जिसके बाद से हरेक वर्ष काली पूजा के अवसर पर यहां मां काली, शंकर, गणेश, जोगिनी, भगजोगनी, भैरव आदि देवी-देवताओं की भव्य मूर्ति का निर्माण कर उसकी पूजा अर्चना की परंपरा शुरू की गई. ग्राम देवता के रूप में स्थापित दक्षिणेश्वर काली की पूजा अर्चना की परंपरा को आज तक ग्रामीणों के सहयोग से निभाया जाता रहा है.
इसी बीच ग्रामीणों द्वारा पूजा और मंदिर की देखरेख के लिए श्यामा पूजा कमिटी का गठन किया गया. बाद के दिनों में वर्ष 1993 में स्वर्गीय पंडित रामचंद्र झा अधिवक्ता, स्वर्गीय चंद्रकांत झा, स्वर्गीय श्रीकांत ठाकुर, स्वर्गीय शुभंकर झा, स्व. पंडित मौजेलाल झा, स्व. ब्रजनाथ मिश्र, स्व. सदानंद झा, स्व. शुभंकर ठाकुर सहित गांव के अन्य प्रबुद्ध लोगों की देखरेख में ग्रामीणों के सहयोग से भव्य काली मंदिर का निर्माण किया गया. इसी वर्ष से नवनिर्मित भवन में काली की पूजा अर्चना की शुरुआत कर दी गई. काली पूजा के अवसर पर चार दिवसीय पूजा अर्चना की परंपरा वर्षों से चली आ रही है. इस बार भी काली पूजा के अवसर पर होने वाले पूजा की तैयारी जोर-शोर से चल रही है. इस वर्ष भी 4 नवम्बर से 7 नवम्बर तक विधिवत मेला लगाने की तैयारी की जा रही है.
पूजा कमिटी के अध्यक्ष गिरिजानंद ठाकुर बच्चन, सदस्य पंडित जयचंद झा, कैलाशपति झा, सुधीर ठाकुर, नारायण झा, केदार प्रसाद साह, बिंदी राय और बिमलचंद्र झा सहित ग्रामीणों के सहयोग से पूजा की तैयारी शुरू कर दी गई है. मूर्तिकार महादेव पंडित के द्वारा काली सहित अन्य देवी देवताओं के मूर्ति का निर्माण का कार्य तीव्र गति से किया जा रहा है. मंदिर के पुजारी ब्रह्मानंद ठाकुर बताते हैं कि काली मंदिर में सालों भर प्रत्येक दिन श्रद्धालु ग्रामीण व बाहर से आने वाले महिला-पुरुष श्रद्धालुओं के द्वारा पिंड की पूजा की जाती है. मंदिर में हर मंगलवार को यहां शाम में कीर्तन भजन का आयोजन करने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है. अन्य दिनों के अलावे काली पूजा के अवसर पर दूर दराज से आने वाले श्रद्धालुओं के साथ-साथ ग्रामीणों के द्वारा अपनी मन्नतें पूरी होने पर मंदिर में छाग की बली दी जाती है.
वहीं मां काली की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा के दूसरे दिन मन्नतें पूरी होने पर ग्रामीण समेत दूर दराज के श्रद्धालुओं के द्वारा दर्जनों भैंसा एवं सैकड़ों छाग की बलि दी जाती है. मन्नतें पूरी होने पर श्रद्धालु दंड प्रणाम देकर भी माता रानी के दरबार पहुंचते हैं और पूजा अर्चना करते हैं क्योंकि काली जी की महिमा बहुत ही निराली है.
(रिपोर्ट: मीना कुमारी)
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