मधेपुरा में जान पर खेलकर पढने जाती हैं बेटियाँ और अब भी है बदहाल सी जिन्दगी

तुम्‍हारी फाइलों में 
गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आँकड़े झूठे हैं
ये दावा किताबी है
.”- आदम गोंडवी 

विकास के भले ही लाखों दावे पेश किये जा रहे हों, पर मधेपुरा जिला में कई क्षेत्र अब भी हमें कई सदी पहले की याद दिला देती है. बेटियों को स्कूल जाने की आदत भले ही लगाने के लिए सरकार ने कई योजनायें चला रखी हो, पर हालात इतने जिद्दी हैं कि बदलने का नाम नहीं ले रहे.
        या यूं कहें कि राजनेता हालात को बदलने नहीं दे रहे. एक तरफ जहाँ मधेपुरा जिला मुख्यालय में बेटियों को सायकिल चलाते हुए पढने के लिए स्कूल जाते देखकर आप सुकून करते होंगे, वहीँ जिले के ही सुदूर क्षेत्र फुलौत में कई ऐसे गाँव अभी भी हमें शर्मशार करते हैं, जो कहीं से भी विकसित तो छोडिए, विकासशील भी कहलाने लायक नहीं है. फुलौत के तियर टोला की आठ साल की बेबी पढ़ना तो चाहती है, पर खतरनाक चचरी पुल पर पैर रखकर जाती बेबी, खुशबू, रिमझिम, पूजा आदि की हालत डर से तब ख़राब हो जाती है जब पुल हिलने लगता है. तियर टोला के स्कूल में फुलौत प्रखंड के झंडापुर बासा, पनदही बासा, सपनी मुसहरी, लाली बासा, घसकपुर आदि के छोटे-बड़े बच्चे चचरी पुल को पारकर ही पढने जाते हैं. जान हथेली पर रखकर जाने वाले इन बच्चों के लिए सरकार अबतक पुल-पुलिया नहीं बना सकी.
        फुलौत के इलाके में सिर्फ तियर टोला का चचरीपुल ही सरकार के विकास के दावों की पोल नहीं खोलता, बल्कि हत्यारिन बनी ‘हाहा’ धार और धूमावती स्थान में भी चचरी ही एकमात्र सहारा है, जिन्हें पार कर ‘बढ़ते बिहार’ की बेटियां और बेटे पढ़ाई करने जाते हैं. जबकि ये इलाका सूबे में दशकों से मंत्री बने नरेंद्र बाबू का ही इलाका है.
    रिपोर्ट के साथ की दूसरी तस्वीर देखिए. ये स्वास्थ्य उपकेन्द्र है. तस्वीर देखकर ये मत सोचिए कि ये पशुओं के लिए है. ये हमारे और आपके जैसे मनुष्य के लिए बने थे. पर शायद सरकार को आम आदमी और जानवर में फर्क नहीं दिखने लगा है.
      आजादी के 68 साल के बाद भी मासूम बच्चियों की शिक्षा की राह में मुश्किल बने ये चचरी के पुल और आम आदमी के स्वास्थ्य के लिए बनाए गए स्वास्थ्य उपकेन्द्र इतना बताने के लिए काफी है कि अभी भी जिले का बहुत सा इलाका सरकारी उपेक्षा का घोर शिकार बना हुआ है और नेता यहाँ समस्या देखने कभी नहीं, बस वोट मांगने पांच साल में एक बार जाते हैं.
मधेपुरा में जान पर खेलकर पढने जाती हैं बेटियाँ और अब भी है बदहाल सी जिन्दगी मधेपुरा में जान पर खेलकर पढने जाती हैं बेटियाँ और अब भी है बदहाल सी जिन्दगी Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on October 28, 2015 Rating: 5

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