रहन-सहन के बदले तरीकों ने जहाँ एक तरफ सभ्यता के विकास को जगह दी है वहीं दूसरी तरह कई तरह की बीमारियों को भी आमंत्रित किया है. ऐसे में औषधीय पौधों के द्वारा इलाज की महता बढ़ गई है.
मधेपुरा जिला मुख्यालय के कृषि विज्ञान केंद्र में बुधवार को आयोजित औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान सीमैप, लखनऊ के द्वारा एक दिवसीय औषधीय एवं सगंध पौधों कृषिकरण, प्रसंस्करण तथा विपणन से सम्बंधित नवीन कृषि प्रौद्योगिकियों पर चर्चा आयोजित की गई.
कार्यक्रम की अध्यक्षता के० वी० के० के कार्यक्रम समन्वयक डा० मिथिलेश कुमार ने की. तकनीकी सत्र के प्रारम्भ में सीमैप लखनऊ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा० एच. पी. सिंह ने अगेती मेंथा की खेती पर विस्तृत व्याखान दिया और जोर देकर कहा कि ऐसे किसान भाई जो मटर, मसूर, लाही, आलू आदि की खेती करते हों और जहाँ सिंचाई की सुविधा हो वहां मेंथा की खेती आसानी से की जा सकती है. इसकी खेती से प्रति एकड़ की लागत 15-20 हजार रूपये तथा शुद्ध लाभ 35-40 हजार रूपये का लगभग सौ दिन की फसल से किसानों को मिल जाता है.
तुलसी की खेती के सन्दर्भ में आर. पी. यादव ने चर्चा करते हुए बताया कि कम समय में गर्मी और वर्षा के मौसम में खेती की जा सकती है. इस फसल का जीवन चक्र लगभग 75-80 दिनों का होता है.
परिचर्चा सत्र में सतावर, कालमेघ तथा अन्य औषधीय फसलों के कृषिकरण पर विस्तार से चर्चा की गई. अंत में के.वी.के. मधेपुरा के प्रभारी द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया. कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केंद्र के डा० सुनील कुमार सिंह, डा० आर० पी० शर्मा, डा० सुनील कुमार, डा० शशि प्रकाश विश्वकर्मा, औषधीय पौधों के जानकार मधेपुरा के किसान शंभू शरण भारतीय आदि भी उपस्थित थे.
मधेपुरा जिला मुख्यालय के कृषि विज्ञान केंद्र में बुधवार को आयोजित औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान सीमैप, लखनऊ के द्वारा एक दिवसीय औषधीय एवं सगंध पौधों कृषिकरण, प्रसंस्करण तथा विपणन से सम्बंधित नवीन कृषि प्रौद्योगिकियों पर चर्चा आयोजित की गई.
कार्यक्रम की अध्यक्षता के० वी० के० के कार्यक्रम समन्वयक डा० मिथिलेश कुमार ने की. तकनीकी सत्र के प्रारम्भ में सीमैप लखनऊ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा० एच. पी. सिंह ने अगेती मेंथा की खेती पर विस्तृत व्याखान दिया और जोर देकर कहा कि ऐसे किसान भाई जो मटर, मसूर, लाही, आलू आदि की खेती करते हों और जहाँ सिंचाई की सुविधा हो वहां मेंथा की खेती आसानी से की जा सकती है. इसकी खेती से प्रति एकड़ की लागत 15-20 हजार रूपये तथा शुद्ध लाभ 35-40 हजार रूपये का लगभग सौ दिन की फसल से किसानों को मिल जाता है.
तुलसी की खेती के सन्दर्भ में आर. पी. यादव ने चर्चा करते हुए बताया कि कम समय में गर्मी और वर्षा के मौसम में खेती की जा सकती है. इस फसल का जीवन चक्र लगभग 75-80 दिनों का होता है.
परिचर्चा सत्र में सतावर, कालमेघ तथा अन्य औषधीय फसलों के कृषिकरण पर विस्तार से चर्चा की गई. अंत में के.वी.के. मधेपुरा के प्रभारी द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया. कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केंद्र के डा० सुनील कुमार सिंह, डा० आर० पी० शर्मा, डा० सुनील कुमार, डा० शशि प्रकाश विश्वकर्मा, औषधीय पौधों के जानकार मधेपुरा के किसान शंभू शरण भारतीय आदि भी उपस्थित थे.
जाहिर है, ऐसे कार्यक्रमों और जानकारी से लोगों की रुचि कृषि में बढ़ेगी और किसान खुशहाल भारत के निर्माण में अपना अमूल्य सहयोग अधिक बेहतर तरीके से दे सकेंगे.
औषधीय पौधों के कृषिकरण पर मधेपुरा में कार्यक्रम आयोजित: किसानों के लिए लाभकारी
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
January 21, 2016
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