अल्टरनेटिव मेडिसिन पर इतनी चिल्लपों क्यों, जब न्यायालय ने इसे माना है वैध?

मधेपुरा के फर्जी डॉक्टरों के खिलाफ अभियान क्या चला, मानों कई लोगों ने इसमें राजनैतिक हित साधना शुरू कर दिया.
      खबर है कि मधेपुरा के आईएमए ने भी अल्टरनेटिव मेडिसिन की डिग्री पर विवादित बयान देते हुए इसे वैध नहीं मानते हुए कुतर्क पेश किया है कि यदि ये वैध होता तो डिग्रीधारी सरकारी नौकरी भी पा रहे होते.
      दरअसल इन दिनों ताजा विवाद को कुछ ज्यादा ही तूल दिया जा रहा है जिसके बारे में लोग अब तरह-तरह की बातें करने लगे हैं. आईएमए के विवादित बयान पर प्रतिकिया देते हुए मधेपुरा के डॉक्टर ए. के. आनंद ने आईएमए के बयान को पूर्वाग्रह से ग्रसित माना है. उन्होंने कहा है कि वर्तमान आईएमए के अध्यक्ष ने सूचना के अधिकार के तहत सिविल सर्जन, मधेपुरा द्वारा गठित जांच कमिटी (डा. संध्या कुमारी, अल्टरनेटिव मेडिसिन) की जांच रिपोर्ट ज्ञापांक 301 दिनांक 13.08.2008 प्राप्त कर चुके हैं. जिसमें साफ़ लिखा है कई वे प्रैक्टिस कर सकते हैं. प्रैक्टिस के रूप में वे परामर्शदाता का कार्य एवं उपचार कर सकते हैं, परन्तु ऑपरेशन से सम्बंधित कार्य नहीं कर सकते हैं.

कुछ तथ्य अल्टरनेटिव मेडिसिन के बारे में: दरअसल अल्टरनेटिव मेडिसिन चिकित्सा शास्त्र की वो विधा है जो पूर्णत: वैज्ञानिक प्रक्रिया पर आधारित नहीं होने के बावजूद सदियों से कई बीमारियों के इलाज में कारगर साबित हो रही है. इस पारंपरिक विधा में नेचुरोपैथी, एक्यूपंक्चर, ट्रेडिशनल चाइनीज मेडिसीन, आयुर्वेदिक मेडिसिन, क्रिश्चियन फेथ हीलिंग आदि आते हैं, जिनपर बहुत से रोगियों को भरोसा होता है.
      भारत में अल्टरनेटिव मेडिसिन सिस्टम को बढ़ावा देने के लिए सेन्ट्रल गवर्नमेंट एक्ट XXI of 1860 के तहत कोलकाता में इन्डियन बोर्ड ऑफ अल्टरनेटिव मेडिसिन्स स्थापित है जहाँ से अल्टरनेटिव मेडिसिन से सम्बंधित कई कोर्सेज कराये जाते हैं. इसके अलावा तामिलनाडु में महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी के सौजन्य से तथा कर्नाटक स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी के द्वारा भी अल्टरनेटिव मेडिसिन से सम्बंधित कई तरह के कोर्स कराये जाते हैं और डिग्री दी जाती है. इसकी सबसे खास बात यह है कि अल्टरनेटिव सिस्टम ऑफ मेडिसिन्स के तहत प्रैक्टिस करने के लिए मेडिकल काउन्सिल ऑफ इंडिया से किसी रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता (letter No. MCI-34(1) / 96-Med. / 10984) नहीं है.
      अल्टरनेटिव मेडिसिन में दक्षता प्राप्त व्यक्ति पूरे भारत में प्रैक्टिस कर सकता है और जहाँ मदर टेरेसा से लेकर दलाई लामा तक जैसे महान लोगों ने अल्टरनेटिव मेडिसिन की तारीफ़ की है वहीँ सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट पश्चिम बंगाल, हाई कोर्ट कर्नाटक, हाई कोर्ट दिल्ली आदि ने भी इसकी वैधता को स्वीकारा है.

अल्टरनेटिव मेडिसिन को तो छोड़िये, गाँव के आरएमपी भी हैं वैध: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में रूरल मेडिकल प्रैक्टिशनर (आरएमपी) को भी एलोपैथ के जीवन रक्षक दवाइयों के 42 ड्रग ग्रुप पर प्रैक्टिश करने की छूट दी है. बात भी सही है, मानिए इस बात को कि सुदूर गाँव में यदि ये आरएमपी न हों, तो ग़रीबों की जान शहर के बड़े डॉक्टरों के भरोसे नहीं बचाई जा सकती है.

सिविल सर्जन ने भी कहा है कि ये कर सकते हैं प्रैक्टिस: हाल में ही 28 अक्तूबर को डा० ए. के. आनंद के क्लिनिक को सील करने के दौरान मधेपुरा के सिविल सर्जन डा० एन. के. विद्यार्थी ने डा० संध्या कुमारी के मामले पर कहा था कि उनके पास एमबीबीएस (ए.एम.) की डिग्री है और वे उससे सम्बंधित प्रैक्टिस कर सकती है. 2008 में भी आईएमए ने डा० संध्या कुमारी के बारे में सूचना के अधिकार के तहत पूरी जानकारी प्राप्त कर ली थी.
      ऐसी स्थिति में यदि आईएमए के द्वारा फिर से अल्टरनेटिव मेडिसीन को अवैध करार देने की बात आती है तो ये न सिर्फ न्यायालय के आदेश की अनदेखी है, बल्कि सच से भागने जैसा है.
      सुनिए इस वीडियो में अल्टरनेटिव मेडिसिन के बारे में क्या कहा सिविल सर्जन ने, यहाँ क्लिक करें.
(वि० सं०)
अल्टरनेटिव मेडिसिन पर इतनी चिल्लपों क्यों, जब न्यायालय ने इसे माना है वैध? अल्टरनेटिव मेडिसिन पर इतनी चिल्लपों क्यों, जब न्यायालय ने इसे माना है वैध? Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on November 06, 2014 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.