निर्दयता की हद पार कर एक माँ ने फेंका कलेजे के टुकड़े को

चौसा से आरिफ आलम/01/12/2012
पराया हुआ अपना
कभी कहा जाता था, 'पुत्रो कुपुत्रो जायते, माता कुमाता  न भवती' यानी पुत्र भले कुपुत्र हो जाए पर माता कुमाता नहीं हो सकती. पर आज के दौर में ये मान्यता कई मामलों में खारीज हो चुका है. चौसा प्रखंड कार्यालय के पूरब गंगा राम के खेत में आज फेंकी गयी दो दिन की बच्ची को देखकर लोगों की आह निकल गयी. बच्ची के शरीर पर सैंकड़ों चीटियाँ रेंग रही थी और आसपास कुत्ते मंडरा रहे थे. रोने की आवाज पर लोग जमा हुए और बच्ची को चौसा प्राथमिक केन्द्र ले आये. लोग उस माँ की निर्दयता को कोस रहे थे जिसने अपने कलेजे के टुकड़ों को जानवरों के हवाले कर दिया.
            जिन्दा बची बच्ची के विषय में यहाँ तरह-तरह की चर्चाएँ हो रही है. कुछ का मानना था की बेटी होने के कारण इसे फेंक दिया गया जबकि अधिकाँश का मानना था कि ये अवैध सम्बन्ध का नतीजा हो सकती है. पर बच्ची के चीख-चीख कर रोने से लोग दहल रहे थे और सबों की जुबान पर एक ही प्रश्न था कि आखिर इस नन्ही जान का कसूर क्या है ? हालाँकि यहाँ मानवता भी साथ ही सामने आई. चौसा पश्चिमी के एक कुञ्ज बिहारी शास्त्री ने इस बच्ची को अपना लिया जिसके बारे में बताया जा रहा है कि कुञ्ज बिहारी ने इस बच्ची को अपनी बहन के लिए लिया है जो एक बेटी चाहती थी. यानी यहाँ कलेजे के टुकड़े को फेंक कर अपने पराये हुए और पराये ने इसे अपनाकर अपना होने का एहसास दिलाया.
            मालूम हो कि करीब दो वर्ष पूर्व भी चौसा में इसी तरह एक नवजात बच्ची को गड्ढे में फेंक दिया था जिसे एक मुस्लिम महिला ने गोद ले लिया था, हालाँकि बाद में ये पता चल गया था कि किसने उस कलेजे के टुकड़े को अपने से जुदा कर दिया था.
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1 comment:

  1. no comments....pata nhi aaj duniya kya chahti hai..sirf..?

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