
कहने का अर्थ यह- पहले नाच-गान करने वाले लोग भी वादा करने में काफी सावधानी बरतते थे। लेकिन अब; वादे हैं वादों का क्या। 18 अगस्त, 2008 को कुसहा टूटा था। छह वर्ष हो

बारिश और धूप की चाबुक सह रही पीठ: बता दें कि आज की तारीख
में भी बलुआ बाजार व जीवछपुर पंचायत के ढ़ेर सारे लोग गृह क्षति मुआवजा से वंचित हैं।
वंचित लोगों द्वारा सीएम व डीएम का दरवाजा खटखटाने के बाद अपर समाहर्ता व सीओ को जांच
की जिम्मेदारी दी गयी।
चार-चार बार पीडि़तों ने आमरण अनशन भी किया। लेकिन मुआवजा नहीं मिला, मिला तो सिर्फ आश्वासन, कोरा आश्वासन। आज भी यहां के लोगों के मन में, नयन में कोसी की धारा बह रही है। आज भी छेद वाली फूस की छत में रहने वाले काफी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनके देह पर बारिश होने पर सीधे पानी टपकता है। बावजूद बारिश और धूप की चाबुक सह रही ऐसी पीठ पर किसी के भी नरम हाथ नहीं पड़े हैं। कहते हैं कि काल चक्र प्रतिदिन नया सबेरा लेकर आता है। पता नहीं आखिर कब बलुआ बाजार व जीवछपुर पंचायत के लोगों के लिए नया सबेरा होगा, होगा भी या नहीं...! (नोट- बलुआ बाजार व जीवछपुर पंचायत तो मात्र उदाहरण है। लंबी फेहरिस्त है।)
चार-चार बार पीडि़तों ने आमरण अनशन भी किया। लेकिन मुआवजा नहीं मिला, मिला तो सिर्फ आश्वासन, कोरा आश्वासन। आज भी यहां के लोगों के मन में, नयन में कोसी की धारा बह रही है। आज भी छेद वाली फूस की छत में रहने वाले काफी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनके देह पर बारिश होने पर सीधे पानी टपकता है। बावजूद बारिश और धूप की चाबुक सह रही ऐसी पीठ पर किसी के भी नरम हाथ नहीं पड़े हैं। कहते हैं कि काल चक्र प्रतिदिन नया सबेरा लेकर आता है। पता नहीं आखिर कब बलुआ बाजार व जीवछपुर पंचायत के लोगों के लिए नया सबेरा होगा, होगा भी या नहीं...! (नोट- बलुआ बाजार व जीवछपुर पंचायत तो मात्र उदाहरण है। लंबी फेहरिस्त है।)
(सुपौल से बबली गोविन्द की रिपोर्ट)
कुसहा कलंक कथा (भाग-1): तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आंखिन की देखी
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
August 06, 2014
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