'शिक्षण संस्थानों का पूर्ण रूप से बंद करना शिक्षा के मौलिक अधिकारों का हनन': प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन
1. गत वर्ष 2020 से ही वैश्विक महामारी कोविड-19 के रोकथाम के मद्देनजर हमारे बच्चों का पठन-पाठन अवरूद्ध रहा है. वर्चुअल कक्षा एक असफल प्रयोग साबित हुआ है. बच्चों का एक महत्वपूर्ण वर्ष पूरी तरह व्यर्थ रहा है जिसकी भरपाई असंभव है.
2. हम मौजूदा वर्ष 2021 में अपने बच्चों के शैक्षणिक निरंतरता के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थे, किन्तु पुनः कोविड के आर में शैक्षणिक संस्थानों को चरणबद्ध तरीके से बंद रखने की कवायद शुरू हो गयी है. सरकार के इस असंगत निर्णय से हम अभिभावक एवं विद्यालय संचालक बहुत चिंतिंत और आक्रोशित हैं.
3. श्रीमान् के माध्यम से हम सरकार का ध्यान आकृष्ट कराना चाहते हैं कि अभी-अभी देश के 5 राज्यों में विभिन्न चरणों में चुनाव कराये गए हैं. पश्चिम बंगाल में अभी कई चरणों में चुनाव होना शेष है. प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री तक लाखों की भीड़ में कई रैलियां और रोड शो कर रहे हैं. क्या इससे करोना नहीं फैलता है? क्या इस तरह के आयोजनों पर पेनडेमिक एक्ट लागू नहीं होता है?
4. सरकार के शिक्षण संस्थानों का पूर्ण रूप से बंद करना भेदभावपूर्ण है. बल्कि हमारे बच्चों को संविधान प्रदत्त ‘‘शिक्षा के मौलिक अधिकारों का हनन है.’’
5. गत कई वर्षों से आरटीई की लंबित राशि का भुगतान सरकार द्वारा नहीं किया जाना विद्यालयों को क्षतिग्रस्त करने का साजिश प्रतीत होता है.
6. 5 अप्रैल से 18 अप्रैल 2021 तक केवल शिक्षण संस्थानों को बंद करना प्राइवेट शिक्षण संस्थानों का भविष्य पूर्णतः ख़त्म करने की कोशिश तो सरकार की नहीं है?
7. क्या सरकार सुनिश्चित करती है कि बच्चे के खेलने की जगह पार्क, मॉल, सिनेमाघरों, विवाह समारोह में नहीं जा रहे हैं? अगर जा रहे है तो सरकार की व्यवस्था पर सवाल खड़ा होता है.
8. प्राइवेट शिक्षण संस्थानों के बंद होने से बेरोजगार हुए कर्मचारियों के लिए कोई सुविधा या सुरक्षा का प्रावधान सरकार के द्वारा किया गया है? अगर नहीं तो सरकार की व्यवस्था पर सवाल खड़ा होता है.
9. पिछले डेढ़ सालों से विद्यालय बंद होने के कारण स्कूल फीस नहीं आई जिसके कारण पूरे बिहार के लगभग 600000 (छः लाख) कर्मीयों को वेतन भुगतान नहीं किया जा सका है और आज उनके परिवार की स्थिति काफी दयनीय हो गई है. इसलिए सरकार से निवेदन है कि शिक्षक एवं कर्मचारियों को 10,000/- एवं 50 किलोग्राम अनाज प्रतिमाह देने की व्यवस्था करे.
10. सरकार के द्वारा सीबीएसई दसवीं बोर्ड की परीक्षा को पूर्णरूपेन निरस्त करना बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है. बच्चों के अभिभावक एवं शिक्षक दसवीं की परीक्षा के लिए काफी उत्साहित थे. सरकार चाहती तो परीक्षा की वैकल्पिक व्यवस्था कर परीक्षा ली जा सकती थी.
अतः हम अभिभावक एवं विद्यालय संचालकगण श्रीमान् के माध्यम से सरकार से मांग करते है कि बच्चों को उनके शिक्षा के मौलिक अधिकारों से वंचित न किया जाए तथा शिक्षण संस्थानों में अविलंब कोविड नियमों के अनुसार पठन-पाठन का कार्य आरंभ कराया जाए. अन्यथा सरकार हमें सड़कों पर आंदोलन करने के लिए विवश करेगी.
(नि. सं.)

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