अतिक्रमण ने किया हाल, सड़क बिना हजारों बेहाल

अतिक्रमण के हजारों मामले जिले भर में लोगों का जीना दूभर कर रही हैं. खासकर कई जगह सड़कों के अतिक्रमणों ने तो हजारों लोगों को रूला कर रखा है. आवागमन में परेशानी तो अलग, इस इलाके के लोग यहाँ बेहतर जिन्दगी कि कल्पना भी नहीं कर पा रहे हैं. ये सोचकर भी सहमे रहते हैं कि यदि घर में अचानक कोई सख्त बीमार हो जाए तो उसे अस्पताल तक ले कैसे जायेंगे.

मधेपुरा जिले के उदाकिशुनगंज प्रखंड के नयानगर पंचायत के वार्ड नं. 11 के लोग समेत आसपास के वे लोग भी परेशान हैं जो इस सड़क से होकर गुजरते हैं. ये सड़क नयानगर पंचायत के वार्ड नं. 11 के तिवारी बासा में मुख्य रूप से मौजूद है जो ग्वालपाड़ा प्रखंड सीमा में इजहार आलम के घर से तिवारी बासा पुल तक जाती है. स्थानीय सियाराम मिश्र समेत अन्य गमीं बताते हैं कि इस ग्रामीण सड़क की कुल लम्बाई करीब डेढ़ किलोमीटर और चौड़ाई करीब 12 फीट के आसपास होगी, पर तिवारी बासा में ही ये सड़क जगह-जगह अतिक्रमित है. कहीं-कहीं तो पूरी तरह. हालत ये है कि लोगों को बगल होकर भी गुजरना पड़ता है. 

ऐसा नहीं है कि ये समस्या प्रशासन के नजर में नहीं आई है, पर प्रशासन से जुड़े लोग एक-दूसरे पर जवाबदेही फेंक

कर भाग जाना चाह रहे हैं. ग्वालपाड़ा प्रखंड के रामगंज, वार्ड नं. 10 के सियाराम मिश्र ने जब इसे अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए अनुमंडल लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी, उदाकिशुनगंज में परिवाद दायर किया तो अंचल अधिकारी, उदाकिशुनगंज ने सम्बंधित जमीन जिला परिषद् के नाम होने की बात कहकर उनके क्षेत्राधिकार से बाहर का मामला कहकर मामले को ख़त्म करने की गुजारिश की. जबकि अंचल अमीन ने जमीन को सड़क की बताते हुए इसके 13 लोगों द्वारा अतिक्रमित होने का प्रतिवेदन समर्पित किया था. अंचलाधिकारी, उदाकिशुनगंज ने तो अतिक्रमण वाद संख्या 6/2023-24 दायर करते हुए मो० एनुल समेत अन्य को अतिक्रमण के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए नोटिश भी कर दिया था. पर ढ़ाक के तीन पात. अंत में अनुमंडल लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी, उदाकिशुनगंज ने यह कहते हुए मामले का निपटारा कर दिया कि उक्त जमीन जिला परिषद् की है, इसलिए परिवादी या तो जिला परिषद् या जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के पास आवेदन कर सकते हैं.

परिवादी ने जब जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के पास अपनी शिकायत रखी तो इस बार जिला परिषद् ने अपने रिपोर्ट में अमीन और अतिक्रमण की बात को दरकिनार करते हुए कहा कि लोग निजी भूमि पट टाट फूस का घर बनाकर रह रहे हैं, शेष लोग नदी की भूमि पर बसे हुए हैं. यह भी लिखा कि साक्ष्य मांगने पर कोई भी कागजात/ दस्तावेज इनके द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया. अंतिम निर्णय यही रहा कि नदी किनारे सड़क बनाने पर सरकार द्वारा निर्णय लिया जाएगा. परिवादी निर्णय लेने तक प्रतीक्षा कर सकते हैं.

अब देखना है कि कौन उद्धारक सामने आकर इनकी समस्या सुलझा पाता है. जबकि उक्त मामले की शुरुआत ही मुख्यमंत्री को दिए आवेदन से हुई थी. जाहिर है फाइलों के जाल में आप राहत की उम्मीद शायद ही कर सकते हैं. शायद पिपरा, नयानगर, नवटोल, रामगंज, खोकसी समेत दर्जनों गांवों के लोगों की नियति में आजादी के 77 साल बाद भी इन्हीं हालातों में जीवन बसर करना लिखा है. सड़क पर सरकार के दावे और वादे यहाँ बेमानी लगते हैं. शायद ऐसे ही हालातों को देखकर आदम गोंडवी ने लिखा था:  

तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है, 

मगर ये आंकडें झूठे हैं ये दावा किताबी है.

(Report: R.K.Singh)

अतिक्रमण ने किया हाल, सड़क बिना हजारों बेहाल अतिक्रमण ने किया हाल, सड़क बिना हजारों बेहाल Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 12, 2024 Rating: 5

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