मैं बिहार की राजनीति को समझना चाहता हूं लेकिन कुछ मुद्दे हैं जो दिमाग को शांत होकर समझने नहीं देते. मसलन लोग कहते हैं कि नीतीश कुमार के शासनकाल में बिहार का काफी विकास हुआ. सड़कों का जाल बिछा, बिजली सुविधा बेहतर हुई, युवाओं को रोजगार मिला, भ्रष्टाचार दूर हुआ. यदि मैं इन बातों को मान लूं कि बिहार का चौतरफा विकास नीतीश कुमार के शासनकाल में हुआ तो मेरी बुद्धि कहती है कि विकास की तुलना किसी की सापेक्ष की जाती है. मतलब यह कि बिहार में नीतीश के पहले कितना विकास हुआ और उनके शासन में आने के बाद कितना विकास हुआ. या दूसरी बात यह कि और राज्यों में कितना विकास हुआ और उसी अवधि में बिहार का कितना विकास हुआ.
ऐसे में पहली बात है कि बिहार के विकास की तुलना लालू यादव के शासनकाल के दौर से करें और वही लालू यादव आज नीतीश के साथ हैं. यदि लालू यादव के दौर में बिहार में आई सामाजिक चेतना को एक बार
नजरअंदाज कर दें और विकास को शून्य मान लें तो इस बात की गारंटी कौन देगा कि लालू-नीतीश की जोड़ी यदि सत्ता हासिल करती है तो बिहार का विकास होगा. क्योंकि कभी नीतीश भी तो कहते थे कि बिहार में जंगलराज था.दूसरी बात यदि हम दूसरे राज्यों से बिहार की तुलना करें तों किस राज्य में मूलभूत सुविधाएं नहीं बढ़ी हैं. बिहार के पड़ोसी राज्यों यूपी, एमपी, पश्चिम बंगाल में स्टेट ट्रांसपोर्ट की सुविधाएं हैं, बिहार की स्थिति जगजाहिर है. अधिकतर राज्य की राजधानी अपने जिला मुख्यालय से सड़क मार्ग से जुड़ी हैं लेकिन बिहार की स्थिति किसी से छुपी नहीं है. बिहार का हाईकोर्ट आदेश देता है कि जितने फर्जी टीचर नियुक्त हुए हुए हैं वे स्वेच्छा से इस्तीफा दें. बिजली की स्थिति यह है कि घरों में मीटर लग गए, बिजली है लेकिन पिछले करीब ढाई वर्ष से बिजली के दफ्तर का चक्कर लगाने के बावजूद बिजली बिल ग्राहकों को नहीं मिल रहा है.
इतना ही नहीं, जातिवाद के नाम पर जहां वोट डाले जाते हों, उस सूबे का मुखिया दिल्ली के मुखिया के साथ एक मंच पर है. राजनीति में बिना किसी नए आयडिया के अरविंद केजरीवाल की तर्ज पर नीतीश नरेंद्र मोदी पर वार करने के लिए ट्वीट करते हैं. मोदी के भाषण के तुरंत बाद एक-एक बातों का खंडन करते हैं जैसे दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल ने किया था.
क्या आपको नहीं लगता कि नीतीश उसी सूबे के मुखिया हैं और उनकी रग-रग में वही नक़ल दौड़ रहा है जो मैट्रिक परीक्षा की नकल करती तस्वीर मार्च के महीने में मीडिया में वाइरल हुई थी.
(लेखक हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा समेत कई अख़बारों में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रह चुके हैं और ये उनके निजी विचार हैं)
राजनीतिनामा (1): पार्टनर, आपकी पॉलिटिक्स क्या है?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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August 26, 2015
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