मधेपुरा सदर अस्पताल में 20 दिनों से मंडरा रही है अर्धविक्षिप्त लावारिश हालत में चर्मरोग से ग्रसित मुनियाँ बेटी का अस्पताल में नहीं हो रहा है समुचित इलाज. सदर अस्पताल के अन्दर और बाहर जुगाड़ एम्बुलेंस यानि ठेला पर इलाज के लिए दर-दर-भटकने पर मजबूर है मरीज. अस्पताल में चिकित्सक बिना उपचार किये ही गरीब मरीजों को कर देते हैं प्राइवेट अस्पताल रेफर. शहर में जुगाड़ एम्बुलेंस पर सवार गरीब मरीज जिन्दगी और मौत के बीच अच्छे चिकित्सक की तलाश में भटकने पर मजबूर हो रहे हैं. भले हीं सूबे के मुख्यमंत्री और केन्द्र की मोदी सरकार महिलाओं के सम्मान और बेटियों की सुरक्षा हेतु लम्बी-लम्बी बाते कर रहे हों पर आज राज्य ही नहीं पूरे देश में महिला और मुनियाँ बेटी की स्मिता पर एक बड़ा सवाल भी खड़ा होता नजर आ रहा है.
जहाँ सूबे के सरकारी अस्पताल पर लाखों व करोड़ों की राशि खर्च की जाती है वहीँ मधेपुरा सदर अस्पताल की स्थिति में सुधार होता नहीं दिख रहा है. अस्पताल प्रबंधन लगातार एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं लेकिन अस्पताल की बदहाली पर ना तो जिला प्रशासन की ध्यान है ना ही सूबे के मुख्यमंत्री का, जबकि महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा को लेकर राजनेता अपनी-अपनी रोटी सेकने में पीछे हैं. वहीँ समाज सेवी भी जिला प्रशासन और राज्य सरकार को इसके लिए जिम्मेवार मान रहे हैं.
मधेपुरा सदर अस्पताल जहाँ अस्पताल प्रबंधन के कुव्यवस्था से स्थानीय लोग व गरीब तबके के मरीज त्रस्त हैं.
सदर अस्पताल के लिए ये कोई नयी बात नहीं है इससे पहले भी कई बार लावारिश लाश और अर्धविछिप्त महिलाओं का मुद्दा मधेपुरा टाइम्स उठाती रही है. स्थानीय समाज सेवी और स्थानीय रोगी कल्याण समिति सदस्य सह समाज सेवी शौकत अली सहित दर्जनों लोंगों ने भी इस मुद्दे को गंभीरता से हमेशा से लिया है और आवाज भी उठाया है पर जिला प्रशासन और अस्पताल प्रबंधन इन मुद्दों को नजर अंदाज करती रही है.
अस्पताल के मैनेजर संजीव कुमार सिन्हा ने बताया कि इस मुनियाँ बेटी को अल्पावास गृह में भेजने हेतु पुलिस से लिखित तौर पर सहयोग माँगा गया है, पर इस दिशा में पुलिस सहयोग नहीं कर रही है. वहीँ पुलिस कप्तान विकास कुमार ने सदर अस्पताल के कुव्यवस्था पर गहरा दुःख प्रगट कर सिविल सर्जन गजाधर प्रसाद से जब चलभाष पर बात की तो सिविल सर्जन महोदय को इस बात का पता भी नहीं थी कि कोई मुनियाँ बेटी इनके अस्पताल में लाइलाज भटक रही है. फिर भी एस.पी विकास कुमार ने भरोसा दिलाया कि अपने स्तर से सहयोग कर अल्पावास गृह में रखवाया जाएगा, बहरहाल मुनियाँ बेटी की समुचित इलाज आवश्यक है.
सिविल सर्जन को 20 दिनों से अस्पताल में भटक रही अर्धविक्षिप्त मरीज मुनिया के बारे में पता न होना भी अपने-आप में सवाल खड़ा करता है. सूबे में सफ़ेद कागज़ पर सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है. पर नेताओं और अधिकारियों की मंशा तब ही साफ़ कही जायेगी जब मुनियाँ जैसी मरीजों का इलाज अस्पतालों में तुरंत और समुचित ढंग से होने लगेगा.
जहाँ सूबे के सरकारी अस्पताल पर लाखों व करोड़ों की राशि खर्च की जाती है वहीँ मधेपुरा सदर अस्पताल की स्थिति में सुधार होता नहीं दिख रहा है. अस्पताल प्रबंधन लगातार एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं लेकिन अस्पताल की बदहाली पर ना तो जिला प्रशासन की ध्यान है ना ही सूबे के मुख्यमंत्री का, जबकि महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा को लेकर राजनेता अपनी-अपनी रोटी सेकने में पीछे हैं. वहीँ समाज सेवी भी जिला प्रशासन और राज्य सरकार को इसके लिए जिम्मेवार मान रहे हैं.
मधेपुरा सदर अस्पताल जहाँ अस्पताल प्रबंधन के कुव्यवस्था से स्थानीय लोग व गरीब तबके के मरीज त्रस्त हैं.
सदर अस्पताल के लिए ये कोई नयी बात नहीं है इससे पहले भी कई बार लावारिश लाश और अर्धविछिप्त महिलाओं का मुद्दा मधेपुरा टाइम्स उठाती रही है. स्थानीय समाज सेवी और स्थानीय रोगी कल्याण समिति सदस्य सह समाज सेवी शौकत अली सहित दर्जनों लोंगों ने भी इस मुद्दे को गंभीरता से हमेशा से लिया है और आवाज भी उठाया है पर जिला प्रशासन और अस्पताल प्रबंधन इन मुद्दों को नजर अंदाज करती रही है.
अस्पताल के मैनेजर संजीव कुमार सिन्हा ने बताया कि इस मुनियाँ बेटी को अल्पावास गृह में भेजने हेतु पुलिस से लिखित तौर पर सहयोग माँगा गया है, पर इस दिशा में पुलिस सहयोग नहीं कर रही है. वहीँ पुलिस कप्तान विकास कुमार ने सदर अस्पताल के कुव्यवस्था पर गहरा दुःख प्रगट कर सिविल सर्जन गजाधर प्रसाद से जब चलभाष पर बात की तो सिविल सर्जन महोदय को इस बात का पता भी नहीं थी कि कोई मुनियाँ बेटी इनके अस्पताल में लाइलाज भटक रही है. फिर भी एस.पी विकास कुमार ने भरोसा दिलाया कि अपने स्तर से सहयोग कर अल्पावास गृह में रखवाया जाएगा, बहरहाल मुनियाँ बेटी की समुचित इलाज आवश्यक है.
सिविल सर्जन को 20 दिनों से अस्पताल में भटक रही अर्धविक्षिप्त मरीज मुनिया के बारे में पता न होना भी अपने-आप में सवाल खड़ा करता है. सूबे में सफ़ेद कागज़ पर सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है. पर नेताओं और अधिकारियों की मंशा तब ही साफ़ कही जायेगी जब मुनियाँ जैसी मरीजों का इलाज अस्पतालों में तुरंत और समुचित ढंग से होने लगेगा.
बेहाल सदर अस्पताल: कहीं इलाज के लिए भटकती बेटी तो एम्बुलेंस बन रहा है ठेला
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 12, 2016
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