हत्यारे को पुलिस ने निर्दोष कहा, पर कोर्ट ने कहा चलेगा मुकदमा: मधेपुरा पुलिस की कार्यशैली सवालों के घेरे में
|वि० सं०|19 अप्रैल 2014|
मधेपुरा का एक मामला पुलिस विभाग में व्याप्त
भ्रष्टाचार की तरफ इशारा करता है. कई लोगों की मानें तो मधेपुरा जिले में कई जगह पुलिस
विभाग में घूस का नंगा खेल चलता रहा है और हत्या जैसे मामले में भी पुलिस को खरीदा
जाता रहा है. वैसे भी बिहार में पुलिस के पैसे वालों और दबंगों के हाथों में
कठपुतली बने रहने की कहानी नई नहीं है.
ताजा
मामले में पुलिस ने मुख्य हत्यारे में से एक सोनू सिंह को आरोपमुक्त कर दिया पर
कोर्ट की नजर पुलिस डायरी में मौजूद उन तथ्यों की तरफ पड़ गई जिसमें पुलिस द्वारा
आरोपमुक्त अभियुक्त पर भी मुकदमा चलाने के प्रयाप्त साक्ष्य उपलब्ध थे. लिहाजा
कोर्ट ने पुलिस अनुसंधान के परिणाम को नहीं माना और फिर से हत्या के आरोपी उस
अभियुक्त पर मुकदमा चलने की अनुमति दे दी है.
क्या है घटना?: घटना 26 अक्टूबर 2013
की है जब मधेपुरा जिले के उदाकिशुनगंज अनुमंडल के ग्वालपाड़ा (अरार) ओपी के डेफरा छपरिया
बासा में जलावन दीवार से सटा कर रखने जैसी मामूली बात पर संजीत सिंह की हत्या कर
दी गई. मामले में संजीत के परिवारवालों ने पड़ोस के ही सुनील सिंह, धीरेन्द्र सिंह,
अनिल सिंह, देवा सिंह, सर्वेश सिंह, सोनू सिंह समेत कुछ महिलाओं को भी हत्या में
शामिल बताया. यही नहीं तत्कालीन अनुसंधानकर्ता बिमल मंडल और बाद के अनुसंधानकर्ता
मुकेश कुमार को छ: प्रत्यक्षदर्शियों ने भी बताया कि मारपीट इन्हीं लोगों ने की जिसके बाद इलाज
के दौरान घायल संजीत सिंह की मौत हो गई.
इस
मामले में अनुसंधानकर्ताओं ने सोनू सिंह सहित अन्य के खिलाफ गिरफ्तारी के लिए
कोर्ट से वारंट, इश्तेहार और कुर्की की भी मांग की, पर मामले में तत्कालीन
उदाकिशुनगंज एसडीपीओमनोज कुमार सुधांशु ने अपने पर्यवेक्षण में सोनू सिंह पर गहराई से जांच करने का
संकेत दिया और फिर दूसरे जगह के दो गवाहों की गवाही पुलिस ने ली और सोनू सिंह को
आरोप मुक्त कर दिया. पर आरोपपत्र कोर्ट में समर्पित करने के बाद मधेपुरा के
विद्वान न्यायिक दंडाधिकारी मनोज कुमार ने पाया कि केश डायरी के पारा 6, 8, 9, 10,
26 और 27 में पाया कि पुलिस द्वारा बरी किये गए सोनू सिंह की भी हत्या में
संलिप्तता प्रथम द्रष्टया नजर आती है. बस क्या था, कोर्ट ने अपनी शक्ति का उपयोग
करते हुए पुलिस द्वारा आरोपित अन्य अभियुक्तों के साथ सोनू सिंह पर मुकदमा चला
दिया है.
जानकारों
की मानें तो केश डायरी में जितने साक्ष्य सोनू सिंह के खिलाफ उपलब्ध थे, उस आधार
पर पुलिस ने ‘ऑवरएक्ट’ कर सोनू सिंह को मुक़दमे से बाहर
करने का प्रयास किया था. जबकि जब छ: प्रत्यक्षदर्शियों ने सोनू सिंह की संलिप्तता
कांड में बता दी थी तो ऐसे में बाहर के दो गवाहों की गवाही अंत समय में दिखाकर उसे
आरोपमुक्त करना पुलिस की कार्यशैली पर अंगुली उठाने का मौका देता है. वैसे भी
दोषसिद्ध या दोषमुक्त करने का अंतिम अधिकार ट्राइल के बाद न्यायालय को होता है. प्रश्न
यह भी उठता है कि यदि अनुसंधानकर्ताओं को सोनू सिंह की संलिप्तता काफी समय तक दिखी
तब ही तो उसके खिलाफ भी वारंट-कुर्की माँगा गया था.
हत्यारे को पुलिस ने निर्दोष कहा, पर कोर्ट ने कहा चलेगा मुकदमा: मधेपुरा पुलिस की कार्यशैली सवालों के घेरे में
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 19, 2014
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