|मुरारी कुमार सिंह|04 दिसंबर 2013|
‘भाई साहब नहीं लगेगा’. बीएसएनएल का फुल फॉर्म कभी लोगों के मुंह से इसी तरह का
सुना जाता था. स्थिति बीच-बीच में तो खराब होती ही रहती है, पर इन दिनों मोबाइल के
बढ़ते प्रचलन से अब ऐसा लगता है कि बीएसएनएल के कर्मचारी आराम में आ चुके हैं. लैंडलाईन
अधिक थे तो ग्राहक ऑफिस आते रहते थे, अब कम है तो झंझट भी कम है. इसलिए तो ये इन
दिनों ऑफिस में कम नजर आते हैं. आज दिन में जब मधेपुरा टाइम्स ने मधेपुरा के
बीएसएनएल (भारत संचार निगम लिमिटेड) कार्यालय का दौरा किया तो पूरा कार्यालय ही
खाली था. कार्यालय के दरवाजे खुले हुए थे पर कुर्सियां इस इन्तजार में थी कि साहब
आयेंगे. मधेपुरा टाइम्स का संवाददाता पन्द्रह मिनट तक साहबों के इन्तजार में रहा,
पर ‘इन्तहां हो गई इन्तजार
की, आई न कुछ खबर.....’ यानि अब भी साहब नहीं मिलेंगे..वाली बात यहाँ दिख रही है. कोई चपरासी भी नजर नहीं आया कि पूछ लिया जाय. ऐसे में तो ऑफिस से कोई कुछ उठाकर भी चल दे तो कोई बड़ी बात नहीं.
खाली कुर्सियां: कहाँ गए बीएसएनएल के कर्मचारी ?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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December 04, 2013
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