
मधेपुरा जिला मुख्यालय से लगभग 25
किलोमीटर उत्तर पश्चिम स्थित घैलाढ़
प्रखंड के श्रीनगर
गाँव में स्थापत्य कला का जीता जागता देवी-देवताओं की काले बैसाल्ट पत्थर की प्रतिमाओं के अलावे नक्कासी तथा शिला उत्कीर्णता के कई नमूने यहाँ मौजूद हैं. वर्तमान में
यह स्थल
12 फीट ऊँचा टीला है और टीले के इर्द-गिर्द उतर गुप्त कालीन, हर्षवर्धन
समकालीन बंगाल-बिहार के शासक गौड़कालीन बैसाल्ट चट्टान का बना ध्वंश मंदिर का चौखट, चबूतरा समेत बिखरे एवं जमींदोज कई पुरातत्व अवशेष मौजूद हैं .


स्थानीय अंचलाधिकारी सह इतिहास विद शतीश कुमार ने सर्वे कर जिला प्रशासन समेत पर्यटन
विभाग को एक
विस्तृत रिपोर्ट भेजी है. यदि स्थल की खुदाई की जाती है तो खुदाई के बाद हो सकता है बड़ा खुलासा. 12 फीट टीले नुमा इस गुप्त कालीन
धरोहर स्थल के नीचे यदि और भी कुछ पुराने अवशेष
मिलते हैं तो भारत के इतिहास को मधेपुरा के
घैलाढ़ से और बेहतर समझने में आसानी हो सकती है.
स्थानीय लोगों की माने तो इस स्थल का काफी दिनों से बड़ा महत्व है. आज भी यहाँ जिले के कई
क्षेत्रों से आकर लोग पूजा-अर्चना करते हैं और लोगों की मन्नतें भी पूरी होती है.
कुछ ग्रामीणों के द्वारा कहा ये भी जाता है कि अगर यहाँ से कोई व्यक्ति पत्थर का एक टुकड़ा भी ले जाने का प्रयास करता है
तो उन्हें
काफी महंगी पड़ जाता है और वे बीमार हो जाते हैं जिसके
बाद वापस उसी स्थान पर पत्थर रखने के बाद ही वे ठीक होते
हैं. स्थानीय लोग समेत जनप्रतिनिधियों ने जिला प्रशासन और राज्य सरकार से इस स्थल को पर्यटन स्थल घोषित करने की मांग
की है.
मधेपुरा जिले में जहाँ उतर बिहार का देव घर कहे जाने वाले सिंहेश्वर
स्थान प्रसिद्ध है
वहीँ सिंहेश्वर मंदिर एवं परिसर के इर्द-गिर्द मंदिर
की प्राचीनता का पुरातात्विक
साक्ष्य नहीं है. जिले
में एक मात्र 2000 वर्ष पुराना धरोहर श्रीनगर
गाँव में हीं है. कुछ
जानकारों का इशारा इस तरफ भी है कि श्रृंगी ऋषि के कारण यह स्थल घैलाढ़ प्रखंड अंतर्गत श्रंगी नगर का अपभ्रंश श्रीनगर माना जाता है. बाद में श्रीनगर का ईश्वर, श्रीनगेश्वर का अपभ्रंश सिंघेश्वर हो गया जिसे आज भी सिंगेसर या फिर सिहेंश्वर कहा जाता है.
श्रीनगर गाँव के वर्तमान मध्य
विद्यालय भवन के आसपास फैले इस पुराने धरोहर स्थल पर आज भी 12 फीट ऊँचा टीला है जिसके इर्द-गिर्द उतर गुप्तकालीन हर्षवर्धन समकालीन बंगाल-बिहार के शासक गौड़कालीन बैसाल्ट चटान व बैसाल्ट पत्थर के बने घड़ियाल का दो जबड़ो का एक मुख मौजूद है. घड़ियाल कोसी और गंगा नदी का प्रतीक
भी माना जाता है. अंचलाधिकारी और इतिहासविद सतीश कुमार शर्मा
का भी ऐसा ही अंदाजा है कि यहाँ आज भी बिखड़े अड़े ईट कुषाण काल
200 ई० से लेकर पाल काल तक का है और लाल एवं काले रंग की मृदभांड पत्थर के टुकड़े से प्राचीनता का प्रमाण भी मिलता है. इतना
हीं नहीं मंदिर में
8वीं सदी की उमा महेश्वर की अद्वतीय प्रतिमा भी
मौजूद है जिसकी पूजा-अर्चना करने लोग दूरदराज से आते हैं.
काफी लम्बे समय के बाद स्थानीय सीओ सह इतिहास विद सतीश कुमार ने इस स्थल का सर्वे कर जिला प्रशासन समेत पर्यटन विभाग को रिपोर्ट
भेजा है. मधेपुरा टाइम्स से बात करते हुए स्थानीय सीओ सह इतिहास
विद सतीश कुमार ने अन्य कई महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर भी चर्चा की है.
अब देखना है कि कब तक जिला प्रशासन और राज्य सरकार इसपर ध्यान देती है और क्या सरकार खुदाई
करवाती है और यदि खुदाई में महत्वपूर्ण अवशेष मिलते हैं तो क्या सरकार इसे पर्यटन
स्थल घोषित करेगी?
(सम्पादकीय टीम: रूद्र नारायण यादव/ कुमार शंकर सुमन, सहयोग: लालेंद्र कुमार)
स्पेशल रिपोर्ट: मधेपुरा में भारी मात्रा में पुरातत्व अवशेष, क्या होगी खुदाई?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 20, 2016
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