क्षितिज के पार
बसाने एक नया संसार
जहाँ हर दिन घरौंदे टूटने
का भय न हो
और न ही हो रीत
दाने-चुग्गे के साथ
जाल बिछा देने की.”
जयपुर
की लेखिका डॉ. मोनिका एस. शर्मा की प्रसिद्ध कविता ‘अब नहीं आती गौरैया’ की ये पंक्तियाँ गौरैया की उन
मर्मस्पर्शी मनोभावों का वह चित्रण करती है जो यह दर्शाने के लिए काफी है कि हम
विकास की दौर में भले अपने को आगे कह लें, पर हमारा लगाव पक्षियों और मनुष्यों से
घट रहा है. दरअसल ये स्थिति हमारे लिए खतरे की घंटी है और शायद हम इसे तब पूरी तरह
समझ पायेंगे जब सबकुछ हमारे हाथों से निकल जायेगी, जैसे ‘फुर्र-फुर्र’ करती मासूम गौरैया ने हमारा
आँगन छोड़ दिया है.
गौरैया
को संकटग्रस्त या लुप्तप्रायः पक्षियों की सूची में डाल दिया गया है क्योंकि इसकी
संख्यां बड़ी तेजी से घट गई है और ये स्थिति सिर्फ भारत में नहीं करीब विश्व के
अन्य देशों में भी हो गई है. माना जाता था था कि गौरैया बदलती परिस्थिति में अपने
को अनुकूल बना लेती है, पर अब हालात चिंताजनक है और पूरी दुनियां अब इसे बचाने की
जद्दोजहद में बर्ष 2010 से हर साल 20 मार्च को ‘विश्व गौरैया दिवस’ मना रही है ताकि लोगों को इसके संरक्षण के लिए जागरूक किया
जा सके.
गौरैया के विलुप्त होने के पीछे
कई कारण अहम माने जाते हैं. बहुमंजिली इमारतों की संख्यां बढ़ने के कारण इन्हें
अपना घोंसला सजाने के लिए फूस के घर नहीं मिल पा रहे हैं. शहरीकरण के दौर में
आँगन
की प्रथा खत्म हो रही है तो मोबाइल टॉवर के रेडियेशन ने इनकी प्रजनन क्षमता पर
विपरीत असर डाला है. और सबसे खास मनुष्यों के बदलते स्वभाव ने भी इन पक्षियों को हमसे
रूठने को विवश कर दिया है. आज जहाँ हमें अपनों से लगाव कम होता जा रहा है वहां इन
पक्षियों को बचाने के प्रयास की चिंता भला कौन करता है.

बिहार
में भी नीतीश सरकार इसके लिए चिंतित है और गौरैया को राजकीय पक्षी घोषित कर गौरैया
को बचाने के लिए एक प्रशंसनीय कदम उठाते हुए प्रत्येक सरकारी कार्यालयों की छत पर ‘गौरैया घर’ रखने जा रही है. मधेपुरा के एसडीओ संजय कुमार निराला भी सरकार के इस कदम से खासे उत्साहित हैं. वे कहते हैं कि गौरैया अत्यंत ही शुभ और समृद्धि का प्रतीक पक्षी माना जाता रहा है और जैसे ही सरकार का पत्र उन्हें प्राप्त होगा, वे इस मुहिम को बेहतर ढंग से मधेपुरा में लागू करवाने की पहल करेंगे.
गौरैया
(पासर डोमेस्टिकस) की कमी को महसूस करते
हुए इसे बचाने में भारत में सबसे बड़ा नाम महाराष्ट्र के नासिक के पर्यावरण
विज्ञानी मो० दिलावर का है जिन्होंने वर्ष 2008 से इस पक्षी को बचाने के लिए मुहीम
चला राखी है. इंटरनेट पर वेबसाईट ‘नेचर फॉर एवर’ के माध्यम से ‘I Love Sparrows’ की
मुहिम कई देशों तक जा पहुंची है.
पर इन
मुहिम के बीच बिहार के इस छोटे से जिले मधेपुरा में गौरैया का लौटना एक सुखद
संयोग
माना जा सकता है. गौरैया को बचाने की मुहिम के तहत जब मधेपुरा टाइम्स की टीम ने
गांवों का दौरा किया तो परिणाम चौंकाने वाले मिले. गौरैया आने लगी है, खासकर फूस
के घरों में. हमारी टीम को अचानक कुमारखंड प्रखंड के केवटगामा में पूर्व मुखिया
रमेश यादव के घर बहुसंख्य गौरैया होने की जानकारी मिलती है और जब हम वहाँ पहुँचते
हैं तो फिर उन अनोखे दृश्यों को देखने का मौका मिलता है जिन्हें हमने दशकों पहले
देखा था. गौरैया की चूँ-चूँ से उस घर का दरवाजा संगीतमय है और दरवाजे पर बने फूस
के एक घर में गौरैया के अनगिनत घोंसले हमें दिखते हैं. कहीं नर गौरैया मादा को
दाना खिला रही है तो कंहीं मादा बच्चों को. शायद पहली बार बड़े-बड़े कैमरे देखकर
दर्जनों गौरैया हिचकती है और दूर-दूर रहती है. पर जब हम इनकी खास देखभाल कर रहे
अमरदीप से चाय की चुस्कियों के बीच बैठकर बातें करते हैं तो शायद वे हमपर भरोसा कर
लेती हैं और फिर अगल-बगल उनकी हरकतें हमें आह्लादित कर दिया.

गौरैया
वापस आई हैं और पारिस्थितिकी संतुलन तथा अन्य कारणों से भी हम इन्हें वापस न जाने
दें तो बेहतर होगा. भले ही हमारे घरों में आँगन की कमी हो गई हो छत पर छोटा ही सही
एक फूस का घर या फिर लकड़ी के ‘गौरैया घर’ बनाकर रख दें और किसी बर्तन में पानी तो यकीन मानिए, इनकी
संगीतमय चहचहाहट हमारे घर में समृद्धि लाने में कारगर होगी और फिर डॉ. मोनिका एस.
शर्मा का गौरैया के प्रति दर्द इन शब्दों में नहीं उभरेगा-
“मेरे घर की मुंडेर पर
ना ही वो नृत्य करती है
बरामदे में लगे दर्पण में
अपना प्रतिबिम्ब देखकर
फुदकती गौरैया की चूँ-चूँ
भी सुनाई नहीं देती
आँगन में अब तो
और न ही वो चहकती है
खलिहानों की मिट्टी में नहाते हुए
छोड़ दिया है गौरैया ने
नुक्कड़ के पीपल की
शाख पर घोंसला बनाना भी.”
(रिपोर्ट: शंकर सुमन)
(रिपोर्ट: शंकर सुमन)
‘लो मैं आ गई’: मधेपुरा में दशकों बाद लौटी लुप्तप्राय: पक्षी गौरैया
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 07, 2015
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