
इन दो तस्वीरों को देखिये. गौर से देखने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ऐसी परिस्थितियां सामान्य हैं. भले ही दोनों तस्वीरें मधेपुरा जिले की हों, पर ये कमोबेश पूरे सूबे का हाल है.01 अप्रैल से सूबे में शराबबंदी है. पर पूर्ण कहीं से नहीं, आंशिक कह लें. सरकार विदेशी शराब बेचेगी और निजी हाथों से इसका कारोबार निकल जाएगा. दुकानें कम होंगी, पर लोग कम पियेंगे, इसकी गारंटी नहीं. युवा वर्ग नशे की गिरफ्त में है और कई अधिकारी समेत बहुत सारे पुलिसकर्मी भी शराब की चपेट में हैं, जिनका बाहर निकलना नामुमकिन है. ‘पुलिस-पब्लिक मैत्री’ की ये नई परिभाषा इस अभियान को कौन सी दिशा देगा, वक्त बताएगा. अवैध शराब की बिक्री का इतिहास सूबे में पुराना है. शराबबंदी को सख्ती से लागू करने में पुलिस की अहम् भूमिका आवश्यक है, पर खुद नशे का शिकार दूसरे के नशे को कैसे उतारेगा, प्रश्नचिन्ह है.
पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी को लेकर गंभीर हैं. अप्रैल आने में अब ज्यादा समय नहीं है. सरकार भले ही सख्त हो, पर पियक्कड़ का मानना है ‘जहाँ चाह, वहां राह’.
चलिए, शायर मीर तकी ‘मीर’ की इन पंक्तियों को याद करते हम भी इन्तजार करते हैं कि,
“इब्तिदा-ए-इश्क़ है रोता है क्या
आगे-आगे देखिये होता है क्या”.
‘पुलिस-पब्लिक मैत्री’ की नई परिभाषा शराबबंदी अभियान में बाधक
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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February 23, 2016
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