|वि० सं०| 13 मई 2013|
देश भर में बच्चियों के साथ बढते दुष्कर्म पर जहाँ
चिंतन-मनन का दौर जारी है वहीं छोटी बच्चियां भी खौफजदा हैं. मासूमों को समझ में
नहीं आ रहा है कि उनकी बहने के साथ क्या हो रहा है.वे इतना ही समझ पा रही हैं कि
कुछ गंदे लोग उनके साथ ऐसा कर गुजरते हैं जिससे उनकी जिंदगियां तबाह हो जा रही है.
कल तक आजाद खेलने वाली बच्चियों में मन पर गहरा भय छा जाता है जब माता-पिता उनसे
ये कहते हैं कि बेटी बाहर खेलने मत जाओ. वे समझ नहीं पाती हैं कि कल तक पापा प्यार
से उनसे कहा करते थे, जाओ बेटा, खेल कर आओ. पर आज उसे देखकर वे सहमे नजर आ रहे
हैं.
दिल्ली
में जब मासूम गुड़िया दरिंदों के हवस का शिकार होने के बाद अस्पताल में जिंदगी और
मौत के बीच लटकी हुई थी तो मधेपुरा में छोटी बच्चियां कैंडल जलाकर उसके जीवन की
दुआएं मांग रही थी. दहशत में जी रही एक बच्ची प्रीति का आक्रोश फूट पड़ा. कहती है, “ऐसा कब तक होता रहेगा और हम नारी
कब तक असुरक्षित रहेंगे.” प्रीति आगे कहती है इतिहास बताता है कि इससे बेहतर तो
हमारा देश गुलामी के दौर में था. उस समय देश इन मामलों में बदनाम नहीं होता था. आज
देश बदनामी से भी बदतर स्थिति में हैं और ये घिनौना बन चुका है. बच्चियों ने सरकार
से अपनी सुरक्षा की मांग की.
बच्चियों
की जिंदगी बर्बाद करने वाले दुष्कर्मियों के खिलाफ हम अपना रोष तो प्रकट कर देते
हैं, पर ऐसी घटनाएँ रुक कहाँ पा रही हैं ? इन घटनाओं के इस पहलू पर भी चिंतन
आवश्यक है कि कैसे पनपती है बच्चियों के साथ दुष्कर्म की प्रवृति ?
खौफजदा बच्ची ने कहा, “देश गुलाम बेहतर था, अब घिनौना हो गया है”.
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 13, 2013
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