इंटरमीडिएट की परीक्षा शांतिपूर्वक गुजर गई और अब मैट्रिक की शुरू हुई है. मधेपुरा में करीब 31 हजार परीक्षार्थी परीक्षा देने आये हैं. इनमें से कुछ अच्छे और मेहनती भी हैं जो जीवन में सफलता के लिए पढ़ाई को अहम् समझते हैं और मैट्रिक की परीक्षा में पढ़कर अच्छे अंक लाना इनके लक्ष्य में है. पर जिले से बाहर के लगभग सारे वैसे परीक्षार्थी जिन्होंने मधेपुरा से फॉर्म भरा है, इनकी मंशा साफ़ नहीं है.
परीक्षार्थियों के साथ अभिभावकों का हुजूम भी पहुंचा है. अंदाजा है कि चोरी करवाने का लक्ष्य लेकर पहुंचे इन अभिभावकों की संख्यां परीक्षार्थी से तीन गुणा है. यानी अभी मधेपुरा में करीब एक लाख लोग परीक्षा से सीधे जुड़े हैं. अपने ‘होनहार’ को ये अभिभावक केंद्र पर पहुंचा कर आवास नहीं लौटते, बल्कि अपने ‘होनहारों’ को चींट-पुर्जे पहुंचाने की जुगाड़ में लग जाते हैं. बिहार इस मामले में हमेशा से बदनाम रहा है और मधेपुरा भी अन्य जिलों से कम नहीं.
पर पिछली बार से मामला कुछ और है. इस बार भी परीक्षा केन्द्रों पर कड़ाई है और प्रशासन ने ठान लिया है कि कदाचार मुक्त परीक्षा संचालित करवानी है. मैट्रिक की परीक्षा में कई केन्द्रों के पीछे बेशर्म अभिभावकों की फ़ौज खड़ी रहती है. पुलिस इन्हें खदेड़ती है, ये भाग जाते हैं, फिर आ जाते हैं. लाठी खाकर भी जमे रहते हैं मानो देश के लिए आन्दोलन का वक्त हो. केन्द्रों के पीछे खेतों में दौड़ते-भागते ये अभिभावक खेत में लगी फसलों को भी बर्बाद करते हैं और खेत वालों की गालियाँ सुनते हैं. शायद ये इस बात को नहीं समझ रहे हैं कि कक्ष के अन्दर बैठकर परीक्षा दे रहे अपने ‘प्रिय’ को ये न सिर्फ कमजोर कर रहे हैं, बल्कि उन्हें नाजायज तरीके भी सिखा रहे हैं.
सबसे अधिक तो इनकी वजह से अच्छे छात्रों की डिग्री भी बदनाम है. छात्र सालभर पढ़ाई करे, इसके लिए ऐसे अभिभावक शायद ही कोई प्रयास करते हैं. कुल मिलाकर समाज के कोढ़ हैं ये बेशर्म अभिभावक और जबतक इनकी मनोवृत्ति में सुधार में आता तबतक मधेपुरा की शिक्षा व्यवस्था में सुधर आना मुश्किल है.
मैट्रिक परीक्षा के पहले दिन का वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें.
परीक्षार्थियों के साथ अभिभावकों का हुजूम भी पहुंचा है. अंदाजा है कि चोरी करवाने का लक्ष्य लेकर पहुंचे इन अभिभावकों की संख्यां परीक्षार्थी से तीन गुणा है. यानी अभी मधेपुरा में करीब एक लाख लोग परीक्षा से सीधे जुड़े हैं. अपने ‘होनहार’ को ये अभिभावक केंद्र पर पहुंचा कर आवास नहीं लौटते, बल्कि अपने ‘होनहारों’ को चींट-पुर्जे पहुंचाने की जुगाड़ में लग जाते हैं. बिहार इस मामले में हमेशा से बदनाम रहा है और मधेपुरा भी अन्य जिलों से कम नहीं.
पर पिछली बार से मामला कुछ और है. इस बार भी परीक्षा केन्द्रों पर कड़ाई है और प्रशासन ने ठान लिया है कि कदाचार मुक्त परीक्षा संचालित करवानी है. मैट्रिक की परीक्षा में कई केन्द्रों के पीछे बेशर्म अभिभावकों की फ़ौज खड़ी रहती है. पुलिस इन्हें खदेड़ती है, ये भाग जाते हैं, फिर आ जाते हैं. लाठी खाकर भी जमे रहते हैं मानो देश के लिए आन्दोलन का वक्त हो. केन्द्रों के पीछे खेतों में दौड़ते-भागते ये अभिभावक खेत में लगी फसलों को भी बर्बाद करते हैं और खेत वालों की गालियाँ सुनते हैं. शायद ये इस बात को नहीं समझ रहे हैं कि कक्ष के अन्दर बैठकर परीक्षा दे रहे अपने ‘प्रिय’ को ये न सिर्फ कमजोर कर रहे हैं, बल्कि उन्हें नाजायज तरीके भी सिखा रहे हैं.
सबसे अधिक तो इनकी वजह से अच्छे छात्रों की डिग्री भी बदनाम है. छात्र सालभर पढ़ाई करे, इसके लिए ऐसे अभिभावक शायद ही कोई प्रयास करते हैं. कुल मिलाकर समाज के कोढ़ हैं ये बेशर्म अभिभावक और जबतक इनकी मनोवृत्ति में सुधार में आता तबतक मधेपुरा की शिक्षा व्यवस्था में सुधर आना मुश्किल है.
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उफ़ ये अभिभावक! (देखें मैट्रिक परीक्षा के पहले दिन का वीडियो)
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 12, 2016
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