|मुरारी कुमार सिंह|30 मार्च 2017|
चुनाव का नाम सुनते ही इस गाँव के लोगों का गुस्सा
सातवें आसमान पर है. हो भी क्यों नहीं, चुनाव से यहाँ के लोगों को आजतक कोई फर्क
नहीं पड़ा है. जनप्रतिनिधि जीतकर पटना-दिल्ली चले जाते हैं, किसी ने इस गाँव की तरफ
मुड कर नहीं देखा. जिस भेलवा पंचायत में यह गढिया गाँव पड़ता है उस पंचायत को सरकार
ने आदर्श पंचायत घोषित कर दिया पर आजादी के 46 साल के बाद भी इस गाँव में विकास के
कोई लक्षण दिखाई नहीं दे रहे है.
ग्रामीण
बताते हैं कि यहाँ आवागमन की भारी असुविधा है और बरसात के दिनों में तो यदि कोई
बीमार पड़ जाए तो उसे बाहर ले जाना भी मुश्किल काम है. सड़क का काम अभी भी अधूरा है.
वर्ष 2011 में बिजली के खम्भे गिराए गए तो भेलवा, सखुआ और सिमराहा में बिजली आ रही
है पर गढिया में खम्भे भी नहीं गाड़े गए. स्कूल तो है, पर पढाई नहीं. शिक्षक मनमाने
ढंग से आते हैं और ग्रामीणों की नहीं सुनते है. इस गाँव में एक स्वास्थ्य केन्द्र
तक नहीं है.
ग्रामीणों
का गुस्सा पूर्व सांसद शरद यादव पर भी है और स्थानीय विधायक चंद्रशेखर और मुखिया के
बारे में भी ये कहते हैं कि अपने पेट के लिए मरते हैं और हमारे बारे में कुछ नहीं
सोचते हैं.
जिला
प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधि को समस्याओं की सूचना देना बेकार साबित हुआ और
सिर्फ आश्वासन मिलकर ही रह जाता है.
यानि कि
इस गाँव में न सड़क, न बिजली और न शिक्षा के ही साधन है. ऐसे में कैसा लोकतंत्र और
कैसी सरकार. क्यों करें हम मतदान, जब सरकार इन्हें कोई सुविधा ही नहीं दे रही है.
ग्रामीणों ने यही कहकर लोकसभा चुनाव में मतदान के बहिष्कार का फैसला किया है.
यहाँ
आवश्यकता है जिला प्रशासन जाकर इनकी समस्याएं सुनें और इन्हें समझाए ताकि ये वोट
बहिष्कार के अपने फैसले वापस ले जिससे मधेपुरा का एक हिस्सा लोकतंत्र के महापर्व
को मनाने से वंचित न रह सके और सरकार गठन में सबकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके.
सुनें ग्रामीणों का दर्द, यहाँ क्लिक करें.
वोट बहिष्कार का फैसला: आदर्श पंचायत की खुली पोल, गढिया गाँव विकास से दूर
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 30, 2014
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