बुजुर्गों की उपेक्षा: सिक्के के दो पहलू, दोष किसका ?

आज वृद्धावस्था में जूझते लोगों की पीड़ा किसी से अछूती नहीं है. युवापीढ़ियों के द्वारा उनका तिरस्कार और अपमान उनके लिए असहनीय है. वृद्धाश्रम का होना ही उनके जीवन के कड़वे सच को दर्शाता है. बुजुर्गो की उपेक्षाएं बढ़ती जा रही है. कारण अपनी जगह पर दोनों जिम्मेवार एक दूसरे को मान रहे हैं. पर सिर्फ जिम्मेवारी ठहरा देना इसका समाधान तो नहीं है. इसके पीछे के कारणों पर नजर दें तो समाधान भी निकालना मुश्किल नहीं.

क्या इसके लिए केवल युवाओं को ही दोष देना उचित होगा? 
इनके रिश्तों को सुधरने के लिए आपसी तालमेल और सामंजस्य का होना बहुत जरुरी है. आज हर कोई खुली हवा में सांस लेना चाहता है, खुल कर जीना चाहता है. बुजुर्गों का ये सोचना गलत नहीं कि आजकल हवाएं बड़ी गन्दी हो चली है. पर बात रोक टोक से नहीं, आजादी छीन कर नहीं, अपितु प्यार से समाधान कर बनेगी.
आप अपने बच्चों को ऐसी परवरिश दे जो सही और गलत की पहचान कर सके. उनके सपनो का घरौंदा तैयार करने में उनकी मदद करें. कभी कभी बुजुर्गों द्वारा जरुरत से ज्यादा सख्ती बरतना बच्चों के मनोभाव पर गलत असर करता है. ऐसे में आप उनकी बातों को सहजता से सुने और उसके अनुरूप उनकी इच्छाओं को भी एक दायरे में रहकर महत्त्व जरुर दें.

कुछ मामलों में बुजुर्ग भी दोषी: कई बार घर के बड़े बुजुर्ग संस्कार और रीतिरिवाज के नाम पर कुछ ज्यादा ही पाबन्दी लगा डालते है. ऐसा सोचना गलत है और वर्षों से चली आ रही कई बेकार के ढकोसले को भी जीवनपर्यंत ढोते रहना बुद्धिमानी भरा काम नहीं है. बदलते परिवेश में जहाँ दुनियां खुल कर जीना चाहती है इस तरह के रोक टोक से उनके लक्ष्य में बाधा पहुँचती है. जिसके परिणामस्वरूप युवाओं का व्यवहार बड़ों के प्रति बदलने लगता है. और फिर उनकी बातों को अनसुना कर उनका अपमान करना धीरे धीरे उनकी आदत बनने लगती है.

क्या हैं रास्तें?: वृद्धावस्था में बुजुर्गों को विशेष देखभाल की जरुरत होती है. उनके साथ समय बिताने की जरुरत है, जो भागदौड़ भरी व्यस्त ज़िंदगी में मुश्किल है. पर उनके लिए वक़्त निकलना उतना ही जरुरी है जितनी उनकी और जरूरतें.  शरीर के साथ साथ उनका अपने बच्चों से दूर होना उनके लिए घातक सिद्ध होता जा रहा है. यहाँ हमें एक दूसरे के जज्बातों को दोस्त की तरह समझना होगा. कभी भी प्यार से ज्यादा अनुशाशन प्रभावी नहीं हो सकता.
बहुत तकलीफदेह होता है बुढ़ापे की स्थिति में सड़कों पर किसी को भीख मांगते देखना, लोकल ट्रेनों में भारी भरकम बोझ उठाये फेरी लगाते देखना, अपमान के घूंट पीकर अपने जीवन को तपते रेत में आगे बढ़ाना या फिर अपने आप को गिरवी रख वृद्धाश्रम की ऊँची दीवारों को नापना.


जूली अग्रवाल
कोलकाता
बुजुर्गों की उपेक्षा: सिक्के के दो पहलू, दोष किसका ? बुजुर्गों की उपेक्षा: सिक्के के दो पहलू, दोष किसका ? Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on January 12, 2014 Rating: 5

4 comments:

  1. प्रशंशनीय आर्टिकल्स है ... गहन मुद्दे पे लिखी गई लेख है , जिसमें दो पीढ़ी के उतर चढ़ाव और कमजोर रिश्ते को बड़ी सी सहजता से रखा है .. सुझाव भी सराहनीय है ! हार्दिक शुभकामनायें !!

    ReplyDelete
  2. प्रशंशनीय आर्टिकल्स है। . आर्टिकल्स के विषय का चुनाव और लेख में लिखी सारा तथ्य और आपकी संजीदगी इन रिश्तों के लिए सराहनीय है। आज दो पीढ़ी के बीच खाई को आपने बाँटने का बहुत उम्दा कार्य किया है आपने साथ ही आपके सुझाव भी खूब है ..!

    ReplyDelete

Powered by Blogger.