हुई आँख नम और दिल मुस्कुराया: सोशल मीडिया ने 38 वर्षों बाद मिलाया तो मिलन का दृश्य अद्भुत होना ही था

सदुपयोग करें तो इंटरनेट न सिर्फ एक बड़ा हथियार बनकर सामने आया है बल्कि कई बार भावनाओं को भी जगह देने में ये अपनी अहम् भूमिका निभा रहा है. कल्पना कीजिए जब सोशल मीडिया की वजह से दो दोस्त 38 साल बाद मिलें तो दृश्य कैसा होगा?


जी हाँ, आप सही कल्पना कर रहे हैं. यहाँ भी दोनों काफी देर लिपट कर खड़े रहे और दोनों की आँखें भर आईं. सुखद अहसास देने वाली ये घटना मधेपुरा की ही है जब मुग़लसराय से रेलवे की सेवा से अवकाशप्राप्त कर अपने गाँव मधेपुरा जिले के कुमारखंड प्रखंड के इसरायन कलां वापस लौटे साहित्यकार रामदेव सिंह और हाई स्कूल में शिक्षक से अवकाश प्राप्त कर चुके सिंहेश्वर के इटहरी गाँव के चन्द्र नारायण सिंह की मुलाक़ात 38 वर्षों के बाद आमने-सामने हुई. और दो गहरे दोस्तों को मिलाने वाली इस पूरी भावनात्मक कहानी में मधेपुरा टाइम्स ने एक पुल का काम किया है.

इस मिलन की पूरी कहानी साहित्य के क्षेत्र में कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त कर चुके रामदेव सिंह ने फेसबुक पर साझा की है. पढ़िए उनके ही शब्दों में एहसास इस अद्भुत मिलन का:

"लगभग चार दशक पूर्व अपनी-अपनी पढ़ाई पूरी कर हम बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन की तैयारी कर रहे थे ,जो अनिश्चित जैसा था। दूसरे अवसरों पर भी हमारी निगाह थी। और इसी क्रम में हम शिक्षक प्रशिक्षण के लिए जा पहुंचे राजकीय शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय, सुखासन-मनहरा, जो मधेपुरा जिला स्थित सिंहेश्वर स्थान से 3-4 किलोमीटर की दूरी पर है। सिंहेश्वर स्थान में शिव का प्रसिद्ध मंदिर है। 

मैं पटना में रहकर तैयारी कर रहा था। यहीं रहकर पढ़ाई भी की थी। साहित्य और लिखने-पढ़ने का कीड़ा प्रवेश कर चुका था। कुछ दिनों तक मन बिल्कुल नहीं लगा। फिर यहीं भेंट हुई प्रशिक्षु शिक्षक चन्द्र नारायण जी से। अंग्रेजी और हिन्दी साहित्य के घोर पढ़ाकू। फिर तो हमारी गहरी छनने लगी। वे पास के ही इटहरी गाँव के थे इसलिए 'डे स्कालर' थे ।जबकि मैं हास्टल में रहता था। वे घर से अंग्रेजी साहित्य की किताबें ले आते जिसपर हम खूब बातें करते। याद है, पर्ल एस बक की 'द गुड अर्थ' सबसे पहले उन्होंने पढ़वायी थी। दो वर्ष की ट्रेनिंग के बाद फिर हमारी मुलाकात नहीं हुई। हाँ, कुछ वर्षों तक एक-दूसरे का हालचाल मिलता रहा। वे हाई स्कूल में शिक्षक हो गये और मैं रेलवे में मुगलसराय चला गया। वे अपने घर के पास ही रहे जबकि मैं घर से दूर। हम दोनों अपनी-अपनी नौकरियां पूरी कर रिटायर भी हो गये। इस दौरान कभी नहीं मिल पाये। लेकिन उनकी याद अक्सर आती रही। 

हमारा छोटा भाई राकेश मधेपुरा से ' मधेपुरा टाइम्स' नाम का ई -अखबार निकालता है। जिसकी पठनीयता खूब है। पिछले वर्ष किसी अंक में उसने एक उभरते हुए युवा गायक राजीव तोमर को प्रस्तुत किया था। राजीव के परिचय में उनके शिक्षक पिता चन्द्र नारायण जी का जिक्र था। मैंने राकेश को फोन किया कि पता लगाओ, क्या ये वही चन्द्र नारायण सिंह हैं जो इटहरी गाँव के हैं और जिन्होंने 1978-80 में मनहरा से टीचर्स ट्रेनिंग किया था? राकेश ने तुरंत पता लगाकर मुझे सूचित किया कि ये वही चन्द्र नारायण जी हैं। राकेश ने उनका फोन नंबर भी उपलब्ध करवाया। फिर हमारी बातें हुईं। हमने बहुत सारी पुरानी यादें शेयर की। मैंने उन्हें बताया कि अब मैं अपने गाँव में ही रहने आ रहा हूँ तो उन्हें बहुत खुशी हुई। रिटायर होकर वे सिंहेश्वर स्थान में ही बस गये हैं। 

कल छोटे भाई अरविन्द की गाड़ी से हम लोग पटना आ रहे थे। उसी रास्ते से। मैंने उन्हें फोन किया कि मैं मिलना चाहता हूँ। वे खुश हो गये - आइए... आइए। घर पहुंचने का लोकेशन बताया। वे अपने घर के बाहर छड़ी के सहारे व्यग्रता में खड़े थे। हमलोग कुछ देर तक एक-दूसरे से लिपटकर खड़े रहे। वे मेरा हाथ पकड़कर घर के ड्राइंग रुम में ले गए। मेरे पीछे-पीछे मेरी श्रीमती जी, भाई और भतीजा भी था। अन्दर से भाभी जी आयी। सबसे परिचय हुआ। श्रीमती जी अन्दर ही चली गयीं। हम कम समय में बहुत सारी बातें कर लेना चाहते थे। पिछले वर्ष रेल यात्रा के दौरान घटी एक दुर्घटना में उन्हें अपना एक पांव खोना पड़ा था। वे आर्टिफिशियल पांव के सहारे ही चल पा रहे थे। मेरे पूछने पर उन्होंने विस्तार से बताया। 

तबतक चाय आ गयी थी। मैंने राजीव के बारे में पूछा। वे किसी काम से शहर में ही निकले थे। चाय पीकर मैंने चलने की इजाजत मांगी। लेकिन भाभी जी ने उषा जी का हाथ पकड़ लिया - नहीं इतनी जल्दी क्या है ? बहू भी अनुनय करने लगी - खाना खाकर जाइए। तभी राजीव भी आ गए। जिनसे बिना मिले आना अधूरा होता। आखिर वे भी कहाँ मानने वाले थे। नाश्ता करवा कर ही आने दिया। 

मित्र से वायदा कर आया हूँ कि जल्द ही आऊंगा, भर-पेट बातें करुंगा। और राजीव को सामने से सुनना तो अभी बाकी ही है। इस कलाकार पुत्र के लिए ढेर सारी दुआएँ।"
(वि. सं.)
हुई आँख नम और दिल मुस्कुराया: सोशल मीडिया ने 38 वर्षों बाद मिलाया तो मिलन का दृश्य अद्भुत होना ही था हुई आँख नम और दिल मुस्कुराया: सोशल मीडिया ने 38 वर्षों बाद मिलाया तो मिलन का दृश्य अद्भुत होना ही था Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on November 25, 2018 Rating: 5

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