कब सुधरेगा समाज?: कड़े कानून के बावजूद बिहार में नहीं सुधरी दहेज की स्थिति !

घटना 1: 13 मई 2019:  चैनपुर थाना क्षेत्र के कुरका गांव में 28 वर्षीय महिला की एक पेड़ से लटकती लाश बरामद की गई थी। साड़ी के फंदे से उसका शव झूल रहा था। 

महिला के पिता ने बताया था कि दहेज के लिए बेटी को लगातार प्रताड़ित किया जा रहा था। इस वजह से मजबूर हो कर उसने आत्महत्या कर ली।

घटना 2: 25 मई 2019: बोकारो के पेटरवार थाना क्षेत्र के चलकारी में पूजा देवी को उसके ससुराल वालों ने दहेज के लिए केरोसिन तेल छिड़ककर आग लगा दिया जिसके बाद उसकी मौत हो गई।

घटना 3: महज़ दहेज के 51 हजार रुपये के लिये जयपुर में एक महिला के ससुराल वालों ने अपनी बहू को बेहोश कर उसके शरीर पर अभद्र भाषा वाले टैटू बनवा दिये।

उपरोक्त सभी घटनाओं के समय, स्थान और पात्र के नाम भले ही अलग-अलग हों परंतु इन सभी घटनाओं के पीछे की वज़ह एक ही है और वो है "दहेज उत्पीड़न". दहेज के लिए महिलाओं की हत्या करने के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं. कहीं दहेज के लिए महिलाओं को जला कर मार दिया जाता है तो कहीं गला घोटकर हत्या कर दी जाती है।

 वैसे तो हमारा समाज धीरे-धीरे आधुनिक हो रहा है, और खासकर युवा पीढ़ी कुछ ऐसे प्रथाओं का त्याग कर रही है जो कि पुरानी हो चुकी है और अतार्किक है. लेकिन आज भी समाज के कुछ वर्ग इन कुप्रथाओं में लिपटे हुए हैं और इसका पुरजोर विरोध भी नहीं करते। उन अनेक कुप्रथाओं में से एक दहेज़ भी है जो आज भी हमारे समाज का ज्वलंत मुद्दा है।

दहेज प्रथा अधिकतर उच्चवर्गियों में देखने को मिलती थी, लेकिन अब तो यह प्रथा अनेक वर्गों में देखने को मिल रही है। वर पक्ष के लोग तो अपने बेटे की काबिलियत के आधार पर दहेज तय करते है. अगर लड़का किसी बड़े ओहदे पर है तो मुँह मांगी कीमत माँगते है और अगर किसी की लड़की का रंग साँवला है तो उससे अतिरिक्त दहेज की मांग की जाती है। बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोग भी इस मुद्दे पर अलग सोचते और करते हैं.
  हमारे देश में दहेज प्रथा के खिलाफ दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार दहेज लेने, देने या इसके लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15,000 रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है।

 वर्ष 2018 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार जी ने शराब बंदी के बाद बिहार में "दहेज प्रथा और बाल विवाह"  जैसी कुरीतियों के खिलाफ मानव श्रृंखला बनाई, जिसमे स्कूली बच्चे, शिक्षक, अधिकारी, मंत्री, मुख्यमंत्री, विधायक से लेकर अन्य लोगों ने भी भाग लिया और विश्व की सबसे लंबी मानव श्रृंखला बनाई। पर हम जागरूक न हो सके.

इतने कड़े कानून के बावजूद भी हमारे देश में दहेज की लेन-देन में किसी भी प्रकार की कोई कमी देखने को नहीं मिल रही है। दहेज के रूप में रुपया- पैसा, गहना और जमीन जैसी अन्य चीजें ली जाती है। अमीर वर्ग के लोगों के लिए दहेज का लेन-देन एक सामान्य बात होती है और उनके जीवन में इसका कोई खास असर भी नहीं पड़ता है परंतु इसके विपरीत गरीब वर्ग या सामान्य वर्ग के लोगों पर इसका बहुत बुरा और गहरा असर पड़ता है। वे कर्ज़ में डूब जाते है, और कितने सालों तक इससे उभर नहीं पाते है। बिहार में गरीबी का यह भी एक बड़ा कारण है।

आये दिन दहेज प्रताड़ना की घटना सामने आती है। दहेज उत्पीड़न से परेशान कितनी ही महिलाएं खुदकुशी तक कर लेती है, और तो और भ्रूण हत्या का भी दहेज प्रथा से गहरा संबंध है। यह भी एक बड़ा कारण है कि लोग लड़कियों के पैदा होने पर शोक में डूब जाते है और कई लोग तो लड़कियों के इस दुनिया में आने से पहले ही मार कर भ्रूण हत्या जैसे घिनौना अपराध करते हैं।

दहेज जैसी कुप्रथाओं को हमारे समाज से हटाने के लिए युवाओं को अपनी सोच बदलने की जरूरत है। जब किसी लड़की के घर से शादी का प्रस्ताव आये तो उस लड़की का मूल्यांकन दहेज के आधार पर ना करते हुए बल्कि उसके गुणों के आधार पर किया जाना चाहिए। दहेज लेकर ठाठदार शादी करने की बजाय बिना दहेज लिए सादगीपूर्ण शादी करने पर ज़ोर देने चाहिए। 

दहेज जैसी कुप्रथा का उन्मूलन केवल और केवल युवाओं के विचारधारा पर निर्भर है। जिस दिन हमारा देश "दहेज प्रथा" से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा उस दिन से किसी भी माता-पिता को बेटियां बोझ नहीं लगेगी, बल्कि जितनी खुशी लड़कों के जन्म पर होती है, उतनी ही खुशी लड़कियों के जन्म पर भी मनाई जाएगी।



प्रिया चौधरी
  मधेपुरा 
कब सुधरेगा समाज?: कड़े कानून के बावजूद बिहार में नहीं सुधरी दहेज की स्थिति ! कब सुधरेगा समाज?: कड़े कानून के बावजूद बिहार में नहीं सुधरी दहेज की स्थिति ! Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on October 03, 2019 Rating: 5

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