बढ़ते तापमान से खेतों में पड़ी दरार, किसानों ने कहा जिंदगी में देखा पहली बार


मुरलीगंज प्रखंड के सभी 17 पंचायतों में एक पखवारा से अधिक समय से बारिश नहीं होने के कारण सूखे जैसे हालात दिखने लगे हैं. पंपिंग सेट से पानी डालकर रोपनी करने वाले किसानों की अब पानी के अभाव में खेती बुरी तरह प्रभावित हो गई है. मानसून की इस बेरुखी से परेशान किसान खेतों में दरारें देख अब सुखाड़ की आशंका से विचलित होने लगे हैं.

मौसम की बेरुखी से किसानों के चेहरे पर मायूसी है. प्रखंड क्षेत्र के खेतों में दरारें दिख रही हैं. किसानों के द्वारा लगाए गये धान के पौधे बारिश नहीं होने की वजह


से जल रहे हैं. वहीं बारिश नहीं होने की वजह से किसान लगातार अपने खेतों में पटवन करने के बाद भी परेशान हैं.

एक पखवारा से अधिक समय से बारिश नहीं होने के कारण सूखे जैसे हालात दिखने लगे हैं. पानी के अभाव के कारण किसानों की खेती बुरी तरह प्रभावित हो गई है. मानसून की इस बेरुखी से परेशान किसान खेतों में दरारें देख अब सुखाड़ की आशंका से विचलित होने लगे हैं. धान की खेती के लिए वर्षा का इंतजार कर रहे किसान अब अपने-अपने धान के बिचड़े को बचाने की उपाय करने में लग गए हैं. पानी नहीं बरसने और चिलचिलाती धूप के कारण धान के इन बिचड़े के साथ-साथ गरीब किसानों के चेहरे भी पीले पड़ने लगे हैं. 

मुरलीगंज प्रखंड के पकिलपार गांव के प्रगतिशील किसान रघुनंदन यादव ने बारिश नहीं होने पर चिंता जताते हुए कहा कि 5 एकड़ में धान की रोपाई करनी थी. इसके लिए बाजार से महंगा बीज खरीद कर बिचड़ा भी तैयार किया, लेकिन बारिश नहीं होने के कारण अब महंगा पटवन कर बिचड़ा को बचाने में लगे हैं. यदि समय पर बारिश नहीं हुई तो हम किसानों को काफी परेशानी और तंगी का सामना करना पड़ेगा. वहीं गांव के पवन कुमार एवं मधुसूदन यादव आदि ने भी करीब 5 से 3 बीघा में धनरोपनी करने की योजना बताते हुए कहा कि इंद्र भगवान की बेरुखी से हम किसान सुखाड़ की आशंका से ग्रसित हैं. यदि इसी प्रकार मानसून बेरुख रहा तो किसानों की बर्बादी तय है. 

बताते चलें कि विगत एक पखवारा से प्रखंड क्षेत्र में पानी की बूंदे नहीं गिरी है. धान की रोपनी का मुख्य समय होने के बावजूद बारिश नहीं हो रही है. इससे क्षेत्र में अभी से ही सुखाड़ की स्थिति दिखने लगी है. केवल खेती पर आधारित क्षेत्र के किसानों के चेहरे पर भविष्य की चिंता भी स्पष्ट रूप से दिख रही है.

पंपसेट के सहारे धान की फसल में पानी देना उनके वश में नहीं

महंगाई की दौर में पंपसेट के सहारे धान की रोपनी व खाद का इंतजाम करने में किसानों की जेब इस कदर ढीली हो गई है कि अब धान की फसल में पानी देना उनके वश में नहीं रह गया है. सूख रही धान की फसल को बचाये रखने के लिए कोई उपाय भी नजर नहीं आ रहा है. 

प्रकाश यादव किसान ने बताया कि अब तक धान की फसल पर प्रति बीघा जुलाई से लेकर के रोपनी तक 9 हजार से रुपये खर्च हो चुके हैं, अब और खर्च करने की क्षमता नहीं रही. वर्षा नहीं हुई तो लाभ की बात तो दूर, पूंजी भी डूब जाएगी. किसान अन्न के लिए तरस जायेंगे. अकाल जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी. सभी नलकूप वर्षों से खराब पड़े हैं. 

नहरों एवं छोटी उपवितरणी में नहीं छोड़े गए पानी

मुरलीगंज प्रखंड में सरकारी नलकूप नहीं हैं. जेबीसी नहर एवं उपवितरणी पानी नहीं छोड़े जाने के कारण उससे सभी किसानों के खेतों की सिंचाई समय से संभव नहीं है. नतीजतन आज भी किसानों को निजी पंपसेट का सहारा लेना पड़ता है. आर्थिक रूप से संपन्न किसान तो अपने खेतों की सिंचाई पंपसेट से करने में अक्षम में साबित हो रहे हैं क्योंकि पानी डालने के कुछ ही घंटे बाद या अगले सुबह खेत में दरारें पड़ी नजर आती है लेकिन छोटे किसानों के लिए सिंचाई एक बड़ी समस्या बनी हुई है. उन्हें भगवान के भरोसे ही रहना पड़ता है. खेतों में पड़ी दरारें व सूख रही फसल से किसानों के चेहरे की रौनक गायब होने लगी है.

बढ़ते तापमान से खेतों में पड़ी दरार, किसानों ने कहा जिंदगी में देखा पहली बार बढ़ते तापमान से खेतों में पड़ी दरार, किसानों ने कहा जिंदगी में देखा पहली बार Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on July 15, 2022 Rating: 5

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