|राजीव रंजन| 28 मार्च 2013|
राधा देवी की जिंदगी में दर्द ने अपना बसेरा स्थायी
रूप से बना लिया है. छ: माह पूर्व पति पिंटू राय ने जब गरीबी और बीमारी की वजह से
इस दुनियां को अलविदा कहा तो पांच साल के बेटे रोहित और चार साल के आशीष की जिंदगी
की गाड़ी को आगे खींचना राधा को मुश्किल लगा. चौका-बर्तन कर कुछ कमा कर लाने लगी तो
घर पर सास भूखनी देवी दोनों पोतों की देखभाल करती रही. पर अचानक सास के भी गुजर
जाने से मानो राधा की जिंदगी में दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा. और तो और दोनों मासूम
बच्चों के सर पर से माँ का साया भी उठता तब दिखा जब राधा आंत की गंभीर बीमारी से
ग्रस्त हो गई. डॉक्टरों ने इलाज महंगा कहा तो राधा ने इसे ईश्वर का कोप ही मान
लिया और अब मौत का इन्तजार कर रही है. इन दिनों माँ का श्राद्धकर्म कर रही राधा बच्चों
का क्या होगा पूछने पर कहती है जो भगवान की मर्जी होगी उसे कोई नहीं रोक सकता. हो
सकता है मेरी मौत के बाद वे मेरे बच्चों को भी पाने पास बुला ले पर जब तक सांस बची
है ये बच्चे ही मेरी जिंदगी है.
हालांकि
जिला मुख्यालय के जयपालपट्टी में नदी के किनारे रह रही राधा देवी को आज वार्ड
पार्षद ध्यानी यादव ने सहायता के तौर पर 1100 रूपये और पचास किलो चावल दिया ताकि
राधा माँ के श्राद्धकर्म कर सके और बच्चों को कुछ दिन और दो जून की रोटी मुहैया
करा सके. पर क्या राधा की मदद के लिए कई और हाथ बढ़ सकेंगे इसे कोई नहीं जानता और
यदि लोगों के हाथ इनकी तरफ नहीं बढ़े तो राधा की सांस एक दिन टूट जायेगी और फिर
बच्चे... ????? कल्पना ही भयावह है.
दर्द भरी जिंदगी: बढ़े राहत के कुछ हाथ
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 28, 2013
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