स्थानीय बुजुर्ग 62 वर्षीय प्रोफेसर शिवेंद्र आचार्य बताते हैं कि उनके पूर्वज उदयनाचार्य ही भगवान जगन्नाथ को कडामा लाए थे और सर्वप्रथम उन्होंने ही प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना की थी.
जगन्नाथपुरी से भगवान जगन्नाथ के कड़ामा गाँव तक आने की कहानी काफी रोचक है.
एक प्रसिद्ध कहानी के अनुसार जब भारत में बौद्ध धर्मावलंबी अपने धर्म का वृहद रूप से विस्तार कर रहे थे तब उनके धर्मगुरू का शास्त्रार्थ उदयनाचार्य से काशी में हुआ जिसमें किसी प्रकार का निष्कर्ष न निकलते देख दोनो ही ने यह निर्णय निकाला की एक उँची इमारत पर से बौद्ध धर्मगुरू इश्वरो नास्ति कहते हुए नीचे कूदेंगें और उदयनाचार्य इश्वरो एस्टी कहते हुए नीचे कूदेगें जो बच गया वह जीत जाएगें.
निर्णय ऐसे ही निकला दोनो उँची इमारत से कूदे जिसमे बौद्ध धर्म गुरू की मृत्यु हो गई और उदयनाचार्य जीवित रह गए और जीत गए लेकिन उदयनाचार्य ने एक ब्रह्म हत्या का पाप अपने सर पर लेते हुए पश्चाताप करने के लिए काशी विश्वनाथ सहित कई बड़े-बड़े मंदिरों में पूजा अर्चना की लेकिन सभी जगह स्वप्न में आकर भगवान ने उन्हें जगरनाथ पुरी मंदिर में जाकर वहां पश्चाताप करने की बात कही जिसके बाद उदयनाचार्य सीधे जगन्नाथ पुरी मंदिर पहुंचे और वहां भगवान के दर्शन को कई दिनों तक भूखे प्यासे खड़े रहे. वहाँ के मूर्धन्य पुजारियों के द्वारा एक योजन दूर ही उदयनाचार्य को यह कहकर रोक दिया गया की उनपर ब्रह्म हत्या का दोष है वह पूजा नहीं कर सकते. जिसके बाद भगवान जगन्नाथ ने उदयनाचार्य को दर्शन देते हुए उन्हें ब्रह्महत्या के दोष से मुक्त होने का मार्ग बताया और जाने का आग्रह किया.
जगन्नाथ पुरी से वापस आते समय उदयनाचार्य ने भगवान जगन्नाथ से कहा कि हम मिथिला वासी हैं और आप साक्षात विष्णु व राम के अवतार हैं इस नाते आप मिथिला के दामाद हुए इसीलिए जब मैं इतनी दूर आपके दर्शन हेतु आया हूं तो मुझे कुछ ना कुछ विदाई चाहिए, जिसके बाद भगवान जगन्नाथ ने यह सोचा कि अगर इसी तरह से कोई भी व्यक्ति मिथिला से आता है तो वह किन-किन को विदाई दे पाएंगे इसके लिए उन्होंने उदयनाचार्य से यह स्पष्ट रूप से कहा कि मैं स्वयं साल में एक बार आप लोगों को दर्शन देने हेतु मिथिला जाऊंगा. प्रत्येक वर्ष भादौ माह के कृष्ण पक्ष में होने वाली कृष्णाष्टमी के अवसर पर पूरे कड़ामा गांव के लोग गाँव स्थित विशहारा मंदिर परिषर स्थित जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ सहित बलराम, मां दुर्गा, भगवान शंकर इत्यादि की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना करते हैं.
स्थानीय ग्रामीण उदयकान्त आचार्य बताते हैं कि जितने देर तक भगवान जगन्नाथ की पूजा अर्चना कड़ामा गांव में होती है उतने देर जगन्नाथ पुरी मंदिर का मुख्य द्वार बंद रहता है.
बताया जाता है कि कड़ामा गांव में पहले जगन्नाथ जी का एक भव्य मंदिर हुआ करता था जो कि 1934 में आए भीषण प्राकृतिक आपदा के कारण पूरी तरह से ध्वस्त हो गया था.
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