नही बरतता.तभी तो खाद्य पदार्थों से लेकर पेय पदार्थों में  मिलावट की इतनी शिकायतें आ रही हैं.जीवन रक्षक दवाईयां जीवन हर लेती है, लेकिन खटमल मार रात में खटमल में डालने के बावजूद खटमल रात में हमें मुंह चिढाते नजर आते हैं.
    जब नैतिकता का लोप आज सर्वत्र हो चुका है तो केवल बिहार पर प्रहार करना सरासर अन्याय है.आपका कोप पक्षपात पूर्ण है.सट्टा के कलंक से लिपा-पुता पूर्व क्रिकेट कप्तान मो० अजहरूदीन ने भी अपनी टोपी को लेकर ऐसी ही कुछ कटु टिप्पणी कर डाली थी." मैं उत्तेजित हो उठा.
  मेरी मानसिक दशा और हार्दिक वेदना का अनुमान कर गुरुजी ने मुझे समझाने की गरज से कहा,"वत्स,तुम बुरा मान गया.अरे! गुस्सा  उसी पर किया जाता है जिसपर हमारा स्नेह,प्यार खर्च होता है.तुम्हे शायद ही पता होगा मैं राजा जनक के राजदरबार का कभी राजदार भी रहा हूँ.बिहार के प्रति मेरा मोह कुछ अधिक है.अत: बिहारियों के नैतिक मूल्यों का मूल्यांकन करना मेरा नैतिक कर्तव्य बनता है." वे अति चिंतातुर नजर आये.
    मैंने कुतर्क मिसाइल दागा," गुरुजी,नैतिकता का तकाजा तो यही है पर यह भी सही है कि खरबूजे का रंग देखकर खरबूजा रंग बदलता है,चाहे कम या अधिक.आज युग बढ़ रहा है जेट गति से और हम बढ़ेंगे भेंड गति से तो हमारी खटिया खादी हो जायेगी,लुटिया डूब जायेगी.औरों की अपेक्षा हम फिसड्डी रह जायेंगे,मानव जाती का दुर्लभ नस्ल कहलायेंगे."
      गंभीरता के साथ गुरुजी ने कहा,"बेधड़क,सच पूछो तो  इस धराधाम के अनुपम प्राणी मानव अपनी मर्यादा को बिलकुल तिलांजलि देने पर उतारू हो गए हैं.जहाँ जनता के नुमाइंदे की नीति, नीयत और सिद्धांतों में कोई तालमेल नही है.गाँठ का पूरा शातिर नेता एन-केन-प्रकारेण वोटरों को फुसला पटा कर द्रव-द्रव्य प्रदान कर चुनाव वैतरणी पार कर लेते हैं.भाग्य भरोसे भोली जनता बिकने को सदैव तैयार रहती है.ईमानदारी गायब हो चुकी है."उन्होंने सहजता से कहा.
      अब मैं गुरुजी के तर्क से सौ फीसदी सहमत हो गया जिस प्रकार आज अमेरिका के शर्त से सारा संसार निहाल हो उठता है.मजाकिया लहजे में मैंने गुरुजी से कहा,"गुरुजी,मनु का वंशज ही महज अभागा है.इधर ज़िंदा भगवान अभावों में दंड झेल रहा है.भला हो उस साहसी इंसान का जो तथाकथित इन मूक भगवानों का अपहरण कर माल बना लेता  हैं.भले ही आस्तिकों की जमात हाय-तौबा मचाती रहे."
       गुरु की बोली गोली सी निकल पडी,"पत्थर के बुत  खुद की सुरक्षा नही कर सकते और आदम की औलाद खुद ईमानदारी की सीमा निर्धारित कर सकती तभी तो......आज जाति-धर्म और राजनैतिक-निष्ठां की दुहाई देने वाले शिखर पुरुषों का भी बुरा हाल है.गांधी को गाली देकर अपनी राजनीति सुलझाने वाली दलित नेत्री मायावती की माया का विस्तार कितना हो पाया,कह नही सकता मगर अब दलित-साहित्य के प्रशिक्षु साहित्य सेवी कथा सम्राट प्रेमचंद को पानी पीकर गाली दे रहे हैं.सेवा पर सर्वत्र स्वार्थ भारी है." मैं कुछ कहना चाहा पर गुरुजी अंतर्धान हो चुके थे.
                                                              __पी०बिहारी'बेधड़क"
रविवार विशेष- व्यंग-क्योंकि अब हम ईमानदार नही रहे! रविवार विशेष- व्यंग-क्योंकि अब हम ईमानदार नही रहे! Reviewed by Rakesh Singh on November 21, 2010 Rating: 5

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