|मुरारी कुमार सिंह|22 सितम्बर 2014|
फर्जी डॉक्टर रोगियों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, इसमें कोई शक की गुंजायश नहीं है. फर्जी डॉक्टरों की छुट्टी होनी चाहिए इससे भी बहुत से लोग सहमत होंगे. पर ये फर्जी डॉक्टर आसानी से मानेंगे ? ये एक बड़ा
सवाल है.

यहाँ से
शुरू हुआ मरीज के शोषण का सिलसिला. वहां मौजूद डॉक्टर की ‘काबिलियत’ पर जरा गौर फरमाइए.
प्रेस्क्रिप्शन पर ‘जय
भवानी स्वास्थ्य सेवा सदन’ तो बड़े अक्षरों में लिखा है, पर उसपर किसी भी डॉक्टर का न
तो नाम लिखा है और न ही डिग्री. पेट दर्द की शिकार निर्मला देवी के लिए लिखे गए
पुर्जे पर जरा और गौर फरमाइए. विद्वान डॉक्टर साहब ने रोगी की बीमारी को लिखा, ‘Abd. Pan vomating tandency’.
आप एक
नजर में कह सकते हैं कि ये डॉक्टर फर्जी जैसा लगता है जिन्हें Pain (दर्द), Vomiting (उल्टी) और tendency (लक्षण) के स्पेलिंग भी नहीं मालूम हैं.
विद्वान
डॉक्टर साहब ने पेट दर्द के इस मरीज को कुल सात टेस्ट कराने के लिए लिखा और आठ
दवाइयां. पर यहाँ इलाज शुरू हुआ तो कहावत लागू हो गई ‘मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा
की’. निर्मला देवी इस
अज्ञात चिकित्सक के इलाज के बाद दर्द के मारे छटपटाने लगी. पति को लगा कि यहाँ वो
अपनी पत्नी को बचा न सकेगा और पत्नी ने भी जब पति को कहा कि शायद उसका अंतिम समय
नजदीक आ गया है तो बिलो मंडल अपनी पत्नी को वहाँ से निकाल कर भागा. निर्मला देवी
को बस स्टैंड के पास डा० दिलीप कुमार सिंह के द्रुवित अस्पताल में भर्ती कराया गया
जहाँ उसका इलाज किया गया और वह महज कुछ घंटे में उसे आराम मिल गया.
सवाल
बड़ा है. क्या कोई क्लिनिक बिना डॉक्टर के नाम से चल सकता है ? क्या जिसे मामूली सी
अंग्रेजी की स्पेलिंग नहीं आती हो, उसकी योग्यता, क्षमता और डिग्री शक के दायरे
में नहीं है? जाहिर है फर्जी डॉक्टरों के खिलाफ जिला प्रशासन को सटीक कार्यवाही
करनी पड़ेगी, वर्ना यूं ही जिले में ग़रीबों के जान की कोई कीमत नहीं रहेगी.
मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की: मधेपुरा के एक फर्जी डॉक्टर का कारनामा !
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
September 22, 2014
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