डीएनए टेस्ट होगा बच्चे का?: जिन्दा तो मिलेगा एक को, पर मुर्दे का अंतिम संस्कार करना पड़ा दोनों दावेदारों को


 |वि० सं०|05 जनवरी 2014|
कुदरत के खेल भी निराले हैं. पर कुदरत के खेल को बिगाड़ने में भगवान के बनाये मानव काफी आगे निकल गए हैं. बच्चे की चाह दोनों दंपतियों को क्या-क्या दिन दिखाएँगे अभी कुछ कहना मुश्किल है. मधेपुरा जिला मुख्यालय के बाय पास रोड में शिशु रोग विशेषज्ञ डा० अजय कुमार के क्लिनिक पर कल हुए हंगामे के बाद मामला अबतक नहीं सुलझ पाया है. लापरवाही चिकित्सक की है या फिर किसी एक दावेदार की वजह से मामले ने तूल पकड़ रखा है, अभी यह भी कहना संभव नहीं है. इस बीच पुलिस की मुश्किलें भी बेवजह बढ़ गई है.

डॉक्टरों ने कहा था जिन्दा बच्चा सुशील का: दरअसल दो बच्चों के क्लिनिक में आने के बाद एक बच्चे की मौत के बाद जब हंगामा शुरू हुआ तो जिन क्लिनिकों में इन दोनों बच्चों का जन्म हुआ था, वहां के डॉक्टरों को बुलाया गया. डा० नायडू कुमारी के यहाँ जन्मे खाड़ी, मुरलीगंज के सुशील यादव/नूतन देवी का बच्चा स्वस्थ था और उसे मामूली चेकअप के लिए डा० अजय कुमार के क्लिनिक पर लाया गया था. दूसरी तरफ मौरा बघला, शंकरपुर के संजय यादव/सुलोचना देवी ने बच्चे को डा० संतोष कुमार के क्लिनिक में जन्म दिया था जिसे जन्म के बाद से ही कन्वल्सन (चमकी) की शिकायत थी. दोनों डॉक्टरों ने चमकी की शिकायत वाले बच्चे को मृत बताया और जिन्दा बच्चा सुशील यादव/नूतन देवी का घोषित किया. पर संजय और सुलोचना यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उनका बच्चा अब इस दुनियां में नहीं है.
      मामला जब नहीं सुलझा तो पुलिस को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा.

मृतक बच्चे का अंतिम संस्कार किया दोनों ने: उधर मृत बच्चे को भले ही कोई पक्ष अपना न कह रहा हो, पर मरे बच्चे की लाश को ज्यादा रख पाना अस्पताल या पुलिस प्रशासन के लिए संभव नहीं था, लिहाजा शव का अंतिम संस्कार करना जरूरी था. पर इस मृतक बच्चे का दावेदार दोनों पक्षों में से कोई नहीं हो रहा था, जबकि मृतक बच्चा दोनों में से किसी एक का निश्चित रूप से था. और फिर पुलिस के पास एक तीसरा रास्ता ढूँढने के अलावे कोई उपाय नहीं था. तय हुआ कि जबतक जिन्दा या मरे बच्चे के पितृत्व पर अंतिम फैसला नहीं हो जाता, तबतक दोनों मिलकर मृतक बच्चे का अंतिम संस्कार कर दे. और हुआ भी यही.

डीएनए टेस्ट ही अंतिम उपाय: पितृत्व निर्धारण के लिए डीएनए फिंगर प्रिंटिंग टेस्ट अंतिम तथा सबसे अधिक विश्वसनीय उपाय होता है. ऐसे में अब जिन्दा बच्चे का पिता सुशील ही है या फिर दूसरा दावेदार संजय, यह जानने के लिए बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने का फैसला लिया जाना बाक़ी है, यदि संजय यादव जिन्दा बच्चे पर अपना दावा नहीं छोड़ते हैं. हालांकि चिकित्सक की ओर से कुछ लोग अभी भी सुलह ही गुंजाईश देख रहे हैं.
 
हो सकता है डॉक्टर या दावेदारों पर एफआईआर: जानकारों का मानना है कि यदि बच्चे का डीएनए टेस्ट कराया जाता है और यदि बच्चे का पिता संजय यादव को ठहराया जाता है तो क्लिनिक के संचालक डा० अजय कुमार और उनके सम्बंधित कम्पाउंडर के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया जा सकता है. और यदि बच्चा वास्तव में सुशील यादव का होता है तो बेवजह हंगामे की वजह बने संजय यादव पर भी मुकदमा किया जा सकता है.
      इस बीच फिलहाल बच्चे को डॉक्टरों के कहे अनुसार सशर्त सुशील यादव/नूतन देवी को सौंपा जा सकता है, क्योंकि असली पिता मिलने तक बच्चे की भी सुरक्षा अहम है. जो भी हो, मधेपुरा में यह मामला लोगों की कौतूहल बन चुका है और लोग यह जानना चाहते हैं कि इस पूरे मामले में अंतिम निर्णय क्या होता है.
डीएनए टेस्ट होगा बच्चे का?: जिन्दा तो मिलेगा एक को, पर मुर्दे का अंतिम संस्कार करना पड़ा दोनों दावेदारों को डीएनए टेस्ट होगा बच्चे का?: जिन्दा तो मिलेगा एक को, पर मुर्दे का अंतिम संस्कार करना पड़ा दोनों दावेदारों को Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on January 05, 2014 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.