चिंतन: यह समझ कर काम न करें कि कोई काम आएगा

अपने जीवन से लेकर परिचितों, संपर्कितों और कुटुम्बियों से लेकर परिवेश या क्षेत्र से जुड़ा कोई सा काम हो, सभी कामों के बारे में यही सोचकर करना चाहिए कि यह अपना फर्ज और धर्म है और इसके लिए यह जरूरी है कि हर काम को लोक सेवा या अपना दायित्व मानकर पूरा करें।
आजकल कत्र्तव्य कर्म गौण होते जा रहे हैं और फर्ज तथा धर्म की परिभाषाएं इतनी संकुचित हो चली हैं कि आदमी को अपने स्वार्थ और संकीर्ण दायरों से ऊपर उठकर सोचने तक की फुर्सत ही नहीं रही।
अधिकांश लोगों की जिन्दगी अपने सीमित दायरों में कैद होकर रह गई है और ऎसे मेें व्यक्ति के भीतर का विराट तत्व बहकर कहीं पलायन कर चुका है और इसका स्थान ले लिया है संकीर्णताओं ने।
यह संकीर्णताएं मन और मस्तिष्क में इतनी हावी हैं कि आदमी को अपने चारों का वातावरण अपने लिए ही जी रहा लगता है और ऎसे में आदमी की अपेक्षाओं में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है।
आजकल आदमी का कोई काम दूसरे आदमी यह मानकर पूरे नहीं करते हैं कि यह उनका कत्र्तव्य कर्म है। या तो आदमी गुलामों की तरह जिन्दगी बसर करने का आदी हो गया है या वह ऎसा अधमरा हो चला है कि किसी बाहरी दबाव या धमकियों से प्रभावित होकर ही कोई काम करता है या फिर कुछ न कुछ मिल जाने के फेर मेंं।
लोभ-लालच या दबाव भी सामने न हों तो फिर एक बहुत बड़ा कारक है भविष्य की सुरक्षा का। हमारे अपने आस-पास, अपने इलाकों में तथा अपने पूरे क्षेत्र में ऎसे लोगों की बहुतायत है जो वर्तमान की बजाय भविष्य की ओर टकटकी लगाए बैठे हुए होते हैं।
ये लोग किसी भी प्रकार की ड्यूटी या कत्र्तव्य अथवा करणीय कर्म न ईमानदारी से पूरे करते हैं न उनमें ऎसी लोक सेवा की भावना ही हुआ करती है। बल्कि ये लोग उन लोगों का ही काम करते हैं जिनसे उनका मतलब सिद्ध होता हो अथवा जिनके बारे में यह संभावनाएं हों कि ये लोग भविष्य में काम में आ सकते हैं अथवा जिनसे भविष्य में काम लेना हमारे लक्ष्यों या षड्यंत्रों का हिस्सा हुआ करता है।
जबकि ऎसा सोचने और करने वालों को न अपने भविष्य का पता है, न दूसरों के भविष्य के बारे में। फिर भी मानव मन चूंकि लोभी-लालची और दूरद्रष्टा होता है इसलिए वर्तमान को भले आदर दे या न दें, मगर भविष्य की पार जरूर बांध लेने की कोशिश करता रहता है।
जो लोग वर्तमान की उपेक्षा कर भविष्य की ओर ही आँखें गड़ाये या लालची नज़रों से तकियाते रहते हैं उनका वर्तमान भी खराब होता है और भविष्य की भी कोई गारंटी नहीं होती। वर्तमान को बिगाड़ कर कोई भी अपने भविष्य को न सुधार सकता है, न सँवारने की स्थिति में होता है।
इसका सीधा सा समाधान यह है कि वर्तमान को सुधारे और सँवारें ताकि भविष्य के सुनहरा बने रहने की बुनियाद को मजबूती मिले। फिर एक बार नींव जम गई तो आने वाले समय में सुनहरे वटवृक्षों की कल्पना भी अपने आप साकार होती चली जाती है।
इसलिए हमेशा यह याद रखें कि भविष्य को सुरक्षित एवं सुनहरा बनाने के लिए वर्तमान के सभी कर्म अच्छी तरह करें। जो लोग हमारे संपर्क में आते हैं उन सबके लिए हमारी भागीदारी स्पष्ट और निष्काम होनी चाहिए।
वर्तमान की ड्यूटी को पूरी ईमानदारी एवं बिना किसी पक्षपात या लाग-लपेट अथवा भय या प्रलोभन के पूरी करें और वर्तमान को पूर्ण सम्मान प्रदान करें ताकि भविष्य की बुनियाद को संबल प्राप्त हो सके।
किसी का भी कोई काम यह समझ कर नहीं करें कि भविष्य में काम आ सकता है अथवा भविष्य में उससे किसी भी प्रकार का काम निकलवाया जा सकता है। भविष्य को लेकर आशंकित लोगों की पूरी जिन्दगी शंकित और भ्रमित अवस्था में ही गुजर जाती है और जिन लोगों के काम भविष्य की पार बांधने के मकसद से किए होते हैं उनके सहारे जाने कब छिन जाते हैं, हमें पता ही नहीं लगता है।
और तब हमें इस बात का मलाल सताता रहता है कि हमने भूत को बरबाद कर दिया और इस कारण वर्तमान का सुख-चैन भी छीनता रहा  और भविष्य ऎसे तिराहे पर खड़ा है जहां एक ओर भ्रम तथा शंकाएं हैं, दूसरी और आशाएं, आकांक्षाएं और जिजीविषा है तथा तीसरी ओर खड़ी है मौत...। ऎसे में हम कभी यह तय नहीं कर पाते की रोशनी की किरणें कहां से आ सकती हैं। और अन्ततोगत्वा एक दिन राम नाम सत्य हो ही जाता है।
इसलिए जो करना है अच्छा करें, वर्तमान के कत्र्तव्य कर्मों के प्रति हीनता भाव न रखें। भविष्य ही भविष्य की ओर अनावश्यक दृष्टिपात न करते रहें तथा जहाँ हैं वहाँ पूरी मस्ती के साथ इस प्रकार काम करें कि भीतरी आनंद का महासागर हमेशा ज्वार उमड़ाता रहे।
- डॉ. दीपक आचार्य (9413306077)
चिंतन: यह समझ कर काम न करें कि कोई काम आएगा चिंतन: यह समझ कर काम न करें कि कोई काम आएगा Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on March 17, 2013 Rating: 5

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