मीटिंग, मीटिंग मीटिंग और मीटिंग्स में बिज़ी ब्यूरोक्रैट्स !

हमारे देश में डेमोक्रेसी या फिर राजतंत्रीय व्यवस्था लागू है प्रश्न के उत्तर में झट से लोग कहेंगे कि लोकतंत्र (डेमोक्रेसी)। उन्हें हम भी अपनी ही तरह अनुभवहीन कह सकते हैं, क्योंकि हम भी अक्सर अपने व्याख्यानों में अपने को स्वस्थ लोकतंत्रीय प्रणाली वाले देश भारत जो इंडिया है का निवासी बताते हैं। चलिए जो कुछ भी कहा जाए कम ही होगा। हेल्दी डेमोक्रेसी यानि स्वस्थ लोकतंत्र का संचालन आम जनता द्वारा चयनित जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ आई.ए.एस. भी करता है। आई.ए.एस. के बारे में उ.प्र. के युवा सी.एम. ने अभी हाल में कहा कि आई.ए.एस. अफसर किसी के नहीं। सी.एम. श्री अखिलेश यादव जी ने तो आई.ए.एस. की एक नई परिभाषा भी दे डाली- आई यानि इनबिजिबुल (दिखाई न पड़ना), ए. यानि आफ्टर (बाद), एस. फॉर सरकार इस तरह इनबिजिबुल आफ्टर सरकार मतलब सरकार जाने के बाद दिखाई न पड़ना। सी.एम. यू.पी. ने कहा कि सरकार में होने पर आई.ए.एस. आगे-पीछे घूमते हैं और सरकार में न रहने पर गायब हो जाते हैं।
यू.पी. के सी.एम. के इस कथन को नकारा नही जा सकता। इस बयान के पूर्व सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव जी और उ.प्र. के मंत्री आजम खाँ साहेब के बयान छपे थे कि डण्डे की भाषा समझते हैं अफसर- इन्हें हैण्डल करने के लिए प्रदेश सरकार के मुखिया को कड़क बनना पड़ेगा साथ ही अवामको भी जागरूक होने की जरूरत है। हमारा मानना है कि वर्तमान में विशुद्ध रूप से नौकरशाही चल रही है जिसे ब्यूरोक्रेसीकहते हैं। गाँव के सेक्रेटरी से लेकर कलेक्टर तक और होम गार्ड से लेकर पुलिस कप्तान तक सभी सरकारी ओहदेदारों का सर्वे किया जाए तो एक ही बात सामने आएगी कि सभीं साहेबान मीटिंग में बिजी हैं, जहाँ आम आदमी अपनी समस्या लेकर नहीं जा सकता है। यह मीटिंगक्या बला है? क्या सरकार की नीतियों को सुचारू रूप से लागू करने के लिए अफसरों की बैठक ही मीटिंग कहलाती है? सरकारी कार्य दिवस का कौन सा ऐसा दिन है जिस दिन मीटिंग नहीं होती इसका पता नहीं चल पाया है। यही नहीं कथित मीटिंगों में व्यस्त सरकारी ओहदेदारों के सी.यू.जी. मोबाइल फोन भीं आम जनता के लिए नहीं उठते। हाकिम की तो बात ही दीगर है वह मीटिंग की अध्यक्षता और दौरों से फुर्सत पा जाए यही गनीमत है। हमारे जैसे लोग जिन्हें आम आदमी कहा जाता है इस लोकतंत्र में अदना यतीम सा बना सरकारी ओहदेदारों के कार्यालयों का चक्कर लगाता फिरता है, लेकिन मजाल क्या कि तथा कथित मीटिंग/दौरों की व्यस्तता से ये फुर्सत पाकर अवाम की समस्या को सुनें निराकरण तो दूर की बात। जहाँ तक तर्जुबा कहता है कि अवाम की आधे से ज्यादा समस्या तो नेता और ये सरकारी अहलकार ही हैं। यह बात भीं नकारी  नहीं जा सकती कि आदमी स्वयं अपनी समस्या का पहला कारण है। अब किसानों को ही देखा जाए तो वह कभी खाद, बीज तो कभी पानी-बिजली और सीजन में गन्ने की पर्ची के लिए चक्कर लगाता निर्जल नयनों से सम्बन्धित दफ्तरों को विसूरता रहता है और इन दफ्तरों के मुखिया/सरकारी ओहदेदार तथा कथित मीटिंग में बिजी होना कहलवा कर अपने दायित्वों की इतिश्री कर देते हैं।
आखिर ये मीटिंग्सकिस लिए की जाती हैं? क्या आपसी सम्मेलन या फिर गरीबों के पैसों का स्वहितार्थ उपयोग करने के लिए बनाई जाने वाली प्लानिंग्स को सरकारी मीटिंग्सकहते हैं। पी.एम./सी.एम. की मीटिंग्स की बात ही दीगर है लेकिन इनसे तो मिलकर समस्या समाधान का आश्वासन भी पाया जा सकता है परन्तु डी.एम./एस.पी./सी.डी.ओ., थानेदार, तहसीलदार, एस.डी.एम. से मिलकर समस्या समाधान के लिए इनके दफ्तरों के चक्कर हजारों वर्ष तक लगाने पड़ सकते हैं। तहसील दिवस या अन्य दिवस अब बेमानी से होकर रह गए हैं। सप्ताह के सभी कार्य दिवसों में अफसर मीटिंगों में बिजी, फिर आम जनता का कार्य कब होता होगा? अब जब स्वस्थ नौकरशाही द्वारा प्रदेश/देश की व्यवस्था संचालित हो रही है तब इस सम्बन्ध में दुःखड़ा रोकर ‘‘अँधे के आगे रोवै, आपन दीदा खोवै’’ को चरितार्थ क्यों किया जाए। लोगों से पूंछने पर अच्छा बताओ कि सरकारी दफ्तरों में अफसरों से आसानी से मिल लेते हो तो उनका स्पष्ट जवाब होता है- अफसर मीटिंग में बिजी रहें या गैर हाजिर रहें काम तो बाबू/क्लर्क स्तर पर होता है। सुविधा-शुल्क देकर काम की अर्जी/पत्रावली पकड़ा कर चले आइए। चन्द घण्टों में सब कुछ ओ.के. होकर फाइल वापस मिल जाएगी। 
इस बात में काफी वजन परिलक्षित होता है। फिर यह सोचना पड़ा कि जब सरकारी अफसरों के मीटिंग्स में व्यस्त रहने की बातें हों तब यह मानना चाहिए कि बाबू से काम के बदले दाम तय कर लो वर्ना दौड़ते रह जावोगे। यानि दो दाम लो काम वर्ना नो दाम तो नो काम। इस लोकतंत्र में सभी काम ठेकेदारों द्वारा संपादित हो रहा है। बड़े हाकिम से लेकर लेखपाल स्तर तक के काम के लिए आपको इन ठेकेदारों की शरण में जाना ही पड़ेगा। वहाँ जाकर चढ़ावा राशि चढ़ाओ फिर काम के प्रति निश्चिन्त हो जाओ। अभियन्ता, ठेकेदार, पुलिस, मुखबिर, माननीय, चमचे इन सबसे बड़े होते हैं दलाल। अफसरों की मीटिंग्स से त्रस्त लोगों के लिए सलाह- कि ठेकेदार, मुखबिर, चमचों के अलावा दलालों से मिलें हर काम चुटकी बजाते हो जाएगा बस थोड़ा जेब ढीली करनी पड़ेगी। आलम यह है कि किसी स्थान पर बलबा, हत्या आपराधिक घटना हुई सम्बन्धित वर्दी साहेब मीटिंग में बिजी। बिजली नहीं एक्स. इएन. साहेब मीटिंग में हैं। गन्ने की पर्ची नहीं डी.सी.ओ. मीटिंग में। अस्पताल में दवा नहीं सी.एम.ओ./सी.एम.एस. मीटिंग में। सड़क जर्जर अभियन्ता मीटिंग में। बाल विकास का पुष्टाहार बना पशुआहार डी.पी.ओ. मीटिंग में। खाद्य पदार्थों में मिलावट खाद्य सुरक्षा अधिकारी मीटिंग में। कोटेदार की मनमानी सरकारी गल्ले की कालाबाजारी डी.एस.ओ. मीटिंग में। डग्गामार वाहनों की भरमार ए.आर.टी.ओ. मीटिंग में। वाणिज्यकर की चोरी टी.टी.ओ. मीटिंग में। धुआंधार हो रही वृक्षो की कटान डी.एफ.ओ. मीटिंग में। खाद-बीज की किल्लत से किसान परेशान कृषि अधिकारी मीटिंग में।
किसी-किस सरकारी महकमें के बारे में लिखा जाए? एक दफा जुर्रत करके एक शिक्षा विभाग के अफसर से पूंछा कि मीटिंग्सका दौर कब तक चलेगा, उसने बड़े बेबाक ढंग से कहा कि जब तक देश में मूर्खतन्त्र यानि डेमोक्रेसी रहेगी। खुशी हुई कि एक ही वाक्य में शिक्षाधिकारी ने स्पष्ट कर दिया कि लोकतंत्रीय व्यवस्था ही गड़बड़ है। व्यवस्था बदलना मुश्किल है। बीते दिनों कई लोगों ने दिल्ली में आन्दोलन करके व्यवस्था परिवर्तन को लेकर आवाजें बुलन्द किया। कुछ दिनों तक यह अभियान चलता रहा फिर सब कुछ पूर्ववत् हो गया।
खैर! व्यवस्था बदलना किसी एक के बूते में नहीं है। अब व्यवस्था परिवर्तन की बात न करके मुख्य मुद्दे पर आते हुए कहना है कि साल के  365 दिन में आधे से ज्यादा अवकाश और बचे हुए सरकारी कार्य दिवसों पर उपस्थित होकर मीटिंग में व्यस्त रहने वाले इन हाकिम-हुक्मरानों का हृदय परिवर्तन कैसे कराया जाए जिसके परिणाम स्वरूप इन लोगों को अपने दायित्वों का बोध हो सके, जिसके लिए इन्हें प्रतिमाह/प्रति ओहदा हजारों/लाखों रूपए पगार के रूप में मिलते हैं, जो आम जनता के खून-पसीने की कमाई होती है। इस एपीसोड में बस इतना ही अब हम भीं फेमिली मीटिंग में व्यस्त होने जा रहे हैं। 

रीता विश्वकर्मा

अकबरपुर, अम्बेदकर नगर (उ० प्र०)

मो.नं.9369006284
मीटिंग, मीटिंग मीटिंग और मीटिंग्स में बिज़ी ब्यूरोक्रैट्स ! मीटिंग, मीटिंग मीटिंग और मीटिंग्स में बिज़ी ब्यूरोक्रैट्स ! Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on February 08, 2013 Rating: 5

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