बताते चलें कि लोक कलाकार सुरेंद्र यादव कई वाद्ययंत्र और विधाओं के जानकार थे. जिसमें बांसुरी, हारमोनियम, नाल, मृदंग ,और आल्हा, नारदी, भगैत जैसे लोकगाथा एवं लोकनाट्य प्रमुख है. समाजिक सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्था 'सृजन दर्पण' ने ऐसे लोक संस्कृति के संवाहक कलाकार के असामयिक निधन पर उनके पैतृक गांव साहुगढ़ में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया. इस अवसर पर बड़ी संख्या में ग्रामीण जन,सगे-संबंधी एवं कलाप्रेमी मौजूद थे! कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए 'सृजन दर्पण' के अध्यक्ष डॉ. ओम प्रकाश ओम ने कहा कि लोक कलाकारों में प्रबुद्ध लोगों से लेकर अशिक्षित सीधे-साधे लोगों तक से सफल संवाद करने की अद्भुत क्षमता होती है इसलिए संस्कृति की जीवंतता के लिए लोककला एक सशक्त साधन रही है.
उन्होंने कहा कि कलाकार स्वभाव से सहृदय होते हैं इस कारण उसमें परकाया प्रवेश की कला आ जाती है और दूसरे के दुख- सुख को मंच पर विश्वसनीयता के साथ दिखा पाने में सफल होते हैं. यही विशेषता सुरेन्द्र बाबू में थी. संस्था सचिव रंगकर्मी विकास कुमार ने कहा एक समर्पित कलाकार का जीवन बहुत ही संघर्ष से भरा होता है क्योंकि वह अपनी वास्तविक जिंदगी के सुख-दुख के साथ औरों के जीवन को जीते हैं. खुद हृदयगतभाव को छुपाकर औरों के भाव संसार को अभिनय के जरिए आम लोगों के बीच लाते हैं. इसी कला के जरिए जीवन भर सुरेंद्र बाबू दर्शक, श्रोताओं को आनंदित करते रहे. सचिव ने नम आंखो से पुष्प अर्पण करते हुए कहा हम सब ने एक समर्पित लोक कलाकार को खो दिया.
श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए साहुगढ़ पंचायत के जनप्रिय मुखिया अरविंद यादव ने कहा कि होश संभालने के साथ में सुरेंद्र भाई को जानता हूं. लोककला के माध्यम से इन्होंने गाँव, जिला का नाम राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया. हम सबों को इन पर गर्व है. इनके जाने से हम सभी काफी दुखी हैं. प्रो.अनिल कुमार ने कहा कि मुफलिसी की जिंदगी जीने के बावजूद किसी भी लोगों के अंदर छिपी कला प्रतिभा को तराशने में तत्पर रहते थे,सुरेंद्र यादव. बड़ी संख्या में मौजूद लोगों ने उनकी तस्वीर पर पुष्प अर्पण करके श्रद्धांजलि दी.
(नि. सं.)
No comments: