|कुमारी मंजू|24 दिसंबर 2013|
अपने फरमानों से विश्वविद्यालय कर्मियों का दिल
दुखाना बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति डा० आर. एन. मिश्रा को काफी
महंगा पड़ा. परेशान पदाधिकारी के उच्च न्यायालय पहुँचते ही कुलपति पर दुःख का पहाड़
टूट पड़ा. कार्यवाहक कुलपति के कार्यकलाप पर जब न्यायालय की नजर टेढ़ी हुई तो न्याय
के चाबुक से कुलपति का निर्देश अस्त-व्यस्त हो गया.
मसलन न्यायालय ने उनके सभी अधिकारों को जब्त करते हुए फरमान जारी किया कि अब कार्यवाहक कुलपति केवल अपने पद पर बने रहेंगे. उनको न तो वित्तीय अधिकार मिलेगा और न ही वे नीतिगत फैसले कर सकेंगे. इतना ही नहीं, न्यायालय ने उनके सभी निर्देशों पर भी पानी फेर दिया, जिसे उन्होंने कुलपति का प्रभार लेने के बाद 27 अप्रैल 2013 के बाद जारी किया था. लिहाजा पदाधिकारियों की नियुक्ति, आचार्यों की प्रोन्नति, टीपी कॉलेज के प्राचार्य के रूप में डीएस
कॉलेज कटिहार से डा० सुरेश प्रसाद यादव का स्थानांतरण समेत अन्य
अधिसूचनाएं स्वत: निरस्त हो गई. किन्तु इस बीच सवाल यह है कि प्रभारी कुलपति बनने
ले बाद डा० मिश्रा ने अपने बकाया राशि एमएलटी कॉलेज सहरसा से जो लाखों रूपये की
निकासी किया है, उन्हें वह वापस करेंगे या नहीं. या फिर विश्व विद्यालय परिनियम के
58 तथा 59 धारा से अपने को मुक्त करने वाले कुलपति का फैसला यथावत रहेगा, यह तो जांच
के बाद ही पता चलेगा.
साथ ही इस बात की भी आशंका है कि न्यायालय का फैसला कुलपति के इस मंसूबे पर भी पानी फेर देगा, जिसमें कुलपति को प्रोन्नति समिति ने प्रोन्नति दी है. विश्वविद्यालय सूत्रों की मानें तो कुलपति की देखरेख में पीएचडी की डिग्री हासिल करने के लिए किशोर नाथ झा ने अपना पंजीयन कराया था. समय से शोध कार्य के निष्पादन नहीं होने के कारण श्री झा ने अपना गाइड बदल लिया और निर्मली कॉलेज निर्मली के आचार्य की निगरानी में पीएचडी की उपाधि ली. पर कहा जाता है कि प्रोन्नति के समय प्रभारी कुलपति ने किशोर नाथ झा को शोधकर्ता के रूप में दिखाते हुए उसका लाभ ले लिया और प्रोन्नति हासिल कर ली. जानकारों का कहना है कि केवल पंजीयन कराने मात्र से उसका लाभ कुलपति को मिलना क़ानून की नजर में सही नहीं है.
मसलन न्यायालय ने उनके सभी अधिकारों को जब्त करते हुए फरमान जारी किया कि अब कार्यवाहक कुलपति केवल अपने पद पर बने रहेंगे. उनको न तो वित्तीय अधिकार मिलेगा और न ही वे नीतिगत फैसले कर सकेंगे. इतना ही नहीं, न्यायालय ने उनके सभी निर्देशों पर भी पानी फेर दिया, जिसे उन्होंने कुलपति का प्रभार लेने के बाद 27 अप्रैल 2013 के बाद जारी किया था. लिहाजा पदाधिकारियों की नियुक्ति, आचार्यों की प्रोन्नति, टीपी कॉलेज के प्राचार्य के रूप में डीएस

साथ ही इस बात की भी आशंका है कि न्यायालय का फैसला कुलपति के इस मंसूबे पर भी पानी फेर देगा, जिसमें कुलपति को प्रोन्नति समिति ने प्रोन्नति दी है. विश्वविद्यालय सूत्रों की मानें तो कुलपति की देखरेख में पीएचडी की डिग्री हासिल करने के लिए किशोर नाथ झा ने अपना पंजीयन कराया था. समय से शोध कार्य के निष्पादन नहीं होने के कारण श्री झा ने अपना गाइड बदल लिया और निर्मली कॉलेज निर्मली के आचार्य की निगरानी में पीएचडी की उपाधि ली. पर कहा जाता है कि प्रोन्नति के समय प्रभारी कुलपति ने किशोर नाथ झा को शोधकर्ता के रूप में दिखाते हुए उसका लाभ ले लिया और प्रोन्नति हासिल कर ली. जानकारों का कहना है कि केवल पंजीयन कराने मात्र से उसका लाभ कुलपति को मिलना क़ानून की नजर में सही नहीं है.
मंडल वि०वि०: बदकिस्मती की परछाइयों में दम तोड़ रहे कुलपति के फरमान
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 24, 2013
Rating:
No comments: